पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१००७

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हुर्द६ वायुपुराणम् देवियोगः सत्त्वानां तस्मिन्वै कृत्स्नशः स्मृतः । ततो दग्धेषु भूतेषु सर्वेष्वादित्यरश्मिभिः ॥ देवषिमनुवर्येषु तस्मिन्संकलने तदा गन्धर्वादीनि सत्त्वानि पिशाचान्तानि सर्वशः । कल्पादावप्रतप्तानि जनसेवाश्रयन्ति व तिर्यग्योनोनि सत्त्वानि नारकेयाणि यान्यपि । तदा तान्यपि दग्धानि धूतपापानि सर्वशः जने तान्युपपद्यन्ते यावत्संप्लवते जगत् व्युष्टायां तु रजन्यां तु ब्रह्मणेऽव्यक्तयोनये । जायन्ते हि पुनस्तानि सर्वभूतानि कृत्स्रशः ऋषयो मनवो देवाः प्रजाः सर्वाश्चतुर्विधाः । तेषामपीह सिद्धानां निधनोत्पत्तिरुच्यते यथा सूर्यस्य लोकेऽस्मिन्नुदयास्तमनं स्मृतम् | वया जन्म निरोधश्च भूतानामिह दृश्यते आभूतसंप्लवात्तस्माद्भवः संसार उच्यते । यथा सर्वाणि भूतानि जायन्ते हि वर्षास्विह स्थावरादीनि सत्त्वानि कल्पे कल्पे तथा प्रजाः । यथर्तावृतुलिङ्गानि नानारूपानि पर्यये दृश्यन्ते तानि तान्येव तथा ब्राह्मोत्तरात्रिषु । प्रत्याहारे च सर्गे च गतिमन्ति ध्रुवाणि च ॥१६७ ॥१६८ ॥१६६ ॥२०० ॥२०१ ।।२०२ ॥२०३ ।२०४ ।२०५ के विनष्ट हो जाने पर सभी जोवमिकाय अपने शरीरों से वियुक्त हो जाते हैं, सूर्य की किरणों से सभी जीव यहाँ तक कि देवता ऋषि एवं बड़े बड़े मुनि गण भी भस्म हो जाते हैं १९६-१९७ । इतना ही नहीं गन्धर्व एवं पिशाचादि घोनियों में उत्पन्न भूत गण भी कल्पान्त में भस्म होकर जनलोक का आश्रय लेते हैं । उस समय जो तिर्यक् योनि में उत्पन्न होनेवाले प्राणी रहते हैं, अथवा जिनका घोर नरकादि लोकों में निवास रहता है वे भी दग्घ होकर निष्पाप हो जाते हैं, और जन लोक में विद्यमान होते हैं । १९८-१६६। अन्त में जब ब्रह्मा को इस महारात्रिका अवसान होता है, तब वे सव जीव पुनः उत्पन्न होते हैं । ऋषिगण, मनुगण देवगण एवं बजा, इन सब की यही गति होती है उस समय उन सिद्धि प्राप्त करने वालों का भी विनाश एवं उत्पन्न होना बतलाया जाता है जिस प्रकार इस लोक में सूर्य का उदय होना तथा अस्त होना निश्चित कहा जाता है, उसी प्रकार समस्त जीवों का भी जन्म लेना और मृत्यु प्राप्त करना देखा जाता है | २००-२०१। समस्त जोषों के इस महान् विनाश के बाद पुन: भव अर्थात् उत्पत्ति होती है, इसीलिए इस लोक का नाम संसार कहा जाता है । जिस प्रकार वर्षाऋतु में वे वस्तुएँ अपने आप उत्पन्न हो जाती है, उसी प्रकार प्रलय के प्रत्येक कल्पों में जिन चराचर जीवों का जो-जो स्वरूप रहता है, जैसा जैसा आकार-प्रकार रहता है, ब्राह्म रात्रि के अवसान के उपरान्त पुनः नये कल्प का आरम्भ होने पर वे उसी प्रकार के स्वरूप आकार एवं प्रकार में उत्पन्न देखे जाते हैं। चराचर जीव वृन्द, प्रजाकर्ता, प्रजापति, महायोगी एवं महान् ऐश्वर्यशाली भगवान् ब्रह्मा के