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पृष्ठम्:मेदिनीकोशः.djvu/२८

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मेदिनी ४६ अधिकारजन्यामपि वापिनि। कालिकाहारचारिका धर्मका कवितामूपिच मेऽपि च चनकः पटचे भेष दध्मन दम्॥ ४० ॥ की परिभाषान्तरे लिए। सुपुमान्ने दर्शने शिकदिननियन दयः । भिव्यकिवाभाजन ॥४८॥ चामरामसपा सुरजम की सूर्यमान् उमा पुषि काकामिने भारतयोथिमि । उदयले मनको ५१ उष्चत निदा खादातुरे चित्रकारि उड़िया कृत्तिका भाण्डमेदेऽपि करमे लियाम् ॥५२॥ खा अर्थकाचा कनक देखि पुखि स्यात् किंडके नागकेशरे ३५२३ पुस्कानकासी पि करकपुमान् पचविशेष मे दबोकमको क्रममा भ