पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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विषयः | पृष्ठम् | |
८. | वासनानां कर्मानुगुणत्वम् | ३२४ |
९. | व्यवहितवासनानामप्यव्यवधानोपपत्तिः | ३२६ |
१०. | वासनानामनादित्वम् | ३२८ |
११. | अनादित्वेऽपि वासनानामुच्छेदः | ३३१ |
१२. | धर्माणामध्वभेदपरिणामः | ३३३ |
१३. | धर्माणां गुणत्वकथनम् | ३३७ |
१४. | वस्तुगतैकत्वव्यवहारनिमित्तोक्तिः | ३३८ |
१५. | अर्थज्ञानभेदसाधनम् | ३४१ |
१६. | अर्थस्य ज्ञानसहभावित्वखण्डनम् | ३४४ |
१७. | चित्तपरिणामित्वव्यञ्जनम् | ३४६ |
१८. | पुरुषापरिणामित्वोक्तिः | ३४७ |
१९. | चित्तस्य स्वयंप्रकाशत्वाभावः | ३४९ |
२०. | चित्तस्य स्वाभासत्वे दोषः | ३५१ |
२१. | चित्तान्तरभास्यत्वे च चित्तस्य, दोषः | ३५२ |
२२. | अपरिणामिन्या अपि चितितो बुद्धिवेदनम् | ३५४ |
२३. | चित्ते सर्वार्थत्वस्यौपाधिकत्वम् | ३५५ |
२४. | चित्तातिरिक्तचेतने हेत्वन्तरम् | ३५८ |
२५. | आत्मज्ञानाधिकारिपरिचयः | ३६० |
२६. | आत्मज्ञानाधिकारिचित्तस्वरूपम् | ३६१ |
२७. | विवेकिनो व्युस्थितचित्तत्वे हेतुः | ३६२ |
२८. | विवेकिनो व्युत्थितचित्तत्वनिराकृतिप्रकारः | " |
२९. | प्रसंख्याननिरोधोपायः | ३६३ |
३०. | धर्ममेघसमाधिफलम् | " |
३१. | धर्ममेघकाले चित्तावस्थाकथनम् | ३६४ |
३२. | गुणपरिणामक्रमसमाप्तिः | ३६५ |
३३. | क्रमलक्षणम् | " |
३४. | कैवल्यस्वरूपम् | ३६८
॥ समाप्तेयं योगसूत्रविषयानुक्रमणिका ॥ |