पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२७६

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(२६८ ) ताजिकनीलकण्ठी । स्पर्श करे अथवा जलके समीप पूँछे अथवा जलसंबन्धी कार्ग्य करता हो तथा प्रश्नकाल में जलका शब्द जलका नाम सुना जावे तो निःसन्देह शीघ्र वर्षा होवे ॥ ३२ ॥ काकांडा- विरसमुदकंगो नेत्राभंवियद्विमलादिशोवियतिविकृतं भयदाचभवेन्नभः॥पवनविगमः श्रूयंतैवैझषाःस्थलगामिनोरस- नमसकृन्मंडूकानांजलागमहेतवः ॥ ३३ ॥ जलका रस स्वाद जाता रहै गौके नेत्र समान आकाश हो दिशा निर्म- ल हों तथा कौवेंके अंडाकासा रंग आकाश हो वायु शब्दवान् होने वायु गरम चले मछली स्थलमें आवे सुना जावे और मेण्डक बोलें तो शीघ्र वर्षा होवे ॥ ३३ ॥· गिरयोंजनवर्णसन्निभाय दिवाबाष्पनिरुद्धकंदराः || कृकवा कनिलोचनोपमाः परिवेषाः शशिनश्च वृष्टिदाः ॥ ३४ ॥ पर्वत श्यामरंग दीखें या कन्दरामें जल टपकके भर जावे ककवाक पक्षके नेत्र सदृश परिवेषं चन्द्रमापर हों तो शीघ्र वर्षा होती है ॥ ३४ ॥ प्रायोग्रहाणामुदयास्तकालेसमागमेमंडलसंक्रमेच || पक्षक्षयेतीक्ष्णकरायनांतेवृष्टिंगतेकैनियतेनचाम् ॥ ३५ ॥ विशेषतः ग्रहोंके उदय और अस्त समयमें तथा उनके संक्रम में पक्षक्षयम 'सूर्म्पके अयन चलनेमें आर्द्रा प्रवेशमें वर्षा होती है ॥ ३५ ॥ समागमेपततिजलंज्ञशुक्रयोईजी वयोर्गुरुसित योश्च संगमे || यमारयोः पवन हुताशजंभयंह्यदृष्टयोः सहितयोश्च सहैः ॥ ३६॥ बुध शुक्र तथा बुध बृहस्पति और बृहस्पति शुक्रके एक राशिमें प्राप्त होनेसे वर्षा होती है, शनि मंगलके साथ होनेमें जो शुभ ग्रहोंसे युक्त वा दृष्ट न हों तो वायु तथा अग्निकी भय होती है | ३६ ॥ अथ सस्यनिष्पत्तिः । दिशिकस्यांभवेत्सस्यनिष्पत्तिःवचसानहि।, कस्यदेशस्यभंगोहिक्कदिशिकचतन्नहि ॥ ३७ ॥