पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२६३

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भाषाटीकासमेता । ल’ शरीरकार्य्यगृहकार्मास्तंनभश्चराज्यार्थम् लाभोमि स्यार्थेचतुर्थकंकर्मणोवसतयेच ॥ ७ ॥ ॥ जो कोई राज्यकृत्यप्राप्ति हुयेमें उसका परिणाम पूँछे तो लग्यसे शरीरका - र्थ्य, सप्तमसे गृहकार्ग्य, दशमसे राज्यकृत्य, लाभसे लाभ चतुर्थ से तथा मित्रसंबंधी कार्य्य और दशमसे निवासके विषयमेंभी विचार करना ॥ ७ ॥ द्र्व्यंधनायसहजंभृत्येभ्योरिपुश्चवैरिभ्यः ॥ (२५५) एतैः शुभैःशुभंस्थादशुभेवामंचसर्वकार्य्याणाम् ॥ ८॥ दूसरे भावसे धन कार्ग्य, तीसरेसे भृत्य, छठेसे वैरी संबंधी कार्य्य विचारना, यदि इनपै शुभग्रह हों वा इनके स्वामी बली होंतो यथोक्त कार्य शुभ अन्यथा अशुभ होगा ॥ ८ ॥ वित्तस्वामिनिभौमेऽनौचित्येपारदारिकेव्ययकृत् ॥ जीवेधर्मायरिपौगुरुपूजायैसितेविलासाय ॥ ९ ॥ धनेश मंगल लग्नेशसे मूथशिली हो तो अनुचितकर्मोमें तथा परस्त्री संबंधी व्यय करे धनेश बृहस्पति हो तो धर्ममें सूर्य्य हों तो गुरु ब्राह्मण की पूजामें शुक्र हो तो विलासादि खमें धनव्यय होवे ॥९॥ वाणिज्यायन थशिंलिनिचान्यथान्यार्थम् ॥ लग्नपतौपतितस्थे विबलेराज्यात्ययस्तुकंवले ॥ कोपि गुणः स्यात्पापाक्रांतरशुभंच्युतौभवति ॥ १० ॥ जो उक्त प्रकार बुध हो तो वाणिज्यमें धनव्यय होवे चन्द्रमा सुथ शिली भी हो तोभी व्यापारमें व्यय होवे जो मुथशिली लग्नेशसे न हो तो अन्यकोल- ये वाणिज्यकरे तथा ललेश पतित स्थान में तथा निर्बल हो तो कंबलीमें कुछ गुणभी होताहै पापाक्रांत हो तो राज्य नाशही होताहै ॥ १० ॥ नरपतिसचिवस्नेहप्र नेकंबूलेलझसप्तपयोः ॥ · मथाशलयोः शुभदृष्ट्याशुभताराज्येमिथः स्नेहः ॥ ११ ॥ राजा और राजमंत्री के स्नेहप्रश्नमें लग्नेश सप्तमेशका कंबूलसहित, मुथशिल हो तो परस्पर स्नेह रहे शुभदृष्टिभी हो तो राज्यमेभी शुभता रहै ॥ १३ ॥