पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२५२

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(२४४) ताजिकूनीलकण्ठी । > सूर्य चन्द्रमा मंगल शनि-राहु सभी वा इनमेंसे तीन लयमें हों तो अपने स्थानस्थितं राजाको गमन करनेवाला राजा मारे, जो उक्त यह सप्तम हों तो स्थानस्थित राजा गमन करनेवालेको मारे ॥ १९ ॥ शुक्रेज्यशीतांशुबुधाः सुरेज्यैः सर्वैस्त्रिभिर्यूनगतैर्बलाढ्यैः ॥ हन्याद्रणेस्थायिनंमाशुयायीसुखास्पदस्थैश्च शुभैः सुसंधिः ॥ २० ॥ शुक्र बृहस्पति चन्द्रमा बुध सभी बृहस्पति सहित उक्तोंमेंसे तीन शुभग्रह बलवान् तथा सप्तममें हों तो जानेवाला स्थानस्थ राजाको रणमें मारे, जो उक्त ग्रह चतुर्थ हों तो शीघ्र मिलाप होजावे ॥ २० ॥ कुजेत्थशालेहिमग वेलनेबन्धौचमृत्युर्युधिनागरस्य || भौमेत्थशालेचविधौकलत्रेबन्धंमृतिवालभतेत्रयायी ॥ २१ ॥ चन्द्रमा लग्न वा चतुर्थमें मंगलसे इत्थशाली हो तो युद्ध में स्थायी राजाकी मृत्यु होवे, जो ऐसेही चन्द्रमा सप्तम हो तो यायी राजाका मृत्यु वा बंधन होवै, स्थाई अपने किलामें बैठा है यायी दूसरेपर जाता है, ये संज्ञा ॥२१॥ लग्नेशजामित्रपयोश्चमध्येभवेद्ब्रहोयःस्वगृहोच्चसंस्थः || तद्वर्गमर्त्यानृपयोश्चसंधिर्ज्ञेयोबुधेलेखकपंडिताभ्याम् ॥ २२ ॥ लग्नेश सप्तमेशसे जो ग्रह स्वगृह वा उच्चमें हो तो उसके पक्षके मनुष्योंसे संधि ( मैत्री ) करावेगा, यदि बुध स्वगृहोच्चमें हो तो लेखक या पंडितों के द्वारा मैत्री होवे, “वर्ग सू० चं० राजा, मं० सेनापति, बुध युवराज, बृ०धु०. मन्त्री, श० दास" ये जानने ॥ २२ ॥ क्रूरेकलत्रेह्युदयेशुभग्रहोयच्छेद्धनंयायिनृपायनागरः ॥ विपर्ययाद्यायिनृपःपुरेश्वरंदुर्गाद्धिनिष्कास्यददातिवास्पदम् ॥ २३ ॥ सप्तम में पाप लग्नमें शुभग्रह हों तो यायी राजाको स्थायीराजा धन देके. शांत करावे, जो लग्नमें पाप सप्तममें शुभ ग्रह हों तो यायीराजा स्थायीको किलासे निकालकर फिर स्थान देवे ॥ २३ ॥ रवीत्थशालेशशिजे गुप्ताश्चराभवेयुश्च जेसराफात् || ग्रहाच्छशांकेनयुताश्चतस्मिन्येयेन्यवेषाश्च भवंतिचाराः ॥ २४ ॥