पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२४९

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● भाषाटीकासमेता । (२४१) अथवा शनि बृहस्पति बलवान् अधिकांश तथा बुध शुक्र चन्द्रमा उनसे हीनबली अल्पांश हों अर्थात् "शीघ्रोल्पभागे घनभागमंदे" इत्यादि इत्थ- हो तो शत्रुसे जय इससे विपरीत ईसराफ हो तो शत्रुकी जय होगी ॥ २॥ पतावस्तपतेःषत्रिदृशाथमुथशिले द्वयोः स्नेहः ॥ वर्गद्वयमध्याधः पतितः सोन्येन द्धः स्यात् ॥ ३॥ लयेश सप्तमेशकी द्वेष्काण दृष्टिसे मुथशिली हो तो अन्योन्य स्नेह हो जावे, जो छठे वा बारहवें हो तो शत्रुको कोई अन्य बांध लेवे ॥ ३ ॥ वर्गद्वयाधिपानांमूसरिफेऽस्तंगतेनरणदैर्घ्यम् ॥ लग्नस्वा निर्मदेवूउपरिगेजयः ष्टुः ॥ ४ ॥ योद्धा प्रतियोद्धाके बगैस्वामी मूसरिफी तथा अस्तंगत हो तो दीर्घेरण नहीं होगा, लग्नेश मंद अधिकांश और सप्तमेश शीघ्र स्वल्पांश बली हों तो भ्रष्टाकी जय होवे ॥ ४ ॥ एवंगुणेतुतस्मिन्विप्रविनष्टेस्तपतितनीचस्थे ॥ केंद्रेस्तेवास्तपतौप्रष्टहनिःप्रवक्तव्या ॥ ५ ॥ जो मंदग्रह अधिकांश शीघ्र अल्पांश चन्द्रमासे मुथशिली अस्तंगत नीच- गत हो. वा सप्तमेश केंद्र में इसी प्रकार अस्त वा नीचगत हो तो रणमें प्रष्टाकी हानि कहनी ॥ ५ ॥ लग्नादधःशुभेसत्युपरिचमंदे भःसहायः स्यात् ॥ पतौरंध्रस्थेरंध्रपसुथशिलेहतिःप्रष्टुः ॥ ६ ॥ लके अधः अर्थात् दशमसे लमपर्यंत शुभग्रह और लमसे ऊपर भं से ४ स्थान पर्यंत शनि हों तो युद्धमें सहाय अच्छा मिलेगा. जो लग्नेश अष्टमहो वा अष्टमेशसे मुथशिली हो तो प्रष्टा हारेगा ॥ ६ ॥ • लग्नेशेधनसंस्थेधनेशकृतमुथशिलेरिपोनशः ॥ लग्नेशदशमपत्योर्मुथशि तः पृच्छकस्यजयोवीर्ये ॥ ७ ॥ सप्तमेश धन स्थानमें, धनेशसे यशिली हो तो शत्रुनाश होवे, लग्नेश. दशमेशका मुथशिल हो बलीभी हों तो शत्रुसे जय होघे ॥ ७ ॥ १६