पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२४२

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( २३४ ) 'ताजिकनीलकण्ठी | नागस्त्वलौयक्षपतिर्धनुष्येनकें देव्यास्तुघटेतुयक्षी | झषे लोपासितदैवतस्यदोषंभवेद्धर्मबहिष्कृताय ॥ १८ ॥ जो मनुष्य धर्मी नहीं है उन्हें ये दोष लगते हैं कि मेप लग्न प्रश्नका हो तो अपना इष्ट देवताका एवं वृषसे पितरोंका, मिथुनसे आकाशदेवी मातृका परी आदियोंका,कर्कसे शाकिनी डाकिनी आदि, सिंहसे भूमिपाल देवता, कन्यासे, कुलपूजित देवता, तुलासे मातुलपक्षका देवता, वृश्चिकसे नाग, देवता धनसे यक्षपति महादेव नारसिंह भैरव आदि मकरसे, जलदेवी, कुंभसे यक्षिणी पिशाच आदि, मीनसे कलदेवता का दोष जानना ॥४७॥ ४८ ॥ प्रेताश्चराहौपितरः सुरेज्येचंद्रेबुदेव्यास्तपनेपिदेव्यः || स्वगोत्रदेव्यश्वशंनौबुधेचभवंतिभूताव्ययरंध्रसंस्थे ॥ ४९ ॥ राहु ८ । १२ स्थानों में हो तो प्रेतदोष, तथा बृहस्पति हो तो पितरोंका, चंद्रमा हो तो जलदेवी, सूर्य्य हो तो देवी, शनिबुध से अपने कुलकी पूज्य देवीका दोष कहना ॥ ४९ ॥ शाकिन्यआरेभृगुजेंबुदेव्योगृहंतिमयैविमुखमुकुंदात् || स्वर्दोच्चगेवीर्य्ययुतेचसाध्या धंद्रेचनी चेविबलेनसाध्याः ॥ ५० ॥ मंगल८।१२ में हो तो शाकिनी डाकिनी और शुक्र हो तो जलदेवी- का दोष होवे. जो मनुष्य इश्वरसे विमुख हैं उनको ये दोष होतेहैं. उक्तग्रह जिससे दोष ज्ञात भया वह यदि अपनी राशि वा उच्चादिमें हो तो उपायोंसे दोष साध्य होगा. जो चंद्रमा बृहस्पति निर्बल हों तो असाध्य जानना ॥ ५० ॥ • केंद्रस्थैर्बलिभिः पापैरसाध्यादेवतागणाः ॥ सौम्यग्र है व केंद्रस्थैः साध्यामंत्रस्तवार्चनैः ॥ ५१ ॥ 'केंद्र में बलवान् पापग्रह हों तो वे देवता असाध्य और शुभ ग्रह केंद्र में हों तो मंत्र स्तोत्र पूजनादिसे साध्य जानना ॥ ५१ ॥ 1 कंटकाष्टत्रिकोणस्थाःशुभाउपंचयेशशी ॥ लग्नेचशुभसंदृष्टेरोगीरोगाद्विमुच्यते ॥ ५२ ॥