पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२३३

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(२२५) || भाषाटीकासमेता | मृतप्रजाछिद्गगयोःसितेज्ययोर्गर्भस्रवाभूमिसुतेष्टमर्क्षे द्वेश्वरेछिद्रगतिवीर्येपुष्पंन विंदत्यबलासुतप्रदम् ॥ २३ ॥ जो शुक्र बृहस्पति अष्टम हों तो मृतप्रजा अर्थात् जितने संतान हों मरतेही रहें मंगल अष्टम हो तो गर्भ गलते रहें जो अष्टमेश अष्टम भाव में बलवान् हो तो पुत्र देनेवाला पुष्प ( रज ) भी उस स्त्रीका न होवे ॥ २३ ॥ शुक्रार्कयोरष्टमसंस्थयोर्वाक्ररेर्द्धवांत्याष्टमराशिसंस्थैः ॥ जातापुरस्तान्त्रियतेप्रजावैप्रष्टुर्नचायेशुभसंततिः स्यात् ॥ २४ ॥ शुक्र सूर्य्य अष्टम हों तथा दूसरे और बारहवें पापग्रह हों तो सन्तान होतेही मरजाया करें, आगेभी शुभ सन्तति न होवे ॥ २४ ॥ रिष्फेश्वरेकेन्द्वगतेचसौम्यैर्युतेक्षितेजीवतिबालकश्च ॥ आपूर्णमासेशुभयुक्तइंदौकेंद्रेशिशुर्जीवतिदीर्घकालम् ॥ २५ ॥ अष्टमेश शुभ ग्रहों से युक्त वा दृष्ट केन्द्र में हो तो बालक बचजायगा, शुपक्षका चन्द्रमा शुभयुक्त केन्द्र में हो तो पुत्र दीर्घायु होगा ॥ २५ ॥ पंचमेशोथल शोविषमस्थानगौयदा | पुत्रजन्मप्रदो यौ कन्यानां समराशिगौ ॥ २६ ॥ " पुत्रवान् योग प्राप्तहुयेमें विशेष विचारहै कि पंचमेश वा लग्नेश विषम स्थानमें हो तो पुत्र और सम राशिमें हो तो कन्या देता है ॥ २६ ॥ युग्मराशिगते लग्ने यदातत्रशुभग्रहाः || गर्भेपत्ययं वाच्यं दैवन विपश्चिता ॥ २७ ॥ लग्न द्विस्वभाव राशिहो उसमें शुभग्रह हों तो चतुरज्योतिषीने गर्भमें दो बालक कहने ॥ २७ ॥ विषमोपगतो लग्नाच निः पुत्रसुखप्रदः || समभेयोषितांजन्मविशेषोजातकोक्तिवत् ॥ २८ ॥ लग्नसे शनि विषम स्थानमें पुत्र और सप्तममें कन्या देता है विशेष विचार जातकोतही यहांभी जानना ॥ २८ ॥ १५