पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२२५

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भाषाटीकासमेता । ( २१७ ) तृतीयेश तृतीय भावको देखे तथा तृतीयभाव और तृतीयेशको शुभग्रह देखें तो भाई सुखी सावधान और पाप दृष्टि योगसे रोगी वा अस्वस्थ कहना ॥ १ ॥ यदि सहजपतिः षष्ठेतत्पतिना सुथशिलेऽथतन्मांद्यम् || षष्ठेशे सहजस्थे सहजपतरि वापि ॥ सूर्य्यस्यरश्मिसंस्थेभयावहं प्रष्टुरादेश्यम् ॥ २ ॥ तृतीयेश छठा वा आठवां होकर षष्ठेशसे इत्थशाली हो तो भाई मांदे कहने, वा षष्ठेश तीसरा वा तृतीयेश पापयुक्त हो तो भी यही फल है, जो अस्तंगत हो तो प्रष्टाको भय देताहै ॥ २ ॥ 1 षष्टमभावेशौ यद्भावेशेनेत्थशालिनौस्याताम् || पीडांतस्य प्रवदेत्ष [ष्टमभावगे वापि ॥ ३ ॥ 'छठे आठवें भावके स्वामी जिस भावेशके साथ इत्थशाली हो वा जिस भावमें हों अथवा जिस भावका स्वामी ६ | ८ स्थानमें हो उस भावसंबंधी पीडा कहनी ॥ ३ ॥ एवं सर्वेपि यथॉपित्रोस्तुय्सुतानांच || पंचमभावे भृत्यचतुष्पदस्त्रियाः हृदकः सप्तमे ॥ ४ ॥ ऐसे सभी भावोंमें विचार करना जैसे चतुर्थेशसे षष्ठेश वा अष्टमेशका इत्थशालहो, यद्वा इन भावोंके स्वामी चतुर्थ वा चतुर्थेश इन भावों में हो तो माता पिताको पीडा होवे, ऐसा पंचम भावसे पुत्रों को सप्तमसे भृत्य, स्त्री चतुष्पद इत्यादि जानना ॥ ४ ॥ अथ क्रयविक्रयौग्रन्थान्तरे । अनु० -क्रेता लग्नपतिर्ज्ञेयो विक्रेतायपतिःस्मृतः ॥ गृह्णाम्यहमिदंवस्तुप्रश्न एवंविधेसति ॥ ५ ॥ बलशालि विलग्नंचेगृह्यतेतत्क्रयाणकम् ॥ तस्मात्क्रयाणकाल्लाभःप्रष्टुर्भवति निश्चितम् ॥ ६ ॥ मैं यह सौदा करताहूं इसमें लाभ हानि क्या होगी ऐसे प्रश्नमें लेनेवाला लग्नेश बेचनेवाला लाभेश होता है, इनके बलावलसे विचार कहना, जैसे लग्न लग्नेश बलवान् हों तो यह द्रव्य लेना इसमें मष्टाको निश्चयलाभ होगा ॥ ५॥ ६ ॥