पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२१२

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(२०४ ) ताजिकनीलकण्ठी । प्रश्नकालमें जो लग्नमें शुभवर्ग अधिक हो तो ग्रहभावफलकी अपेक्षा न कर शुभ फलही कहना, भावफलसे वर्गफल बली फलमें होता है ॥ २८ ॥ लग्नाधिपश्चलाभस्याधीशश्चदायकोभवेत् ॥ . लग्नाधिपस्ययोगोवालाभाधीशेनलाभदः ॥ २९ ॥ लग्नेश और लाभेश धनदाता हैं इनका योग लाभ देनेवाला होता है २९ ॥ आर्य्या - भवतिपरमलाभकरस्तदैवसयदिचंद्रहग्लाभे ॥ योगाः सर्वेष्वफलाश्चंद्रमृतेव्यक्तसेवच ॥ ३० ॥ जो लग्नेश वा लाभेश ग्यारहवें स्थान में चन्द्रमासे दृष्ट हों तो परमलाभ कर- ताहै चंद्रमाके दृष्टि वा योगविना सभी योग निष्फल होते हैं यहता प्रकटही है ३० आर्य्या कर्माधीशेनवं कर्माधीशेन वृत्त्यधीशेन || मृत्युपतिनाचयोगेलाभाधीशस्यवक्तव्यम् ॥ ३१ ॥ ऐसेही दशमेशकाभी विचार करना, क्योंकि वह आजीवन भाव है. और लाभेश अष्टमेशयुत हो तो लाभ न होवे ॥ ३१ ॥ तत्तत्स्थानेक्षणतःपुण्यविवृद्धिश्चकर्मवृद्धिश्च ॥ विबुधैस्तदा निवृत्तिमृत्युर्भावापरेप्येवम् ॥ ३२ ॥ चन्द्रमा जिस स्थानको देखे उसकी वृद्धि जैसे नवममें पुण्यवृद्धि दशममें कर्मवृद्धि करता है जो अष्टम भाव वा अष्टमेशपर चंद्रमाकी दृष्टि चा योग हो तो विपरीत फल कहना ऐसेही सभी भावोंमें विचारना ॥ ३२ ॥ ल शोयदिष: स्वयमेवरिपुर्भवत्यात्मा || मृत्युकृदष्टमगोसौव्ययगः सततंव्ययं कुरुते ॥ ३३ ॥ लग्नेश छठा हो तो अपनी आत्मा भी शत्रु होती है अन्योंकी क्या कथा? जो लग्नेश अष्टम हो तो मृत्यु और बारहवां हो तो बहुत व्यय करताहै ३३ लग्नस्थं चंद्रजंचंद्रः क्रूरोवायदिपश्यति ॥ धनलाभोभवत्याशुकिंत्वनथपिपृ० तः ॥ ३४ ॥ 1. लग्नस्थित बुधको चंद्रमा वा पापग्रह देखें तो धनलाभ तो शीघ्र होवे किंच प्रष्टको कोईप्रकार अनर्थभी होवे ॥ ३४ ॥