पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२०३

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासमेता । ( १९५ ) अनुष्टु० - अश्रौषीञ्च पुराविष्णोर्ज्ञानार्थं समुपस्थितः ॥ वचनं लोकनाथोपि ह्या प्रश्नादिनिर्णयम् ॥ २ ॥ पहिले किसी कालमें लोकनाथ ब्रह्मा कर्मपरिपाकके जाननेके लिये विष्णुके पास गये उनसे प्रश्न स्वर शकुनादिकोंके निर्णयवचन सुनकर संसा- रमें ज्योतिषद्वारा प्रकटकिया ॥ २ ॥ वसन्त ० - तस्मान्नृपः कुसुमरत्नफलाग्रहस्तः प्रातः प्रणम्य वरयेदपि प्राङ्मुखस्थः ॥ होरांगशास्त्रकुशलान्हितकारिणश्च संहृत्य दैवगणकान्सकृदेव पृच्छेत् ॥ ३ ॥ तस्मात् प्रश्न पूछनेवाला राजा- [यहां राजा उपलक्षणार्थ कहा गया] पुष्प रत्न फल आदि मंगल वस्तु दाहिने हाथ में लेकर प्रातःकाल प्रणामपूर्वक ज्योतिषीका वरण प्रश्ननिमित्त करे; तदनन्तर होरानामक ज्योतिषश रंगीभू- तके जाननेवाले हितकारी गणकोंको इकट्ठा करके स्वल्पाक्षरोंसे एकहीवार प्रश्न पूछे ॥ ३ ॥ आर्ग्या-दशभेदं ग्रहगणितं जातकमवलोक्य निरवशेषमपि ॥ यः कथयति शुभमशुभं तस्य न मिथ्या भवेद्वाणी ॥ ४ ॥ प्रश्न पूछने उपरांत जो गणक दशप्रकार स्पष्टभाव बलाबलस्थानादि ग्रहग- णित एवं जातक मत सम्पूर्ण देखकर शुभाशुभ फल कहता है उसकी वाणी मिथ्या नहीं होती ॥ ४ ॥ अथादौ प्रष्टुः परीक्षा | आर्या-ऋजुरयमनृजुवयंपूर्व परीक्ष्य लनबलात् ॥ गणकेन फलं वाच्यं दैवं तच्चित्तगं स्फुरति ॥ १ ॥ पूछनेवालेका चित्त सरल वा वह कैसा है इस विचारमें गणकने ल - लसे प्रथम परीक्षा करके फल कहना. मष्टाके चित्तानुवर्ती दैव प्राक्तन कर्म- पाक लग्नविचार द्वारा गणकको स्फुरण होजाताहै ॥ १ ॥ आर्या-लझस्थे शशिनि शनी केंद्रस्थेज्ञे दिनेशरश्मिगते ॥ भौमज्ञयोः समदृशा लग्नगचंद्रेऽनृजुः प्रष्टा ॥ २ ॥ जैसे लग्न में चंद्रमा केंद्र में शनि और बुध अस्तंगत हो तथा लयमें चन्द्रमा