पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१८३

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भाषाटीकांसमेता । (१७५) . का तीसरां हो तो मध्यमबलीका फल देता है. इसप्रकार पूर्वाचायने लग्नदशा का फल द्रेष्काणवशसे कहाहै तथा लग्नपर लग्नेशकी दृष्टि हो वा लगने लग्नेश हो तो सु और पापयोग पापदृष्टिसे कटफलभी कहना ॥ ४५ ॥ अथांतर्दशाप्रकारः । अ० - दशामानंसमामानंप्रकल्प्योक्तेनवर्त्मना || अंतर्दशाः साधनीयाः प्राक्पात्यांशवशेनतु ॥ ४६ ॥ अंतदशाकी रीति कहते हैं कि, पहिले जिस विधि से पात्यांशी दशा कही वही इसकीभी है और सावनवर्षमितिका जहां काम है वहां दशेशकी दशा दिनादि लेने यही विशेष है, जैसे पहिले हीनांशवशसे पात्यांश लियेहैं वहां पात्यांश- योगसे सौर वा सावन दिनादि दशांमिति भाजनेसे मिले हैं, वही अंतर्दशामेंभी ध्रुवक जानना उसीसे सभी पात्यांश गुनाकर प्रत्येकेकी अंतर्दशा मिलती है. शुक्रान्तदशादिनोंदाहरणम् । शु. वृ. मं. शं. चं ल. सू.या. अ. २२७ १६२० २१२९० ५१५१४७२४,१७,२४ १८४७४२ १६३७३०३९ १४९३० १७१७ १८२९५० ५७४१३३४८२४०० सौरसावनाहानि ७ ८ ४ ८ ८ ९९ १० १० १२४१२१४/२०१११८९१२ ३५४४५३३५८ १५३९५८४५ ५२१५८ २९ ९ २४३३ ४ २२ २०१८४७३७३४१५४८३६०० उदाहरण - शुक्रदशादिनादि ९० । ४२ । १७ सेवर्ण करके पहिलोंका साधा सवर्णित पात्यांश योगसे भाग लिया तो लब्धिं ३ | १२ | २८ ध्रुवक हुवा इससे प्रत्येकके पात्यांश गुनाकरके प्रत्येककी अंतर्दशा होती है उपरांत सूर्य्य स्पष्ट वा संक्रांतिदिनोंसे पूर्ववत् जोडकरना ॥ ४६ ॥ अनुष्टु० - आदावंतर्दशापाकपतेस्तत्क्रमतोपराः ॥ a सौरा: प्रवेशार्का: भेक्षणान्वयान्मैत्र्यातत्फलंपरिकल्पयेत् ॥ ४७ ॥