पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१७८

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(१७०) ताजिकनीलकण्ठी | है, हीन बल उक्त भिन्न स्थानोंपर हो तो मध्यबलका फल देता है और मध्य- बली हो तो शुभ फल देता है और उत्तमबली हो तो अत्यंत शुभफल देता है १८ दशापतिः पूर्णबलोमहीजः सेनापतित्वंतनुतेनराणाम् ॥ जयंरणेविद्रुमहेमरत्नवस्त्रादिलामंप्रियसाहसत्वम् ॥ १९॥ दशापति मंगल पूर्ण बली हो तो मनुष्योंको सेनापतित्व, बहुतोंका अग्र गण्य करताहै तथा संग्राममें जय मूँगा सुवर्ण रत्न वस्त्रोंका लाभ और साह - सभी देता है ॥ १९ ॥ दशापतिर्मध्यबलोमहीजः कुलानुमानेनधनंददाति || गजाधिकारोप्यथतत्परत्वं तेजस्वितांकांति बलाभिवृद्धिम् ॥ २० ॥ दशापति मध्यबली मंगल कुलानुमान धन देताहै तथा हाथियोंका अधिकार और हाथी की सवारीमें प्रसन्न रहै तथा तेजस्वित्व कांति और बलकी वृद्धि देताहै ॥ २० ॥ उपजा ० - दशापतिः स्वल्पवलोमही जोददातिपित्तोष्णरुजंशरीरे || रिपोर्भयंबंधनमास्यतोसृक्त्रवचस्ववशत् ॥ २१ ॥ दशापति मंगल अल्पबली हो तो अपनी दशामें पित्त और गरमीके विकारसे शरीर में रोग देता है तथा शत्रुभय यद्वा बंधन तथा मुखसे रुधिर- स्राव और अपने मनुष्यों के साथ निरंतर वैर होवे ॥ २१ ॥ उपजा ० - दशाप तिर्नष्टवलोमही जो विवादमुग्रंजनयेद्रांवा || चौराद्भर्यरक्तरुजंज्वरंचविपत्तिमरूपस्वहतिंचरखर्जूम् ॥ २२ दशापति मंगल नष्टबल हो तो उत्कट कलह अथवा रणही करदेता है तथा चोरसे भय रुधिरसंबंधि रोग, विपत्ति, थोडी धनहानि और खुजली का रोग करताहै ॥ २२ ॥ -- अनुष्टु० - त्रिपष्टायगतोभौमोनष्टवीर्य्यः भादः || मध्योहीनः शुभोमध्यः शुभोत्यंतंशुभावहः ॥ २३ ॥ मंगल दशापति ३/६/११ स्थानमें नटबली हो तो शुभफल आधा देता है, हीनबली हो तो मध्यबलीका फल देता है और मध्यबली होके शुभ फल देता है और उत्तम बली हो तो अत्यंत शुभ फल देता है और भावोंका उक्तही जानना ॥ २३ ॥