पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१६६

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( १५८ ) ताजिकनीलकण्ठी । वर्षेश बुध धनस्थान में शुभ ग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो अन्नादि द्रव्यके व्यापारसे धनलाभ होवे जो यही बुध मुंथासहित लममें हो तो पढने लिखनेसे लाभ होवे ॥ १ ॥ अनुष्टु० - अस्मिन्पष्टाष्टांत्यगतेसक्रूरेनचिकर्मकृत् ॥ रेक्षणेनलाभोस्तंगतेनलिखनादितः ॥ २ ॥ a वर्षेश बुध छठे आठवें वा बारहवें स्थानमें पापग्रह सहित हो तो नीच कर्म कराता है, जो इस पर पापग्रह की दृष्टि हो तो श्रम करनेमें भी लाभ न होवे जो यह अस्तंगत हो तो लिखने पढनेमें व्यर्थ श्रम होवै लाभ न होवे ॥ २ ॥ अनुष्टु० - लग्नेन्दपेकरहते लग्नेहानिर्भयंलपात् || अस्मिन्नधिकृते व्यवहारानातयः ॥ ३ ॥ लग्नेश वा वर्षेश पापपीड़ित होकर लशमें हो तो राजासे भय होवे यही. अधिकारी, सप्तम स्थान में हो तो व्यवहारसे धनप्राप्ति होवे ॥ ३ ॥ अनुष्टु० - लग्नायेशेत्थशालेल्याहाभः स्वजनगौरवम् || सर्वेलाभेच वित्ताध्यै सवला निर्बला न तु ॥ ४ ॥ लामेश लग्नेशका इत्यशाल हो तो बडा लाभ होवे, अपने मनुष्योंसे गौरवता भी मिले तथा कोई भी यह ग्यारहवें स्थान में बलवान् हो निर्बल न हों तो धनप्राप्ति करते हैं ॥ ४ ॥ अनुष्टु० - सवीयज्ञः ससुथहोलग्नेर्थसहसे शुभाः ॥ तदाखनितद्रव्यस्यलाभःपापहशानतु ॥ ५ ॥ बलवान् बुध मुंथाके साथ लनमें हो और अर्थसहममें शुभग्रह हो तथा लग्नपर शुभग्रहों की दृष्टि हो तो खान ( धात्वादि भूमि ) संबंधी द्रव्या लाभ होवे लग्न में पापदृष्टि हो तो उक्तलाभ नहीं होगा ॥ ५ ॥ इति श्रीमहीधरकृतायां नीलकंठी भाषाटीकायां लाभभावकलाध्यायः ॥ ११ ॥ अथ व्ययभावविचारः । 10- वसन्तति ० - लग्नाब्दपौहतबलौव्यय पण्कृतिस्यौयाशिगौतदनु सारिफलंविचित्यम् ॥ पटेव्द पे भृमुसुतेथविन द्ववीय्यै हटेखलैःश्रुतह, शाद्विपदर्क्षसंस्थे ॥ १ ॥ भृत्यशतिस्तुरगहाचतुरंत्रिभस्थेन्यस्मिन्न-