(१५२ ) ताजिकनीलकण्ठी | युक् ॥ अनुष्टु०–सक्रूरेजन्मपेमृत्यौमृतिथि सौमक्षुतेक्षणेतत्रमृत्युः स्यादात्मघाततः ॥ २१ ॥ जन्मलमेश वा जन्मराशीश पापग्रहयुक्त वर्षलग्न से अटम हो तो मृत्यु होती है और मंथा भी कहीं बैठी होय पर शनैश्चरके साथ होय और जो इसपर मंगलकी शत्रुदृष्टि भी हो तो आत्मघात ( अपनेही हाथसे ) मृत्यु होवे ॥२१॥ अनुष्टु० - मंदोष्टमोमृतीशेत्यशालान्मृत्युकरः स्मृतः ॥ शुभेत्यशालात्सर्वेपियोगाना शुभदायकाः ॥ २२ ॥ - अष्टम शनि अष्टमेशसे इत्थशाली हो तो मृत्यु देनेवाला कहा है और जो यह उक्त योगोंमेंसे मृत्युफल करनेवाले हैं वे किसी शुभग्रह से इत्थशाल करते हों तो मृत्यु नहीं होती प्रत्युत शुभफल देते हैं ॥ २२ ॥ अनुष्टु० - सूतिरंभ्रपतिमैदोष्टमोब्देलग्नपेनचेत् || इत्थशालीक्रूरदृशातत्कालेमृत्युदायकः ॥ २३ ॥ जन्मका अष्टमेश शनिवर्षमें अष्टम हो तथा लग्नेशसे क्रूरदृष्टिका इत्थशा- ल करता हो तो वर्षप्रवेशहीमें मृत्यु देताहै ॥ २३ ॥ स्थोद्धता - पुण्यमद्मनिविषुस्तनौतथास्तेखलोमृतिरथार्थरिःफगौ || मृत्युदौखलखगावथोजनुर्वर्षवेशतनुपौमृतौमृतिः ॥ २४ ॥ पुण्यसहममें वा लग्नमें चन्द्रमा और इससे समम पापग्रह हो तो मृत्युतुल्य कष्ट देता है तथा लग्नसे दूसरे बारहवें पापग्रह हों तो भी यही फल देते हैं, पुण्य सहम और चन्द्रराशिसे भी द्वितीय द्वादश पापग्रह होनेमें यही फल है, इसमें पापकर्त्तरी विशेषहै. और ऐसाही विचार जन्मलग्न वर्षलग्न पुण्यसहम चन्द्रराशिका भी करना और वर्षलग्नेश वा वर्षेश और अष्टमेश अष्टम हो तो मृत्यु देता है ॥ २४ ॥ इति श्रीमहीधरकृतायां नीलंकट भापाटकिायाम सभावाध्यायः ॥ ८ ॥ अथ नवमभावविचारः । अनुष्टु० - भौमेन्दपेत्रिनवगेकरायुक्तेबलान्विते || गुणावहस्तदामार्गश्चरंकाय्यैस्थिरंततः ॥ १ ॥