पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१५६

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(१४८) ताजिकनीलकण्ठी । और यही मंगल द्विपद मिथुन कन्या तुला और धनके पूर्वार्द्ध में हो तो चौरादि दुष्ट मनुष्यसे मृत्यु हो ॥ १ ॥ अनुष्टु० - वियत्यवनिपामात्य रिपुतस्करतोभयम् ॥ तुय्यैमातुः पितृव्याद्वामातुलात्पितृतो गुरोः ॥ २ ॥ इसी प्रकार वर्षेश मंगल निर्बल तथा पापपीडित होकर दशम स्थानमें हो तो राजा वा राजमंत्री वा शत्रु वा चोरसे भय होवे और ऐसा ही मंगल चहुर्थस्थानमें हो तो माता वा ताऊ वा चाचा वा मामा वा पितासे भय होवे ॥ २ ॥ व॰ति ॰ - लग्नेंथिहापतिसमापतयोमृतीशाश्वेदित्यशालिनइमे निधनप्रदाःस्युः ॥ चेत्पाकरिष्टसमये मृतिरेव तत्र सार्के कुजे नृपभयं दिवसेऽन्दवेशे ॥ ३ ॥ लग्नेश मुंथेश और वर्पेश अष्टमेश इत्थशाली हों तो मृत्युफल कहाहै, परंतु जिस वर्ष में यह योग है उससे मारक दशा वा दशारिष्ट किसी प्रकार- काभी हो तो मृत्यु होती है. केवल उक्त इत्थशाल ही हो तो मरणतुल्य कष्टमात्रही होताहै और दिनके वर्षप्रवेशसे वर्षेश मंगल सूर्य्यसहित होतो राजासे भय होवे ॥ ३ ॥ ● शार्दूलवि०-सूर्य्येमूसरिफेसितेनजननेवर्षेधिकारीतथा केंद्रेरा जगदाद्भ्यं चरुगसृक्स्थानेधिकारीदुजे ॥ सौम्येक्रूरदृशाकुज- स्यरुगसृक्दोषादिनांशुस्थिते दग्धेबंधमृतीविदेशतइतिप्राहुर्बुध तादृशे ॥ ४ ॥ जन्ममें सूर्य शुक्रसे मूसरिफ कर्त्ता हो तथा वर्ष में पंचाधिकारियों से किसी अधिकारवाला होकर केंद्र में हो तो राजरोग ( क्षयरोग ) का भय होवे १ और जन्मके भौमराशिस्थितमें अधिकारी बुध वर्षमें हो तो यही फल देताहै २ तथा अधिकारी बुधपर मंगलकी क्रूर दृष्टि हो तो रुधिर दोपसे रोग होवे ३ तथा अधिकारी बुध अस्तंगत और मंगलयुत दग्ध हो तो. विदेशमें बंधनसे मृत्यु होवे ॥ ४ ॥