पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१४०

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(१३२') ताजिकनीलकण्ठी । जन्ममें बुध पठ्ठेश हो और वर्षमें छठे स्थानमें हो तो थोड़ा लाभ देता है: चार प्रकारके ग्रहयुद्धसे पापपीडित बृहस्पति अष्टम वा धनस्थानमें हो तो निश्चय राजासे दंड पडे ॥ ५ ॥ अनुष्टु०-गुरुर्वित्तेशु भैर्दृष्टोयुतोवाराजसौख्यदः ॥ जन्मन्यन्देचमुथहाराशिंपश्यन्विशेषतः ॥ ६ ॥ बृहस्पति धनस्थान में शुभग्रहोंसे युक्त वा दृष्ट हो तो राजासे सुख देता है. जन्म और वर्ष में भी मुंथा राशिको बृहस्पति देखे तो विशेष राजमुख देताह्रै ॥ ६ ॥ अ. ० - एवंसितेन्दपेभूरिद्रव्यंधान्यंचजायते ॥ वित्तलळेशसंयोगो वित्तसौख्यविनाशदः ॥ ७ ॥ बृहस्पतिके तरह शुक्र धनस्थानमें शुभग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो और वर्पे- शभी शुक्रही हो तो बहुतसा धन तथा अन्न होता है और धनेश लग्नेश एकही स्थानमें हों तो धन सुखका नाश करते हैं, इसमें भी विचार है कि, इनका इत्थशाल हो तो धनसुख होता है "ईसराफ हो तो धन सुखका नाश होता है" और इत्थशाल वा ईसराफ न हो केवल संयोगमात्र हो तो भी धन सुख होता है यह अर्थ बहुत संमत है ॥ ७ ॥ 'अनुष्ठ० - एवंबुधेसवीय्यैस्यापि मैनम् || जन्मलग्नगताः सौम्यावर्षेर्थेधनलाभदाः ॥ ८ ॥ ऐसेही बुध बलवान् वर्षेश धनस्थानमें शुभ युक्त दृष्ट हो तो लिखनेके काम तथा ज्ञान शास्त्र और उद्यम ( व्यवसाय ) से धन मिले और जन्म में जो शुभग्रह लग्न में हैं वही वर्षमें धनस्थान में हों तो धनलाभ देते हैं ॥ ८ ॥ अनुष्ट ० - मालसद्मनिवित्ते वा बुधेज्यसितसंयुते ॥ तैर्वादृष्टेधनंभूरि स्व लेराज्यमाप्नुयात् ॥ ९ ॥ पारसीय भाषा में ( माल ) धनको कहते हैं मालस्थानमें वा मालसहममें बुध बृहस्पति और शुक्र हों वा ये तीनों उसे देखें तो बहुत धन तथा अपने कुलका राज्य मिले ॥ ९॥