पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१३७

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भाषाटीकासमेता । (१२९ ) अथ भावविचारेषु तावत्प्रथमभावविचारः | अनुष्टु० - योयोभावःस्वामिसौम्यैर्दृष्टोयुक्तोयमेधते ॥ पापदृष्टयुतेनशोमिश्र मिश्रफलंवदेत् ॥ १ ॥ जो जो भाव अपने स्वामी वा शुभ ग्रह से युक्त वा दृष्ट हो उस भावकी वृद्धि और जो भाव पापग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो उसकी हानि होती है, शुभ पाप दोनोंसे युक्त वा दृष्ट वा एक प्रकारसे युक्त दूसरे प्रकारसे दृष्ट हो तो मिश्रफल कुछ शुभ कुछ अशुभ कहना, सभी भावोंमें यह विचार है ॥ १ ॥ इंद्रव - लग्नाधिपेवीर्य्ययुते खानिनैरुज्यमर्थागमनविलासः ॥ स्यान्मध्यवीय्यँल्पसुखार्थलाभःक्केशाधिकत्वंविपदल्पवय्यें ॥२॥ लग्नेश पूर्वोक्त प्रकारसे बलवान् हो तो सौख्य तथा नीरोगता धनप्राप्ति और हास विलासादि सुख होवें. जो मध्यवीर्य्य हो तो सौख्य और धनलाभ थोड़ा थोड़ा होते हैं जो अल्प वा हीनवीर्य्य हो तो अधिक क्लेश और विपत्ति होती है ॥ २ ॥ · शार्दूलवि० - जन्माब्दांगपतींथिहापतिसमानाथाद्यधीकारवा- न्मूर्य्यो नष्टबलस्त्वगक्षिविलयंकुर्य्यान्निरुत्साहताम् ॥ नीचत्वं पितृमातृतोऽप्यभिभवश्चंद्वेक्षिकार्य्यक्ष योदारिद्र्धंचपराभवोगृह- कलिर्व्याध्यादिभीतिस्तथा ॥ ३ ॥ 'अधिकारी ग्रहोंके निर्बलतामें प्रत्येक के फल कहते हैं कि जन्मलमेश वा वर्षलग्नेश वा मुंथेश अथवा वर्षेश नष्टबली पंचवर्गीमें ५ से न्यून होनेमें यह फल है कि, सूर्य्य हो तो नेत्ररोगसे दृष्टिहानि कुष्ठ दुनु आदि त्वचारोग उत्साहभंग होवें तथा नीचकर्म करने पड़ें माता पितासे "पराभव” अधि- कारहानि होवे चन्द्रमा हो तो नेत्रक्षय कार्य्यहानि दरिद्र अपमान घरमें कलह मानसीव्यथा रोगभय होते हैं ॥ ३ ॥ - 'अनुष्टु० - भौमेऽबलत्वं भीरुत्वं बुधे मोहपराभवौ ॥ जीवे धर्मक्षयः कष्टफलाजीवनवृत्तयः ॥ ४ ॥ पूर्वोक्त प्रकारसे मंगल बलहीन अधिकारी हो तो शरीरमें निर्बलता और ९