पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१३३

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भाषाटीकासमेता । (१२५) अनुष्टु०-नीचे त्रिराशिपे पापदृष्टे कार्य्यं विनश्यति ॥ इंथिहेशेब्दपे वारिभेस्तंयाते रुजा विपत् ॥ १८ ॥ त्रिराशिपति नीच राशिमें पापदृष्ट हो तो अभिलषित कार्य्यका नाश होता है १ और मुंधेश तथा वर्षेश छठा वा उपलक्षणसे आठवाँ अस्तंगत हों तो रोगों से विपत्ति होवे'यह २ दो योगहैं ॥ १८ ॥ शार्दूलवि० - चंद्रोरिः फषड भूधुनगतो दृष्टोऽशुभैनों भैःसोरिष्टं विदधातिमृत्युमथवाभौमेक्षणाद भीः || श द्वाशनिराहुकेतु - भिररेभीतिरुजां वायुजां दारिद्र्यं रविणाशुभं भहशेज्यालो- कनादादिशेत् ॥ १९ ॥ चन्द्रमा बारहवें छठे आठवें प्रथम वा सप्तम स्थानमें हो इसपर पाप ग्रहोंकी दृष्टि हो शुभ ग्रहोंकी न हो तो आर्रष्ट वा मृत्युही देदेता है, दृष्टिवश विशेष फल यह है कि उक्तप्रकार के चन्द्रमा पर मंगलकी दृष्टि हो तो अग्निका भय वा शस्त्रसे भय देताहै शाने राहु वा केतुकी दृष्टि हो तो शत्रुभय तथा वात- रोगसे पीडा तथा सूर्य्यकी दृष्टि हो तो दरिद्रता देता है, जो शुभग्रहकी विशेष करके बृहस्पतिकी दृष्टिभी हो तो उक्तपीडा परिहार उपरांत कल्याणदेता है १९ व०ति० ॠरान्वितेक्षितयुताशनिनेंथिहाधिव्याधिप्रदाजनुषि रिःफसुखारिरंध्रे ॥ धूनेच वर्षतनुनैधनगा मृतिं सा दत्ते ले- क्षितयुतेत्यपिचित्यमाय्र्यैः ॥ २० ॥ इतिनीलकंठ्यांफलतंत्रेऽरिष्टाध्यायः ॥ ३ ॥ मुंथा क्रूरग्रहसे युक्त हो और शनि उसे देखे अनिष्टस्थान ६ । १२ १८ । ४ में हो तो मानसीव्यथा तथा शरीरमें रोग देती है । यही मुंथा जन्मकाल में अर्थात् जन्मलनसे १२ | ४ | ६ । ८ । ७ स्थानमें हो तथा वर्ष में अष्टम स्थानगत हो पापग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो तो मृत्यु देती है इस प्रकार विद्वानोंने विचार करना ॥ २० ॥ 1 इतिमहीधरकृतायां नीलकंठीभाषाटी कायांफलतंत्रे अरिष्टविचाराध्यायस्तृतीयः ३