पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/११७

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भाषाटीकासमेता । (१०९ ) मध्यवली शुक्र वर्षेश होतो पूर्वोक्त उत्तमबलीका फल सभी मध्यम होते हैं तथा आजीवनार्थ थोडा द्रव्यादि मिलते हैं गुप्त प्रकारसे दुःख लगा रहे, वाच्य अथवा अवाच्य सुख मध्यम वृत्ति जीवनोपाय अल्प रहे; जो पापग्रह शत्रुसे युक्त दृष्ट हो तो विपत्ति होवे धननाश भी होवे ॥ २८ ॥ व॰ ति० - शुक्रेन्दपेघम बलेमन सोऽतितापो लोकोपहासविप दो निजवृत्तिनाशः|| द्वेषः कलत्रसुतमित्रजने कष्टाद शनं च विफलक्रियता न सौख्यम् ॥ २९ ॥ अघन बली शुक्र वर्षेश हो तो मनमें अति संताप रहे लोगों से उपहास होवे, अपनी आजीवनकी वृत्ति नष्ट होवे, स्त्री पुत्र मित्रजनोंसे वैर होवे, भोजन भी अति कष्टसे प्राप्त होवे जो कुछ कर्म भलाई निमित्त करै वही निष्फल होवे, सुख न मिले ॥ २९ ॥ i S व · ति० - मंदेऽब्दपे बलिनि नूतनभूमिवेश्मक्षेत्राप्तिरर्थनिचयो यवनावनीशात् ॥ आरामनिर्मितजलाशयसौख्यमंग : लोचितपदाप्ति णाग्रणीत्वम् ॥ ३० ॥ उत्तम बली शनि वर्षेश हो तो नवीन गृह भूमि ( खेती) मिले, धन बहुत- मिले, यवनावनीश ( मुसलमान आदि जाति राजा ) वा राजतुल्यसे मिले, उपवन ( बगीचा ) बनावे, जलाशय, कूप तडागादिका सुख मिले, शरीर पुष्ट रहे. अपने कुलयोग्य अधिकार मिले अपने समाजमें श्रेष्ठ रहे ॥ ३० ॥ व ति० - अब्दाधिपेरविसुते खलुमध्यवीयेंस्यान्मध्यमं नि- खिलमन्नभुजिस्तु कात् ॥ दासोष्टमाहिष लान्यरतस्तुलाभः पानं फलं भवति पापयुगीक्षणेन ॥ ३१ ॥ . O मध्यबली शनि वर्षेश हो तो पूर्वोक्त फल उत्तम सभी मध्यम होवें तथा अन्न खाने में किसी प्रकार (अपची ) अरुची, आदिसे होवे और दास: ऊंट भैंस तथा अपनेसे हीन कुलमें तत्पर रहे कहीं 'कुधान्यरत' ऐसा पाठ भी है अर्थात दुष्ट अन्न कोद्रव, साँवा, जुवार, बगड आदिमें तत्पर