पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१११

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भाषाटीकासमेता | (१०३) ● दो तीन वा चार अधिकार मिलेही वह राजा होता है. इतने मतोंमें प्रमाणभी अन्यग्रन्थोंसे है, इनमें भी जिसका बल या दृष्टि अधिक हो वही वर्षराजा करना ॥ ७ ॥ - उपजा० - बलादिसाम्येरविराशिपोह्निनिशींदुराशीडितिकेचिदाहुः ॥ येनेत्थशालोग्दविभुःशशीसवर्षाधिपश्चंद्रमपोऽन्यथात्वे ॥ ८ ॥ किसीका मत है कि बल तथा दृष्टिके तुल्य पांचौंके होनेमें दिनका वर्ष हो तो सूर्य्यराशीश रात्रिका वर्ष हो तो चन्द्रराशीश राजा करना. पूर्वोक्त प्रकारोंसे चंद्रमा वर्षेश हो तो यह वर्षेश न करना, पांच अधिकारियों मेंसे जिसके साथ यह इत्थशाली हो उसे वर्षेश करना, जब किसीके साथ इत्थशाल भी न हो तो जिस राशिमें चन्द्रमा बैठा है उसके स्वामीको वर्षेश करना, जो चंद्रमा कर्कका हो तो चंद्रराशीश चंद्रमाही हुआ, तब तो चन्द्र- माही वर्षेश करना पड़ा इसी हेतु आचार्ग्यने आगे चंद्रमा वर्षेशके फल भी लिखे हैं.. नहीं तो चंद्रमा राजा न होता तो इसका राजत्व फलभी नहीं होनाथा ॥ ८ ॥ वसंतति ०-अब्दाधिपोव्ययषडष्टमभिन्नसंस्थो लब्धोदयोन्द जनुपोःसदृशो बलेन || निःशेषमुत्तमफलंविदधातिकायेनैरुज्य राज्यबललब्धिमती वसौख्यम् ॥ ९ ॥ अब वर्षेशका सामान्य फल कहते हैं कि, वर्षेश व्यय १२ षट् ६ वा अष्ट८ इन स्थानों में न हो तथा जन्मवर्णमें उदयी हो अस्तंगत न हो बलमें पूर्ण हो यद्वा जन्ममें तथा वर्षभी बली हो तो संपूर्ण उत्तम फल देता है तथा शरी- रमें नीरोगिता कुलानुमान राजसुख और बल तथा अतिसौख्य देता है ॥ ९ ॥ अनु० - बलपूर्णेन्दपे पूर्ण शुभं मध्येच मध्यममम् || अधमे दुःखशोकारिभयांनि विविधाः शुचः ॥ १० ॥ वर्षेश पूर्वोक्त गणितांगत बलसे पूर्ण बली हो तो शुभ फल पूर्ण देता है मध्यबली हो तो मध्यम अर्थात् शुभ न अशुभ और अधम बली हो तो