पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१०९

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। (१०१ ) 7" 77 " लनस्पष्टसे इष्टकाल निकालनेका "उदाहरण " जन्मकालका सूर्य ० । १८ । ४२ । ३१ है; संवत् १९४३ वैशाख कृष्ण द्वादशी शनिवार इष्टघटी १३ | ५४ वर्ष प्रवेश३८ में भी सूर्य स्पष्ट यही ०।१८।४२।३१ है अब इससे लग्नस्पष्ट और लग्नस्पष्टसे इटकाल लेना है सूर्यस्पष्ट से लनस्पष्टकी विधि उदाहरणसहित प्रथम संज्ञातंत्रके २१ | २२ | २३ श्लोकके टीकामें प्रकट लिखाहै सूर्य्यस्पष्टसे इष्टकाल के लिये ग्रहलाघवका श्लोकार्प “ अर्कभोग्यस्तनोर्मुक्तकालान्वितो युक्तमध्यादयोभष्टिका लोभवेत् ॥ यह है, इसके क्रमसे लग्नस्पष्टसे इष्टघटी साधन होताहै, " उदाहरण " सूर्य स्पष्ट राश्यादि० । १८ । ४२ | ३१ लग्न स्पष्ट ३ | १० | २७ । ३ सायन सूर्य१ ।११ । २६ । ३१ अंशादि ३० में घटायके भोग्यांश १८ | में ३३ | २९ हुये, ३० से उद्धृत करनेपर भोग्य काल १५० । १९ । १२ हुवा, सायन लग्न ४ | ३ | ११ | ३३ सोदयसे गुनके ३० से भाग दिया तो भुक्तकाल ३७ | ४०/४५ हुवा, अर्क भोग्य काल १५० | १९ १२ में जोड दिया १८७ । ५९ | ५७ अब सूर्य और सायन लग्नके बीच जितने लग्नहैं उनके स्वदेशीय खंड जोडने हैं यहां मिथुन ३०० कर्क३४६ ये दो जोड दिये तो, ८३३ । ५९ । ५७ हुये इनमें ६० से भागदेकर लब्धि १३ घटी शेष ५३ पला और विशेष विपलभी ५९ । ५७ जानना अर्द्धाधिक्ये रूपम् १ के प्रमाणसे १३ । ५४ यह इष्टकाल होगया जो . किसीकारण इष्टकाल खोगया हो और लग्न स्पष्ट सूर्य स्पष्ट हो तो ऐसेही इष्ट 'निकाललेना यह प्रसंगसे लिंख दियाह्रै ॥ ३ ॥ · भावाटीकासमेता । टीकासमेत वसंतति • - तात्कालिकास्तुखचराः सुधिया विधेयाः स्प विलग्नसुखभावगणो विधेयः || वीर्य तथोक्तविधिना निखिलग्रहा णामब्दाधिपस्यविधयेकथयामियुक्तिम् ॥ ४ ॥ ग्रंथकर्त्ता कहता है कि प्रथमोक्त प्रकारसे तात्कालिक ग्रह स्पष्ट लग्नादिभाव स्पष्ट करके सद्बुद्धिमान ज्योतिषीने ग्रह तथा भावोंका बल उसप्रकार सभीका