पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१०७

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भाषाटीकासमेता । (९९) ज्यादिकी रीतिमें निपुण होरहा ऐसा चिन्तामणि नामा दैवज्ञ गर्गमहर्षिके कुलका भूषण हुआ ॥ ६४ ॥ ३९ ॥ उजा० - तदात्मजोनंतगुणोऽस्त्यनंतो योऽधोक्सदुक्तिंकिलकामधेनुम् ॥ संतुष्टयेजातक पद्धतिंचन्यरूपयद्दुष्टमतंनिरस्य ॥ ६५ ॥ ४० ॥ "तिसका पुत्र अगणित गुणशाली अनंत नामा दैवज्ञ है जिसने सुन्दर वाणीयुक्त गणितरूपी कामधेनु जैसी कामधेनुका दोहन किया, अर्थात काम- धेनुगणितकी टीकाकी तथा गुणज्ञ सज्जनोंके प्रसन्नतार्थ जन्मपद्धति सम्प्रदायके अनभिज्ञ दुष्ट जनोंके दुष्ट मतको नाश करके गणितग्रन्थविशेष जातकपद्धतिभी निर्मित करी ॥ ६५ ॥ ४० ॥ इंद्रव० - पद्मां बयासाविततोविपश्चिच नीलकंठः श्रुतिशास्त्रनिष्टः ॥ विद्वच्छिवप्रीतिकरंव्यधात्तंसंज्ञाविवेकंसहमावतंसम् ॥ ६६ ॥ ४१ ॥ ऊपर अपने पिताका नाम अनन्तज्योतिर्विद् ग्रन्थकर्त्ताने प्रकट किया पुनः पद्मानामा अपनी मातासे उत्पन्न पण्डित वेद तथा शास्त्र व्याकरण मीमांसा ज्योतिष तन्त्रादि पारंगम श्रीनीलकंठ नामा दैवज्ञने संज्ञाविवेक नामा ताजिकग्रंथका एक तंत्र जिसमें सहमरूप भूषण है ऐसा शिवनामा पाठ क पंडित महाराष्ट्रदेशीय ब्राह्मणकी प्रीति करनेवाला यद्दा, विद्वद् भूत भविष्य वर्तमान त्रिकालज्ञ सर्वोतर्यामी शिव सकलदुःखापनोदन पूर्वक कल्याण कर णशील श्रीमहादेवजी की प्रीति करनेवाला यह ग्रन्थ निर्माण किया ॥ ६६ ॥ ४१ ॥ इति महीधरकृतायां नीलकंठीभाषायां सहमविवेको नाम तृतीयं शकरणम् ॥ ३ ॥ श्रीनील कंव्याविदधान्महीधरस्संज्ञाविवेकस्यमतिप्रवर्द्धिनीम् ॥ माही घरोंसज्जनतोषकारिणीभाषाविवृत्तिंसु मनःप्रसादिनीम् ॥ ४२ ॥ श्रीनीलकंठ दैवज्ञकृत ताजिकनीलकंठीके संज्ञाविवेक नाम एक प्रथम तंत्र की बुद्धि बढानेवाली तथा सज्जनोंको संतोष करनेवाली सद्बुद्धिपाठकोंके मन प्रसन्न करनेवाली माहीधरी नाम भाषाटीका महीधरने रची ॥ ४१ ॥ इति महीधरकृतनीलकंठीभाषाटीकायां प्रथमं संज्ञातंत्रम् |