सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/४५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
४३
अ. १ आ. १ सू. ८

पर बाजों वाली पुंछ से “और. सास्ना से, आंखों से छिपे हुए भी वैल का अनुमान होता है । वै के सींग करीहरिण भैस आदि से विलक्षण होते हैं, कुहान ऊँट से विलक्षण होता है । पूंछ के सिर पर बाकों का गुपछा भी गौ का भैस से विलक्षण होता है। अतएव इनको देखकर गौ का अनुमान होता है।

सं०-इस प्रकार लोक व्यवहार में मनुमान की प्रमाणता दिखला कर अनुमान से वायु की सिाद्ध करत है

', स्पशश्च वायोः ॥९॥

और स्पर्श,वायु का (लंग) है । ..

', , व्या०-चलते फिरते समय जो हमारेशारीर को स्पर्श अनुभव होता है, यह किसी द्रव्प के आश्रय है, क्योंकि गुण हैं । यदि वह द्रव्य पृथिवी जल वा तेज होता, तो रूप भी उसका.दृष्टि आता, पर रूप उस का -दृष्टि आता नहीं, , स्पी. ही अनुभव / होता है, इसलिए वह इन तीनों से विलक्षण कोई और ही द्रव्य है । वही वायु है ।

इसी प्रकार .शाखाओं के चलने से भी-वायु का अनुमान होता है, कि जैसे नदी के प्रवाह की टक्कर-से वैत की शाखाएँ हिलती हैं, ऐसे ही वृक्षों की शाखाएं, भी अवश्य किसी की टङ्कर से हिल रही हैं । दृक्षों की सां सा शाब्द से भी वायु का अनुमान होता है, क्योंकि शब्द भी टक्कर से होता है, जैसे घड्याल और ढोलका मान्द । तिनके आाद के आकाशा में उड़ने से भी वायु का अनुमान होता है, जैसे पानी पर नौका तैरती है, इसी प्रकार तिनके भी भाकाशा में अवश्य किसी भाई पर ही तैरते फिरते हैं, वही चायु है।