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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/६

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'वैशेषिक-दर्शन ।

व्याख्यान वैशेषिक दर्शन कं ) वैशेषिक के मूलसूत्र भगवान् कणाद मूलस्त्रओरउन पर नेन रचे हैं। उन पर जां भाष्य इस समय मिलता है, वह प्रशस्त मुनि का रचा हुआ भशस्त पाद भाष्य * नाम मे प्रसिद्ध है। इस भाप्य पर (३) (क) श्री उदयनाचार्य विराचित ‘किरणावली' नामी एक टीका है, और (ख) भट्ट श्री श्रीधराचार्य विरचित ‘न्याय कन्दली' नामी दूसरी टीका है, और जगदीश भट्टाचार्य कृत ‘भाष्यसूक्ति'तीसरी टीका है, और ‘भिक्षुवार्तिक'चौथीटीका है। और शंकरमिश्र कृत ‘कणादरहस्य’ पांचवीं है। उदयनाचार्य और श्रीधराचार्य दोनों एक ही शताब्दी में हुए हैं। उदयना चार्य ने एक 'लक्षणावली' नामी ग्रन्थ भी रचा है, उस के अन्त मे उन्होंने उस के रचन का समय यह दिया है-'तर्का म्वराङ्क प्रमितष्वतीतेषु शकान्ततः । वर्षेघूदयनश्चक्रे सुवोधां लक्ष णावलीम्'अर्थात् शक संवत्के९०६वर्ष(वि० सं० १०४१)वीतने पर उदयन ने लक्षणावली वनाई। और श्रीधरने न्याय कन्दली के अन्त में इस की रचना का काल यह दिया है-‘घ्याधकदशो-. तरनवशतशाकाव्द न्याय कन्दली रचिता । श्रीपाण्डुदासया चित भट्ट श्री श्रीधरेणेयम् ? अर्थात् शक संवत् ९१३(=विक्रम् स० १०४८) में श्री पाण्डुदास की प्रार्थना से भट्ट श्री श्रीधर नेन यह न्याय कन्दली. रची । (४) इस के आगे किरणावली


५८ ‘प्रशस्तपादभाप्य' से पहले एक औरभाष्य के होने काकिर णाचली' और 'कन्दली' दोनों से पता चलता है, और किरनावली' भास्कर, में पद्मनाभ ने उस भाष्य घको रावण प्रणीत लिखा है ।