सामग्री पर जाएँ

ब्रह्मपुराणम्/अध्यायः ४०

विकिस्रोतः तः
← अध्यायः ३९ ब्रह्मपुराणम्
अध्यायः ४०
वेदव्यासः
अध्यायः ४१ →
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८
  109. अध्यायः १०९
  110. अध्यायः ११०
  111. अध्यायः १११
  112. अध्यायः ११२
  113. अध्यायः ११३
  114. अध्यायः ११४
  115. अध्यायः ११५
  116. अध्यायः ११६
  117. अध्यायः ११७
  118. अध्यायः ११८
  119. अध्यायः ११९
  120. अध्यायः १२०
  121. अध्यायः १२१
  122. अध्यायः १२२
  123. अध्यायः १२३
  124. अध्यायः १२४
  125. अध्यायः १२५
  126. अध्यायः १२६
  127. अध्यायः १२७
  128. अध्यायः १२८
  129. अध्यायः १२९
  130. अध्यायः १३०
  131. अध्यायः १३१
  132. अध्यायः १३२
  133. अध्यायः १३३
  134. अध्यायः १३४
  135. अध्यायः १३५
  136. अध्यायः १३६
  137. अध्यायः १३७
  138. अध्यायः १३८
  139. अध्यायः १३९
  140. अध्यायः १४०
  141. अध्यायः १४१
  142. अध्यायः १४२
  143. अध्यायः १४३
  144. अध्यायः १४४
  145. अध्यायः १४५
  146. अध्यायः १४६
  147. अध्यायः १४७
  148. अध्यायः १४८
  149. अध्यायः १४९
  150. अध्यायः १५०
  151. अध्यायः १५१
  152. अध्यायः १५२
  153. अध्यायः १५३
  154. अध्यायः १५४
  155. अध्यायः १५५
  156. अध्यायः १५६
  157. अध्यायः १५७
  158. अध्यायः १५८
  159. अध्यायः १५९
  160. अध्यायः १६०
  161. अध्यायः १६१
  162. अध्यायः १६२
  163. अध्यायः १६३
  164. अध्यायः १६४
  165. अध्यायः १६५
  166. अध्यायः १६६
  167. अध्यायः १६७
  168. अध्यायः १६८
  169. अध्यायः १६९
  170. अध्यायः १७०
  171. अध्यायः १७१
  172. अध्यायः १७२
  173. अध्यायः १७३
  174. अध्यायः १७४
  175. अध्यायः १७५
  176. अध्यायः १७६
  177. अध्यायः १७७
  178. अध्यायः १७८
  179. अध्यायः १७९
  180. अध्यायः १८०
  181. अध्यायः १८१
  182. अध्यायः १८२
  183. अध्यायः १८३
  184. अध्यायः १८४
  185. अध्यायः १८५
  186. अध्यायः १८६
  187. अध्यायः १८७
  188. अध्यायः १८८
  189. अध्यायः १८९
  190. अध्यायः १९०
  191. अध्यायः १९१
  192. अध्यायः १९२
  193. अध्यायः १९३
  194. अध्यायः १९४
  195. अध्यायः १९५
  196. अध्यायः १९६
  197. अध्यायः १९७
  198. अध्यायः १९८
  199. अध्यायः १९९
  200. अध्यायः २००
  201. अध्यायः २०१
  202. अध्यायः २०२
  203. अध्यायः २०३
  204. अध्यायः २०४
  205. अध्यायः २०५
  206. अध्यायः २०६
  207. अध्यायः २०७
  208. अध्यायः २०८
  209. अध्यायः २०९
  210. अध्यायः २१०
  211. अध्यायः २११
  212. अध्यायः २१२
  213. अध्यायः २१३
  214. अध्यायः २१४
  215. अध्यायः २१५
  216. अध्यायः २१६
  217. अध्यायः २१७
  218. अध्यायः २१८
  219. अध्यायः २१९
  220. अध्यायः २२०
  221. अध्यायः २२१
  222. अध्यायः २२२
  223. अध्यायः २२३
  224. अध्यायः २२४
  225. अध्यायः २२५
  226. अध्यायः २२६
  227. अध्यायः २२७
  228. अध्यायः २२८
  229. अध्यायः २२९
  230. अध्यायः २३०
  231. अध्यायः २३१
  232. अध्यायः २३२
  233. अध्यायः २३३
  234. अध्यायः २३४
  235. अध्यायः २३५
  236. अध्यायः २३६
  237. अध्यायः २३७
  238. अध्यायः २३८
  239. अध्यायः २३९
  240. अध्यायः २४०
  241. अध्यायः २४१
  242. अध्यायः २४२
  243. अध्यायः २४३
  244. अध्यायः २४४
  245. अध्यायः २४५
  246. अध्यायः २४६

दक्षकृतिशिवस्तुति-वर्णनम्
ब्रह्मोवाच
एवं दृष्ट्वा तदा दक्षः शंभोर्वीर्यं द्विजोत्तमाः।
प्राञ्जलिः प्रणतो भूत्वा संस्तोतुमुपचक्रमे॥ ४०.१ ॥

दक्ष उवाच
नमस्ते देवदेवेश नमस्तेऽन्धकसूदन।
देवन्द्र त्वं बलश्रेष्ठ देवदानवपूजित॥ ४०.२ ॥

सहस्राक्ष विरूपाक्ष त्र्यक्ष यक्षाधिपप्रिय।
सर्व्वतःपाणिपादस्त्वं सर्वतोक्षिशिरोमुखः॥ ४०.३ ॥

सर्दतःश्रुतिमांलोके सर्वमावृत्य तिष्ठसि।
शङ्कुकर्णो महाकर्णः सुम्भकर्णोऽर्मवालयः॥ ४०.४ ॥

गजेन्द्रकर्णो गोकर्णः शतकर्णो नमोऽस्तु ते।
शतोदरः शतावर्तः शतजिह्‌वः सनातनः॥ ४०.५ ॥

गायन्ति त्वां गायत्रिणो अर्चयन्त्यर्कमर्किणः।
देवदानवगोप्ता च ब्रह्म च त्वं शतक्रतुः॥ ४०.६ ॥

मुर्तिमांस्वं महामूर्तिः समुद्रः सरसां निधिः।
त्वयि सर्वा देवता हि गावो गोष्ठ इवाऽऽसते॥ ४०.७ ॥

त्वत्तः शरीरे पश्यामि सोममग्निजलेश्वरम्।
आदित्यमथ विष्णुं च ब्रह्माणं सवृहस्पतिम्॥ ४०.८ ॥

क्रिया करणकार्ये च कर्ता कारणमेव च।
असच्च सदसच्चैव तथैव प्रभवाव्य (प्य) यौ॥ ४०.९ ॥

नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च।
पशूनां पतये चैव नमोऽस्त्वन्धकघातिने॥ ४०.१० ॥

ज्ञिजटाय त्रिशीर्षाय त्रिसूलवरधारिणे।
त्र्यम्बकाय त्रिनेत्राय त्रिपुरघ्नाय वै नमः॥ ४०.११
नमश्चण्डाय मुण्डाय विश्वचण्डधराय च।
दण्डिने शङ्कुकर्णाय दण्डिदण्डाय वै नमः॥ ४०.१२ ॥

योऽर्धदण्डिकेशाय शुष्काय विकृताय च।
विलोहिताय धूम्राय नीलग्रीवाय वै नमः॥ ४०.१३ ॥

नमोऽस्त्वप्रतिरूपाय विरूपाय शिवाय च।
सूर्याय सूर्यपतये सूर्यध्वजपताकिने॥ ४०.१४ ॥

नमः प्रमथनाशाय कृषस्कन्धाय वै नमः।
नमो हिरण्यगर्भाय हिरण्यकवचाय च॥ ४०.१५ ॥

हिरण्यकृतचूडाय हिरण्यपतये नमः।
शत्रुघाताय चण्डाय पर्मसंधशयाय च॥ ४०.१६ ॥

नमः स्तुताय स्तुतये स्तूयमानाय वै नमः।
सर्वाय सर्वभक्षाय सर्वभूतान्तरात्मने॥ ४०.१७ ॥

नमो होमाय न्त्राय शुक्लध्वजपताकिने।
नमोऽनम्याय नम्याय नमः किलकिलाय च॥ ४०.१८ ॥

नमस्त्वां शयमानाय शयितायोत्थिताय च।
स्थिताय धावमानाय कुब्जाय कुटिलाय च॥ ४०.१९ ॥

नमो नर्तनशीलाय मुखवादित्रकारिणे।
बाधापहाय लुब्धाय गीतवादित्रकारिणे॥ ४०.२० ॥

नमो ज्येष्ठाय श्रेष्ठाय बलप्रमथनाय च।
उग्राय च नमो नित्यं नमश्च दशबाहवे॥ ४०.२१ ॥

नमः कपालहस्ताय सितभस्मप्रियाय च।
विभीषणाय भीमाय भीष्मव्रतधराय च॥ ४०.२२ ॥

नानाविकृतवक्त्राय खड्गजिह्वोग्रदंष्ट्रिणे।
पक्षमासलवार्धाय तुम्बीणाप्रियाय च॥ ४०.२३ ॥

अघोरघोररूपाय घोराघोरतराय च।
नमः शिवाय शान्तायः नमः शान्ततमाय च॥ ४०.२४ ॥

नमो बुद्धाय शुद्धाय संविभागप्रियाय च।
पवनाय पतङ्गाय नमः सांख्यापराय च॥ ४०.२५ ॥

नमश्चण्डैकघण्टाय घण्टाजल्पाय घण्टिने।
सहस्रशतघण्टाय घण्टामालाप्रियाय च॥ ४०.२६ ॥

प्राणदण्डाय नित्याय नमस्ते लोहिताय च।
हूंहूंकाराय रुद्राय भगाकारप्रियाय च॥ ४०.२७ ॥

नमोऽपरवते नित्यं गिरिवृक्षप्रियाय च।
नमो यज्ञाधिपतये भूताय प्रस्तुताय च॥ ४०.२८ ॥

यज्ञवाहाय दान्ताय तप्याय च भगाय च।
नमस्तटाय तट्याय तटिनीपतये नमः॥ ४०.२९ ॥

अन्नदाययान्नपतये नमस्त्वन्नभुजाय च।
नमः सहस्रशीर्षाय सहस्रचरणाय च॥ ४०.३० ॥

सहस्रोद्धतशूलाय सहस्रनयनाय च।
नमो बालार्कवर्णाय बालरूपधराय च॥ ४०.३१ ॥

नमो बालार्करूपाय कालक्रीडनकाय च।
नमः शुद्धाय बुद्धाय क्षोभणाय भयाय च॥ ४०.३२ ॥

तरङ्गाङ्कितकेशाय मुक्तकेशाय वै नमः।
नमः षट्कर्मनिष्ठाय त्रिकर्मनियताय च॥ ४०.३३ ॥

वर्णाश्रमाणां विधिवत्पृथग्धर्मप्रवर्तिने।
नमः श्रेष्ठाय ज्येष्ठाय नमः कलकलाय च॥ ४०.३४ ॥

श्वेतपिङ्गलनेत्राय कृष्णरक्तेक्षणाय च।
धर्मकामार्थमोक्षाय क्रथाय क्रथनाय च॥ ४०.३५ ॥

साख्याय सांख्यमुख्याय योगाधिपतये नमः।
नमो रथ्याथिरथ्याय चतुष्पथपथाय च॥ ४०.३६ ॥

कृष्णाजिनोत्तरीयाय व्यालयज्ञोपवीतिने।
ईशान रुद्रसंघात हरिकेश नमोऽस्तु ते॥ ४०.३७ ॥

त्र्यम्बकायाम्बिकानाथ व्यक्ताव्यक्त नमोऽस्तु ते।
कालकामदकामघ्न दुष्टोद्धृत्तनिषूदन॥ ४०.३८ ॥

सर्वगर्हितसर्वघ्न हद्योजात नमोऽस्तु ते।
उन्मादनशतावर्त गङ्गातोयार्द्रमूर्धज॥ ४०.३९ ॥

चन्द्रार्धसंयुगावर्त मेघावर्त नमोऽस्तु ते।
नमोऽन्नदानकर्त्रे च अन्नदप्रभवे नमः॥ ४०.४० ॥

अन्नभोक्त्रे च गोप्त्रे च त्वमेव प्रलयानल।
जरायुजाण्डजाश्चैव स्वेदजोद्भिज्ज एव च॥ ४०.४१ ॥

त्वमेव देवदेवेश भूतग्रामश्चतुर्विधः।
चराचरस्य स्रष्टा त्वं प्रतिहर्ता त्वमेव च॥ ४०.४२ ॥

त्वमेव ब्रह्मा विश्वेश अप्सु ब्रह्म वदन्ति ते।
सर्वस्य परमा योनिः सु धांशो ज्योतिषां निधिः॥ ४०.४३ ॥

ऋक्सामानि तथोंकारमाहुस्त्वां ब्रह्मवादिनः।
हायि हायि हरे हायि हुवाहावेति वाऽसकृत्॥ ४०.४४ ॥

गायनति त्वां सुरश्रेष्ठाः सामगा ब्रह्मवादिनः।
यजुर्मय ऋङ्मयश्च सामाथर्वयुतस्तथा॥ ४०.४५ ॥

पठ्यसे ब्रह्मविद्भिस्त्वं कल्पोपनिषदां गणैः।
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा वर्णश्रिमाश्च ये॥ ४०.४६ ॥

त्वमेवाऽऽश्रमसंघाश्च विद्युत्स्तनितमेव च।
वृषाणां ककुदं त्वं हि गिरीणां शिखराणि च॥ ४०.४७ ॥

कला काष्ठा निसेषास्च नक्षत्राणि युगानि च।
वृषाणां ककुदं त्वं हि गिरीणां शिखराणि च॥ ४०.४८ ॥

सिंहो मृगाणां पतयस्तक्षकानन्तभोगिनाम्।
क्षीरोदो ह्यु दधीनां च मन्त्राणां प्रणवस्तथा॥ ४०.४९ ॥

वज्रं प्रहरणानां च व्रतानां सत्यमेव च।
त्वमेवेच्छा च द्वेषस्च रागो मोहः शमः क्षमा॥ ४०.५० ॥

व्यवसायो धृतिर्लोभः कामक्रोधौ जयाजयौ।
त्वं गदी त्वं शरी चापी खट्वाङ्गी मुद्‌गरो तथा॥ ४०.५१ ॥

छेत्ता भेत्ता प्रहर्ता च नेता मन्ताऽसि नो मतः।
दशलक्षणसंयुक्तो धर्मोऽर्थेः काम एव च॥ ४०.५२ ॥

इन्दुः समुद्रः सरितः पल्वलानि सरांसि च।
लतावल्यस्तुणौषध्यः पशवो मृगपक्षिणः॥ ४०.५३ ॥

द्रव्यकर्मगुणारम्भः कालपुष्पफलप्रदः।
आदिश्चान्तश्च मध्यश्च गायत्र्योंकार एव च॥ ४०.५४ ॥

हरितोलोहितः कृष्णोनीलः पीतस्तथा क्षणः।
कद्रुश्चकपिलो बभ्रुः कपोतो मच्छ (त्स्य) कस्तथा॥ ४०.५५ ॥

सुवर्मरेता विख्यातः सुवर्णश्चाप्यथो मतः।
सुवर्णनाम च तथा सुवर्णप्रिय एव च॥ ४०.५६ ॥

त्वममिन्द्रश्च यमश्चैव वरुणो धनदोऽनलः।
उत्फुल्लश्चिभानुस्च स्वर्भानुर्भानुरेव च॥ ४०.५७ ॥

होत्रं होता च होम्यं च हुतं चैव तथा प्रभुः।
त्रिसौपर्णस्तथा ब्रह्मन्यजुषां शतरुद्रियम्॥ ४०.५८ ॥

पवित्रं च पवित्राणां मङ्गलानां च मङ्गलम्।
प्राणश्च त्वं रजश्च त्वं तमः सत्त्वयुतस्तथा॥ ४०.५९ ॥

प्राणोऽपानः समानश्च उदानो व्यान एव च।
उन्मेषश्च निमेषश्च क्षुत्तृह्‌जृम्भा तथैव च॥ ४०.६० ॥

लोहताङ्गस्च दंष्टी च महावक्त्रो महोदरः।
शुचिरोमा हरिच्छ्‌मश्रुरूर्ध्वकेशश्चलाचलः॥ ४०.६१ ॥

गीतवादित्रनृत्याङ्गो गीतवादनकप्रियः।
मत्स्यो जालो जलोऽज्य्यो जलव्यालः कुटीचरः॥ ४०.६२ ॥

विकालश्च सुकालश्च दुष्कालः कालनाशनः।
मृत्युश्चैवाक्षयोऽन्तश्च क्षमामायाकरोत्करः॥ ४०.६३ ॥

संचर्तो वर्तकश्चैव संवर्तकबलाहकौ।
घण्टाकी घण्टाकी घण्टी चूडालो लवणोदधिः॥ ४०.६४ ॥

ब्रह्मा कालाग्निवक्त्रश्च दण्डी मुण्डस्त्रिदण्डधृक्।
चतुर्युगश्तुर्वेदश्चतुर्होत्रश्चतुष्पथः॥ ४०.६५ ॥

चातुराश्रम्यनेता च चातुवर्ण्यकरश्च ह।
क्षराक्षरः प्रियो धूर्तो गणैर्गण्यो गणादिपः॥ ४०.६६ ॥

रक्तमाल्याम्बराधरो गिरीशो गिरिजाप्रियः।
शिल्पीशः शिल्पिनः श्रेष्ठं सर्वशिल्प्रिप्रवर्तकः॥ ४०.६७ ॥

भगनेत्रान्तकश्चण्डः पूष्णो दन्तविनाशनः।
स्वाहा स्वधा वषट्कारो नमस्कार नमोऽस्तु ते॥ ४०.६८ ॥

गूढव्रतश्च गूढश्च गूढव्रतनिषेधितः।
तरमस्तारणश्चैव सर्वबूतेषु तारणः॥ ४०.६९ ॥

धाता विधाता संधाता निघाता धारणो धरः।
तपो ब्रह्म च सत्यं च ब्रह्मचर्यं तथाऽऽर्जवम्॥ ४०.७० ॥

भूतात्मा भूतकृद्‌भूतो भूतभव्यभवोद्भवः।
भूर्भूवः स्वरितश्चैव भूतो ह्यग्निर्महेश्वरः॥ ४०.७१ ॥

ब्रह्मावर्तः सुरावर्तः कामावर्त नमोऽस्तु ते।
कामबिम्बविनिर्हन्ता कर्णिकारस्रजप्रियः॥ ४०.७२ ॥

गोनेता गोप्रचारश्च गोवृषेश्वरवाहनः।
त्रैलोक्यगोप्ता गोविन्दोगच गोप्ता (?) एव च॥ ४०.७३ ॥

अखण्डचन्द्राभिमुखः सुमुखो दुर्मुखोऽडमुखः।
चतुर्मुखो बहुमुखो रणेष्वभिमुखः सदा॥ ४०.७४ ॥

हिरण्यगर्भः शकुनिर्धनदोऽर्थपतिर्विराट्।
अधर्महा महादक्षो दण्डधारो रमप्रियः॥ ४०.७५ ॥

तिष्ठन्स्थिरश्च स्थाणुश्च निष्कम्पश्च सुनिश्चलः।
दुर्वारणो दुर्विषहो दुःसहो दुरतिक्रमः॥ ४०.७६ ॥

दुर्धरो दुर्वशो नित्यो दुर्दर्पो विजयो जयः।
शशः शशाङ्कनयनशीतोष्णः श्रुत्तुषा जरा॥ ४०.७७ ॥

आधयो व्याधयश्चैव व्याधिहा व्याधिपश्च यः।
सह्यो यज्ञमृगव्याधो व्याधिनामाकरोऽकरः॥ ४०.७८ ॥

शिखण्डी पुण्डरीकश्च पुणडरीकावलोकनः।
दण्डधृक्‌चक्रदण्डस्च रौद्रभागविनाशनः॥ ४०.७९ ॥

विषपोऽमृतपश्चैव सुरापः भीरसोमपः।
मधुपस्चाऽऽपपश्चैव सर्वपस्च बलाबलः॥ ४०.८० ॥

वृषाङ्गराम्भो (?) वृषभस्तथा वृषभलोचनः।
वषभश्चैव विख्यातो लोकानां लोकसंस्कृतः॥ ४०.८१ ॥

चन्द्रादित्यौ चक्षुषी ते हृदयं च पितामहः।
अग्निष्टोमस्तता वेहो धर्मकर्मप्रसाधितः॥ ४०.८२ ॥

न ब्रह्मा न च गोविन्दः पुराणऋषयो न च।
माहात्म्यं वेवितुं शक्ता याथातथ्येन ते शिवः॥ ४०.८३ ॥

शिवा या मूर्तयः सूक्ष्मास्ते मह्यं यान्तु दर्शनम्।
ताभिर्मां सर्वतो रक्ष पिता पत्र मिवौरसम्॥ ४०.८४ ॥

रक्ष मां रक्षणीयोऽहं तवानघ नमोऽस्तु ते।
भक्तानु कम्पी भगवान्भक्तश्चाहं सदा त्वयि॥ ४०.८५ ॥

यः सहस्राण्यनेकानि पुंसामावृत्य दुर्दृशाम्।
तिष्ठत्येकः समुद्रान्ते स मे गोप्ताऽस्तु नित्यशः॥ ४०.८६ ॥

यं विनिद्रा जितश्वासाः सत्त्वस्थाः समादर्शिनः।
ज्योतिः पश्यन्ति युञ्जानास्तस्मै योगात्मने नमः॥ ४०.८७ ॥

संभक्ष्य सर्वभूतानि युगान्ते समुपस्थिते।
यः शेते जलमध्यस्थस्तं प्रपद्येऽम्बुशायिनम्॥ ४०.८८ ॥

प्रविश्य वदनं राहोर्यः सोमं पिबते निशि।
ग्रसत्यर्कं च स्वर्भानुर्भूत्वा सोमाग्निरे च॥ ४०.८९ ॥

अङ्गुष्ठमात्राः पुरुषा देहस्थाः सर्वदेहिनाम्।
रक्षन्तु ते च मां नित्यं नित्यं चाऽऽप्ययन्तु माम्॥ ४०.९० ॥

येनाप्युत्पादिता गर्भा अपो भागगताश्च ये।
तेषां स्वाहा स्वधा चैव आप्नुवन्ति स्वदन्ति च॥ ४०.९१ ॥

येन रोहन्ति देहस्थाः प्राणिनो रोदयन्ति च।
हर्षयन्ति न कृष्यन्ति नमस्तेब्यस्तु नित्यशः॥ ४०.९२ ॥

ये समुद्रे नदीदुर्गे पर्वतेषु गुहासु च।
वृक्षमूलेषु गोष्ठेषु कान्तारगहनेषु च॥ ४०.९३ ॥

चतुष्पथेषु रथ्यासु चत्वरेषु सभासु च।
हस्त्यश्वरथशालासु जीर्णोद्यानालयेषु च॥ ४०.९४ ॥

येषु पञ्चसु भूतेषु दिशासु विदिशासु च।
इन्द्रार्कयोर्मध्यगता ये च चन्द्रार्करश्मिषु॥ ४०.९५ ॥

रसातसगता ये च येच तस्मात्परं गताः।
नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्यस्तु सर्वशः॥ ४०.९६ ॥

सर्वसत्वं सर्वगो देवः सर्वभूतपतिर्भवः।
सर्वभूतान्तरात्मा च तेन त्वं न निमन्त्रितः॥ ४०.९७ ॥

स्वमेव चेज्यसे देव यज्ञैर्विविधदक्षिणैः।
त्वमेव कर्ता सर्वस्य तेन त्वं न निमन्त्रितः॥ ४०.९८ ॥

अथवा माययादेव मोहितः सूक्ष्मया तव।
तस्मात्तु कारणाद्वाऽपि त्वं मया न निमन्त्रितः॥ ४०.९९
प्रसीद मम देवेश त्वमेव शरणं मम।
त्वं गतिस्त्वं प्रतिष्ठा च न चान्योऽस्तीति ने मतिः॥ ४०.१०० ॥

ब्रह्मोवाच
स्तुत्वैवं स महादेवं विरराम प्रजापितः।
भगवानपि सुप्रीतः सुनर्दक्षमभाषत॥ ४०.१०१ ॥

श्रीभगवानुवाच
परितुष्टोऽस्मि ते दक्ष स्तवेनानेन सुव्रत।
बहुना तु किमुक्तेन मत्समीपं यमिष्यसि ॥ ४०.१०२ ॥

ब्रह्मोवाच
तथैवमब्रवीद्वाक्यं त्रैलोक्याधिपतिर्भवः।
कृत्वाऽऽश्वासकरं वाक्यं सर्वज्ञो वाक्य संहितम्॥ ४०.१०३ ॥

श्रीशिव उवाच
दक्ष दुःखं न कर्तव्यं यज्ञविध्वंसनं प्रति।
अहं यज्ञहनस्तुभ्यं दृष्टमेतत्पुराऽनघ॥ ४०.१०४ ॥

भूयश्च त्वं वरमिमं मत्तो गृह्णीष्व सुव्रत।
प्रसन्नसुमुखो भूत्वा ममैकाग्रमनाः श्रुणु॥ ४०.१०५ ॥

अश्वमेधसहस्रस्य वाजपेयशतस्य वै।
प्रजापते मत्प्रसादात्फलभागो भविष्यसि॥ ४०.१०६ ॥

वेदान्षडङ्गन्बुध्यस्व सांख्ययोगांश्च कृत्स्नशः।
तपश्च विपुलं तप्त्वा दुश्वरं देवनानवैः॥ ४०.१०७ ॥

अब्दैर्द्वादशभिर्युक्तं गूढमप्रज्ञनिन्दितम्।
वर्णाश्रमकृतेर्धमेर्विनीतं न क्वचित्क्वचित्॥ ४०.१०८ ॥

समागतं व्यवसितं पशुपाशविमोक्षणम्।
सर्वेषाणाश्रमाणां च मया पाशुपतं व्रतम्॥ ४०.१०९ ॥

उत्पादितं दक्ष शुभं सर्वपापविमोचनम्।
अस्य चीर्णस्य यत्सम्यक्फलं भवति पुष्कलम्॥
तच्चास्तु सुमहाभाग मानसस्तयचज्यतां ज्वरः॥ ४०.११० ॥

ब्रह्मोवाच
एवमुक्त्वा तु देवेशः सपत्नीकः सहानुगः।
अदर्शनमनुप्राप्तो दक्षस्यामितेजसः॥ ४०.१११ ॥

अवाप्य च तथा भागं यथोक्तं चोमया भवः।
ज्वरं च सर्वधर्मज्ञो बहुधा व्यभजत्तदा॥ ४०.११२ ॥

शान्त्यर्थं सर्वभूतानां श्रृणुध्वमथ वै द्विजाः॥
शिखाभितापो नागानां पर्वतानां शिलाजतु॥ ४०.११३ ॥

अपां तु नीलिकां विद्यान्निर्मोको भुजगेषु च।
खोरकः सौरभेयाणामूखरः पृथिवीतले॥ ४०.११४ ॥

शुनुमपि च धर्मज्ञा दृष्टिप्रत्यवरोधनम्।
रन्ध्रागतमथाश्वानां शिखोद्‌भेदश्च बर्हिणाम्॥ ४०.११५ ॥

नेत्ररागः कोकिलानां द्वेषः प्रोक्तो महात्मनाम्।
जनानामपि भेदस्च सर्वेषामिति नः श्रुतम्॥ ४०.११६ ॥

शुकानामपि सर्वेषां हिक्किका प्रोच्यते ज्वरः।
शार्दूलेष्वथ वै विप्राः श्रमोज्वर इहोच्यते॥ ४०.११७ ॥

मानुषेषु च सर्वज्ञा ज्वरो नामैष कीर्तितः।
मरणे जन्मनि तथा मध्ये चापि निवेशितः॥ ४०.११८ ॥

एतन्माहेश्वरं तेजो ज्वरो नाम सुदारुणः।
नमस्यश्चैव मान्यश्च सर्वप्राणिभिरीश्वरः॥ ४०.११९ ॥

इमां ज्वरोत्पत्तिमदीनमानसः, पठेत्सदा यः सुसमाहितो नरः।
विमुक्तरोगः स नरो मुदायुतो, लभेत कामांश्च यथामनीषितान् ॥ ४०.१२० ॥

दक्षप्रोक्तं स्तवं चापि कीर्तयेद्यः शृणोति वा।
नाशुभं प्राप्नुयात्किंचिद्‌दीर्घमायुरवाप्नुयात्॥ ४०.१२१ ॥

यथा सर्वेषु देवेषु वरिष्ठो भगवान्भवः।
तथा स्तवो वरिष्ठोऽयं स्तवानां दक्षनिर्मितः॥ ४०.१२२ ॥

यशःस्वर्गसुरैश्वर्यवित्तादिजयकाङ्क्षिभिः।
स्तोतव्यो भक्तिमास्थाय विद्याकामैश्च यत्नतः॥ ४०.१२३ ॥

व्याधितो दुःखितो दीनो नरो ग्रस्तो भयादिभिः।
राजकार्यनियुक्तो वा मुच्यते महतो भयात्॥ ४०.१२४ ॥

अनेनैव च देहेन गणानां च महेश्वरात्।
इह लोके सुखं प्राप्य गणराडुपजायते॥ ४०.१२५ ॥

न यक्षा न पिशाचा वा न नागा न विनायकाः।
कुर्युर्विघ्नं गृहे तस्य यत्र संस्तूयते भवः॥ ४०.१२६ ॥

श्रृणुयाद्वा इदं नारी भक्त्याऽथ भवभाविता।
पितृपक्षे भर्तृपक्षे पूज्या भवति चैव ह॥ ४०.१२७ ॥

श्रृणुयाद्वा इदं सर्वं कीर्तयेद्वाऽप्यभीक्ष्णशः।
तस्य सर्वाणि कार्याणि सिद्धिं गच्छन्त्यविघ्नतः॥ ४०.१२८ ॥

मनसा विन्तितं यच्च यच्च वाचाऽप्युदाहृतम्।
सर्वं संपद्यते तस्य स्तवस्यास्यानुकोर्तनात्॥ ४०.१२९ ॥

देवस्य सगुहस्याथ देव्या नंदीश्वरस्य च।
बलिं विभज (भाग) तः कृत्वा दमेन नियमेन च॥ ४०.१३० ॥

ततः प्रयुक्तो गृह्णीयान्नामान्यासु यथाक्रमम्।
इप्सिताल्लँभतेऽप्यर्थान्कामान्भोगांश्च मानवः॥ ४०.१३१ ॥

मतश्च स्वर्गमाप्नोति स्त्रीसहस्रसमावृतः।
सर्वकामसुयुक्तो वा युक्तो वा सर्वपातकैः॥ ४०.१३२ ॥

पठन्दक्षकृतं स्तोत्रं सर्वपापैः प्रमुच्यते।
मृतश्च गणसायुज्यं पूज्यमानः सुरासुरैः॥ ४०.१३३ ॥

वृषेण विनियुक्तेन विमानेन विराजते।
आभूतसंप्लवस्थायी रुद्रस्यानुचरो भवेत्॥ ४०.१३४ ॥

इत्याह भगवान्व्यासः पराशरसुतः प्रभुः।
नैतद्वेदयते कश्चिन्नैतच्छ्राव्यं च कस्यचित्॥ ४०.१३५ ॥

श्रुत्वेमं परमं गुह्यं येऽपि स्युः पापयोनयः।
वैश्याः स्त्रियश्च शूद्राश्च रुद्रलोकमवाप्नुयुः॥ ४०.१३६ ॥

श्रवयेद्यश्च विप्रेभ्यः सदा पर्वसु पर्वसु।
रुद्रलोकमवाप्नोति द्विजो वै नात्र संशयः॥ ४०.१३७ ॥

इति श्रीमहापुराणे आदिब्राह्मे स्वयंभ्ववृषिसंवादे दक्षस्तवन्रूपणं नाम चत्वारिंशोऽध्यायः॥ ४० ॥