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पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/८

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भूमिका | (५) जिस प्रकार पूजा पाठके गुटके विद्वान् महात्मा अपने पास रखते हैं इसी प्रकार त्रिवर्ण- भात्रको यह ग्रंथ अपने पास रखना चाहिये । यद्यपि संस्कृतभाष्य तथा टीकों सहित यह ग्रंथ एक दो जगह प्रकाशित हुआ है पर उसमें सर्वसाधारणकी उपयोगिता न होनेके कारण हमने उन त्रुटियाँको इसमेंसे दूर करके द्विजमात्र के उपयोगी इस ग्रंथको बना दिया है । इसका क्रम इस प्रकारसे रक्खाहै कि पहले मंत्र, फिर उसका ऋषिछन्द - देवत तथा विनियोग, संस्कृत में पदार्थ के सहित मंत्रमाग्य पीछे भाषामें सरलार्थ वर्णन किया है । साथमे इस बातका भी विचार रक्खाहै कि जिससे भाषा में भी वेदके मंत्रोंका अर्थ ऐसा रहना चाहिये कि जिससे वेदार्थका विज्ञान भलीमकार होजाय । इसी शैलीसे यजुर्वेदीय उपासनाकाण्ड तथा मंत्रार्थदीपिका यह और दो ग्रंथ तैयार हो रहे हैं, और माशा है कि वह बहुत शीघ्र तैयार होजायेंगे । एक बात इसको यहां विशेषरूप से और कहना है, वह यह है कि इस समय भी देश में पण्डितों की कमी नहीं है तथा अनुवादके ग्रंथ मी तैयार होते हैं पर जहांतक हम देख- ते बहुत कम तैयार होते हैं, हां जिनके पास कुछ मसाला है वह केवल अपना महत्व - विधायक ग्रंथ बनाकर छपादेतेह जिससे धार्मिकसमूहों को कोई लाभ नहीं पहुँचता, देखिये महाराजा युवाने सायणाचार्यजीसे वेशका भाग्य कराकर कितना जगत्का उपकार कियाहै, स्व भी श्रीमानों के नरपतियांके दूसरे कार्यों में सहस्रों नहीं लक्षों रुपये व्यय होते हैं या थोडी भी श्रीमानोंकी कृपादृष्टि इधर होजाय और चारों वेदों, ब्राह्मणभागांका रहस्योंके सहित हिन्दी भाषा में अनुवाद होजाय तो जगत्का कितना उपकार हो सकता है, जगत्में वेदोंका महत्व बहुत शीघ्र प्रकाशित होसकता है । महामण्डलके नेताओं का ध्यान हम इस ओर आकर्षित करते हैं कि आपलोगोंने प्रयाग जैसे पवित्र तीर्थराजमें कुम्मपर क्या क्या प्रतिज्ञायें की थीं, काशीमें ब्रह्मचारी- माश्रम खोलनेको कहाथा, शाखप्रचार विभागसे वैदिकग्रंथों के निकालने की प्रतिज्ञा की थी, धर्मवक्ताको मूलसहायक समझकर उनके उत्साहवृद्धिका प्रण कियाथा धर्मेसमाओको लाम पहुँचानेका वचन दियाया, आजतक उसमेंसे एक बात भी हुई १ एक भी नहीं, केवल व्याशाही आशा शब्द सुनाई आाये यदि ऊपरी वात छोडकर कर्तव्यपालन कियाजाय तो बहुत कुछ उपकार होसकता है, यदि कोई अपने पुरुषायें से कोई कार्य करे और दूसरा उसके अपना कर्तव्य बतावै तो यह भुलावा या पालसीके सिवाय और क्या है | हां यदि शास्त्रप्रचार, विद्यामचार, धर्मप्रचारमें हम वैश्यवंशावतंस देशहितैषी धर्मप्रचारानेरत श्रेष्ठी श्रीयुत खेमराज श्रीकृष्णदासजी महोदय मालिक "श्री वेंकटेश्वर .3 >