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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१६१

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अ. १ आ. १ सू. ८

वैशेषिक दर्शन की विषयानुक्रमणंौ ।

भूमिका ।

  • | द्रव्य गुण काम क आपस मं

दर्शनों के रचने का उद्देश्य ? | ममान धर्म और विरुद्धधर्म१९ दर्शनकार मुनि वशेषिक सूत्रकार कणाढ मुनेि? | गुण का लक्षण २४ कणाढ रचित दर्शन के नाम २ | कर्म का लक्षण वैशेषिकदर्शन के मूलसूत्र और | कारणतामें(वस्तुओं के उत्पन्न करने में) द्रव्य गुण कर्म के वैशेषिकसूत्रों के प्रतिपाद्यविषय६| समानधर्म और विरुद्ध धर्म२७ सूत्रों का निर्णय | कार्यतामें(उत्पन्न होने में) द्रव्य गुण कर्म के ससानधर्म और १ड् दर्शन उन पर व्याख्यान ४ व्याख्यान का ढग २९८

प्रथमाध्याय प्रथमाह्निक प्रथमाध्यायद्वितीयआह्निकू

शास्रारम्भ की प्रतिज्ञा १० | कीव्यवस्था३० कार्यकारणभाव धर्म का लक्षण और फल १० । सामान्य और विशेष(पदाथों) धर्म में वेढ की प्रमाणता १' } का निरूपण ३२ छः पदार्थो का उद्देना और उन ' केवल सामान्य कानिरूपण ३४ द्रव्यों का विभाग १५ | केवल विशेषों का निरूपण ३६ गुणों का विभाग(२४गुण)१७| सत्ता सामान्य.का सविशेष, ३७ न्यू ७