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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१२६

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'वैशेषिक-दर्शन ।

स-एक है एकत्व' इस प्रतीति के चल से एकत्वमें.भी एकत्व और ! स्पादि से पृथक् पृथक्त है, इस प्रतीति के वल से पृथक्त में भी पृथक् मानना चाहिये, इस का उत्तर देते है

एकत्वैकपृथक्व योरेकत्वक पृथक्वाभावोऽणु त्व महत्वाभ्यां व्याख्याताः ।। ३ ।।

एकत्व और एक पृथक्तत्व में एकत्व और एक पृथक्व का अभाव अणुत्व ओर महत्त्व से व्याख्यात है (देखो ७॥१॥१४)

सै-यह एक घड़ा है, इस प्रतीति की नांई 'यह एक रूप है।

  • यह एक कर्म है' इत्यादि रूप से एकत्व तो गुण कर्म में भी

सिद्ध होता है, इस का उत्तर देते है

निःसंख्यत्वात् कर्मगुणानां सर्वेकत्वं न विद्यते ४

कभै और गुण संख्या से शून्य होते हैं. इस लिए सब में एकत्व नही है (एकत्व केवल द्रव्यों में ही रहता है । गुण कर्स में ओपचारिक प्रतीति होती है ) ।

अतएव भ्रम रूप है हव (-एक है कर्म इत्यादि ज्ञान । अर्थात् गुण क में एकत्व व्यवहार मुख्य नहीं, गौण है)

-अच्छा, तो * यह यक रूप है' इस व्यहार की नाई * यह एक धडा ह' यह व्यवहार भी औपचारिक ही क्यों न मान लिया जाण, इस का उत्तर देते हैं

एकत्वाभावाद् भक्तिस्तु न विद्यते ॥ ५ ॥

एकन्व के अभाव स तेो उपचार हो ही नहीं सकता है, ( यद्धि गुख्य प्रयोग कहीं भी न माना जाय, तो, औपचारिक