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पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२८८

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प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका 223 यो विष्णो प्रतिमाकारे १२३ यो वेदवृक्ष बहुमूल ५ भो ब योऽह सोऽहमनेनैव ८५ सा म 6-209

            लो

लोकत्रयगुरुस्तस्मै ८९ व (४) लोपयन्त्यथ पारुष्यै ११८ व पु 45

रक्षेन्निरोधाद्भोगाद्वा ७८ पा र रक्षोभिरधमैर्मुख्यै ३६ पार स 10-316 रजनीमुखे च मदनाधिपते १५० का वि रवेरमिमुखस्तिष्ठन् १०६ पि रागाद्यपेत हृदय १७९, वि ध 9-8 राजसेन तु पूजाद्य ४० पार म 10-327 राजान्न च न भोक्तव्यं १४३ व पु राजान्नेन तु भुक्तेन १४३ व पु राज्ञो राष्ट्रस्य कर्तुश्च १९, ३४ का राज्ञो राष्ट्रस्य कर्तुश्च मरण ३२ का राजो राष्ट्रस्य नाश स्यात् १७ पार स (प्र) राद्धान्तसकर काये १६ पा स (च) 21-80

वय तु किकरा विरुणो. ७४ म भा वर हुतवहप्वाला ७५ वि व वर्जनीया प्रयत्नेन १२८ सा स 21-28 वर्णाना शूद्रनिष्ठाना १०० पार स 2-54 वर्तन्ते तत्र वै देवि ११८ व पु 45 वर्तमान सदा चैव ५३, ९१ व 35 वर्तत भक्तया परया १७७, व 505 वस्त्रेणाच्छाद्य देह तु ११८ व पु 45 वहस्तचरणस्पर्श १५६. व 481 वह्निसन्तर्पण षष्ठ ४९ ज 22-79

लक्ष्म्यादिशखचक्राख्य ६ पौ स 38-296 लब्धात्मा तद्गतप्राण ८० गी सं 30 लब्धाधिकारो देवस्य १२४ व 80 ललाटोदरजान्वत्रि ११५ स स

      वा

वात्सल्यौदार्यसौशील्य १५६ व 479 वाराह यस्तु मास वै १४५ व पु वास समवधून्वन वै १४५ व पु वासासि धनधान्यानि १२७ ना मु वासुदेव च राजेन्द्र २५ म भा (आश्व) 104-88 वासुदेवादयो व्यूहा १० पा स (च) 19-115 वासुदेवेन यत्प्रोक्त ३९ पार स 10-333 वासुदेवैकनिष्टेस्तु ३५ पार स 10-318

        ला                                              लाला विसृज्य चोच्छिष्टा १२ १ व

पु (बो) 45

             वि

विकर्मस्थान् द्विजान् २७ वि विकल्पोऽविशिष्टफलत्वात् ८ शा मी 3-3-57