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पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२८६

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प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका 221 यच्छक्तयाराधिता सर्व ७ पौ स यथैव दीक्षणीयेष्टया ४६ पा स (च) 1-9 38-302 यथोक्त्तेन प्रकारेण १६५ पा स 13-76 यच्छील खामी तच्छीला ७७ यथोदकं शुद्धे शुद्ध ८६ क व 4-15 यच्छूत न विरागाय १४९ इ स 12-58 यथोपयोगशक्यत्वात् १६३ क्रिया वै यजन्ते सात्विका देवान् ४२ भ गी 17.4 यदन्यत् कुरुते कर्म ७० द स्मृष्ट 2-23 यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र ६२ भ गी 3-9 यदर्थाढ्यमसन्दिग्ध २९ सा स 22-50 यज्ञैस्त्वमिज्यसे ६८ यदादित्यगत तेज १७ भ गी 15-12 यज्ञोपवीतं वेद च ८३ म 4-36 यदाप्नोति तदाप्नोति १६९ वि पु 6-2-17 यत्कृिचित्तत्तदादेय ३३ का यदा सवेद्यनिर्मुक्ते ८५ सा स 6-214

                      यदा ह्यय केवलपाणिभ्यामेव ११६ र आ

यत्र तन्त्रान्तर तत्स्यात् ११"पा स (च) यदृच्छया श्रुतो मन्त्र ९३ पा स(च) 19-122 23-81 यत्र भागवता स्नान १०४ इ स. 25-21 यदेते वशपरम्परया ४ आ प्रा यत्र राजसमार्गेण ४० पार स. 10-329 यद्विम्व येन शास्त्रेण १९, ३४ का यत्रैकाग्रता तत्राविशेषात् ७६ शा मी यद्भक्त्या पुण्डरीकाक्ष ११७ वि स 8 4-1-11 यद्यदिष्टतमं लोके १९ पार स 19-584 यत्रोदक प्रभूत तु ९९ पि यद्वन्मङ्गलसूत्रादे ७८ पा र यथा चोलनृप सम्राट् ५ स सि 20 यन्मुहूर्त क्षण वापि ७२ व पु (पू) यथातथा वापि सकृत् ११६ स्तोत्ररत्नम् 28 322-22 यथा निक्षिप्तरूप मे १५७ व 494 यस्तु कृष्णेन वस्त्रेण १४५ व पु यथान्यत्र मन सिद्धौ १२ न्या वि यस्तु नीलेन वस्त्रेण १४४ व पु यथा प्रियया सपरिष्वक्त १६६ बृ 3-6 - यस्तु रक्तन वत्रेण १४४ व पु

3-21                     यस्मात्सम्यक् परब्रह्म ७ पौ स 38-306

यथा बहूनामेकस्मिन् ६० श्री कृ यस्य चेतसि गोविन्द १७१ वि धर्म यथार्ह तानि सस्कृत्य १२८ ना मु 109-57 यथावस्थितखरूपरूप १३८,161निरा/ यस्य देवे परा भक्ति ९४ क व (वे उ

                                                6-23)

यथाशक्ति जप कुर्यात् १६४ सा स यस्य सवें समारम्भा ७८. र आ 6-191 यथास्थितक्रमेणैव ९६ पार स 2-14 यानशय्यासनान्यस्य १३६ म 4-202