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पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२८५

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२२० प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका मामेव शरणं प्राप्ता १४० म भा (आश्व) 105-91 मासं वा वत्सरं वापि १७७ व 504 मा च मामकमप्येतत् १५७ व 498 मा नयेद्यदि काकुत्स्थ १ ५० रामा (सु) 39-30

     मि

मितसन्ध्यस्रयोदश्या १५० स्मृ

         मु

मुक्ति करे स्थिता तस्य १७६ अहि 28-82 मुख करद्वयोपेत १०५ पार स 2-65 मुख्यत्वादिह शैवस्य २७. का त (कामि) 1-124 मुख्याधिकारिण सन्ति १४ पा. स (च) 19 () मुख्यानुवृत्तिभेदेन १२ पार स (प्रा) 19-576 मुख्यानुवृत्तिभेदेन यत्र ६ पौ स 38-300 मुद्रा बध्वा स्मरेद्देव ८६ मुनिमुख्यैश्च गन्धर्वे ३६ पार स 10-315 मुनिवाक्य च तद्विद्धि २९ सा स 2-52 मुनिवाक्य परित्यज्य ३७ ४२ पा स 10-321 मुनिवाक्योक्तमार्गेण ३७. ४२ पार स 10-320 मुनिवाक्योकमार्गेण न ३८ पार स 10-323

     मू

मूत्रयेन्मन्दिरे यस्तु ११९ व पु 45 मूत्रोत्सर्गे शुद्धिरेषा ९९ पार स मूर्तयो द्वादशाङ्गानि १०. पा स (च) 19-118 मूर्तिमद्भिश्च देवीभि .११ पा स (च) 19-119 मूर्तिमद्भिः परिवृता १० पा स (च) 19-114 मूर्तिस्तदेव तन्त्र च १६ पा म (च) 17-30 मूर्ध्नि न्यस्ताञ्जलिपुट १५८ व 502 मूलागमसमेतेन ३५ का

     मृ

मृत्तिकाभिद्वदशभि ९८ पा सं (च) 13-14 मृदश्चतुर्द्धिजेन्द्राणा १०० पार स 2-53

        मे

मेविबद्धो भ्राम्यमाण ७३ इ स 18-83

      मो

मोघाशापि तथाविधेषु १८१ पा र मोहजालस्य हेतुर्हि ७५ द स्मृ य य क्षिपेन्मम नेहेषु ११९ व घु 45 य स्मरेतू पुण्डरीकाक्ष १६९ वि ध 109-66