"ऋग्वेदः सूक्तं ४.५६" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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(भेदः नास्ति)
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१३:३०, २३ जुलै २००५ इत्यस्य संस्करणं
मही दयावाप्र्थिवी इह जयेष्ठे रुचा भवतां शुचयद्भिर अर्कैः | यत सीं वरिष्ठे बर्हती विमिन्वन रुवद धोक्षा पप्रथानेभिर एवैः || देवी देवेभिर यजते यजत्रैर अमिनती तस्थतुर उक्षमाणे | रतावरी अद्रुहा देवपुत्रे यज्ञस्य नेत्री शुचयद्भिर अर्कैः || स इत सवपा भुवनेष्व आस य इमे दयावाप्र्थिवी जजान | उर्वी गभीरे रजसी सुमेके अवंशे धीरः शच्या सम ऐरत ||
नू रोदसी बर्हद्भिर नो वरूथैः पत्नीवद्भिर इषयन्ती सजोषाः | उरूची विश्वे यजते नि पातं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ||
पर वाम महि दयवी अभ्य उपस्तुतिम भरामहे |
शुची उप परशस्तये ||
पुनाने तन्वा मिथः सवेन दक्षेण राजथः |
ऊह्याथे सनाद रतम ||
मही मित्रस्य साधथस तरन्ती पिप्रती रतम |
परि यज्ञं नि षेदथुः ||