"ऋग्वेदः सूक्तं ४.४४" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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तं वां रथं वयम अद्या हुवेम पर्थुज्रयम अश्विना संगतिं गोः | |
तं वां रथं वयम अद्या हुवेम पर्थुज्रयम अश्विना संगतिं गोः | |
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यः सूर्यां वहति वन्धुरायुर गिर्वाहसम पुरुतमं वसूयुम |
यः सूर्यां वहति वन्धुरायुर गिर्वाहसम पुरुतमं वसूयुम ॥ |
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युवं शरियम अश्विना देवता तां दिवो नपाता वनथः शचीभिः | |
युवं शरियम अश्विना देवता तां दिवो नपाता वनथः शचीभिः | |
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युवोर वपुर अभि पर्क्षः सचन्ते वहन्ति यत ककुहासो रथे वाम |
युवोर वपुर अभि पर्क्षः सचन्ते वहन्ति यत ककुहासो रथे वाम ॥ |
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को वाम अद्या करते रातहव्य ऊतये वा सुतपेयाय वार्कैः | |
को वाम अद्या करते रातहव्य ऊतये वा सुतपेयाय वार्कैः | |
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रतस्य वा वनुषे पूर्व्याय नमो येमानो अश्विना ववर्तत |
रतस्य वा वनुषे पूर्व्याय नमो येमानो अश्विना ववर्तत ॥ |
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हिरण्ययेन पुरुभू रथेनेमं यज्ञं नासत्योप यातम | |
हिरण्ययेन पुरुभू रथेनेमं यज्ञं नासत्योप यातम | |
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पिबाथ इन मधुनः सोम्यस्य दधथो रत्नं विधते जनाय |
पिबाथ इन मधुनः सोम्यस्य दधथो रत्नं विधते जनाय ॥ |
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आ नो यातं दिवो अछा पर्थिव्या हिरण्ययेन सुव्र्ता रथेन | |
आ नो यातं दिवो अछा पर्थिव्या हिरण्ययेन सुव्र्ता रथेन | |
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मा वाम अन्ये नि यमन देवयन्तः सं यद ददे नाभिः पूर्व्या वाम |
मा वाम अन्ये नि यमन देवयन्तः सं यद ददे नाभिः पूर्व्या वाम ॥ |
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नू नो रयिम पुरुवीरम बर्हन्तं दस्रा मिमाथाम उभयेष्व अस्मे | |
नू नो रयिम पुरुवीरम बर्हन्तं दस्रा मिमाथाम उभयेष्व अस्मे | |
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नरो यद वाम अश्विना सतोमम आवन सधस्तुतिम आजमीळ्हासो अग्मन |
नरो यद वाम अश्विना सतोमम आवन सधस्तुतिम आजमीळ्हासो अग्मन ॥ |
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इहेह यद वां समना पप्र्क्षे सेयम अस्मे सुमतिर वाजरत्ना | |
इहेह यद वां समना पप्र्क्षे सेयम अस्मे सुमतिर वाजरत्ना | |
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उरुष्यतं जरितारं युवं ह शरितः कामो नासत्या युवद्रिक |
उरुष्यतं जरितारं युवं ह शरितः कामो नासत्या युवद्रिक ॥ |
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*[[ऋग्वेद:]] |
*[[ऋग्वेद:]] |
२०:००, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
तं वां रथं वयम अद्या हुवेम पर्थुज्रयम अश्विना संगतिं गोः | यः सूर्यां वहति वन्धुरायुर गिर्वाहसम पुरुतमं वसूयुम ॥ युवं शरियम अश्विना देवता तां दिवो नपाता वनथः शचीभिः | युवोर वपुर अभि पर्क्षः सचन्ते वहन्ति यत ककुहासो रथे वाम ॥ को वाम अद्या करते रातहव्य ऊतये वा सुतपेयाय वार्कैः | रतस्य वा वनुषे पूर्व्याय नमो येमानो अश्विना ववर्तत ॥
हिरण्ययेन पुरुभू रथेनेमं यज्ञं नासत्योप यातम | पिबाथ इन मधुनः सोम्यस्य दधथो रत्नं विधते जनाय ॥ आ नो यातं दिवो अछा पर्थिव्या हिरण्ययेन सुव्र्ता रथेन | मा वाम अन्ये नि यमन देवयन्तः सं यद ददे नाभिः पूर्व्या वाम ॥ नू नो रयिम पुरुवीरम बर्हन्तं दस्रा मिमाथाम उभयेष्व अस्मे | नरो यद वाम अश्विना सतोमम आवन सधस्तुतिम आजमीळ्हासो अग्मन ॥
इहेह यद वां समना पप्र्क्षे सेयम अस्मे सुमतिर वाजरत्ना | उरुष्यतं जरितारं युवं ह शरितः कामो नासत्या युवद्रिक ॥