"ऋग्वेदः सूक्तं ४.२४" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
का सुष्टुतिः शवसः सूनुम इन्द्रम अर्वाचीनं राधस आ ववर्तत | |
का सुष्टुतिः शवसः सूनुम इन्द्रम अर्वाचीनं राधस आ ववर्तत | |
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ददिर हि वीरो गर्णते वसूनि स गोपतिर निष्षिधां नो जनासः |
ददिर हि वीरो गर्णते वसूनि स गोपतिर निष्षिधां नो जनासः ॥ |
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स वर्त्रहत्ये हव्यः स ईड्यः स सुष्टुत इन्द्रः सत्यराधाः | |
स वर्त्रहत्ये हव्यः स ईड्यः स सुष्टुत इन्द्रः सत्यराधाः | |
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स यामन्न आ मघवा मर्त्याय बरह्मण्यते सुष्वये वरिवो धात |
स यामन्न आ मघवा मर्त्याय बरह्मण्यते सुष्वये वरिवो धात ॥ |
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तम इन नरो वि हवयन्ते समीके रिरिक्वांसस तन्वः कर्ण्वत तराम | |
तम इन नरो वि हवयन्ते समीके रिरिक्वांसस तन्वः कर्ण्वत तराम | |
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मिथो यत तयागम उभयासो अग्मन नरस तोकस्य तनयस्य सातौ |
मिथो यत तयागम उभयासो अग्मन नरस तोकस्य तनयस्य सातौ ॥ |
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करतूयन्ति कषितयो योग उग्राशुषाणासो मिथो अर्णसातौ | |
करतूयन्ति कषितयो योग उग्राशुषाणासो मिथो अर्णसातौ | |
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सं यद विशो ऽवव्र्त्रन्त युध्मा आद इन नेम इन्द्रयन्ते अभीके |
सं यद विशो ऽवव्र्त्रन्त युध्मा आद इन नेम इन्द्रयन्ते अभीके ॥ |
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आद इद ध नेम इन्द्रियं यजन्त आद इत पक्तिः पुरोळाशं रिरिच्यात | |
आद इद ध नेम इन्द्रियं यजन्त आद इत पक्तिः पुरोळाशं रिरिच्यात | |
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आद इत सोमो वि पप्र्च्याद असुष्वीन आद इज जुजोष वर्षभं यजध्यै |
आद इत सोमो वि पप्र्च्याद असुष्वीन आद इज जुजोष वर्षभं यजध्यै ॥ |
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कर्णोत्य अस्मै वरिवो य इत्थेन्द्राय सोमम उशते सुनोति | |
कर्णोत्य अस्मै वरिवो य इत्थेन्द्राय सोमम उशते सुनोति | |
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सध्रीचीनेन मनसाविवेनन तम इत सखायं कर्णुते समत्सु |
सध्रीचीनेन मनसाविवेनन तम इत सखायं कर्णुते समत्सु ॥ |
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य इन्द्राय सुनवत सोमम अद्य पचात पक्तीर उत भर्ज्जाति धानाः | |
य इन्द्राय सुनवत सोमम अद्य पचात पक्तीर उत भर्ज्जाति धानाः | |
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परति मनायोर उचथानि हर्यन तस्मिन दधद वर्षणं शुष्मम इन्द्रः |
परति मनायोर उचथानि हर्यन तस्मिन दधद वर्षणं शुष्मम इन्द्रः ॥ |
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यदा समर्यं वय अचेद रघावा दीर्घं यद आजिम अभ्य अख्यद अर्यः | |
यदा समर्यं वय अचेद रघावा दीर्घं यद आजिम अभ्य अख्यद अर्यः | |
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अचिक्रदद वर्षणम पत्न्य अछा दुरोण आ निशितं सोमसुद्भिः |
अचिक्रदद वर्षणम पत्न्य अछा दुरोण आ निशितं सोमसुद्भिः ॥ |
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भूयसा वस्नम अचरत कनीयो ऽविक्रीतो अकानिषम पुनर यन | |
भूयसा वस्नम अचरत कनीयो ऽविक्रीतो अकानिषम पुनर यन | |
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स भूयसा कनीयो नारिरेचीद दीना दक्षा वि दुहन्ति पर वाणम |
स भूयसा कनीयो नारिरेचीद दीना दक्षा वि दुहन्ति पर वाणम ॥ |
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क इमं दशभिर ममेन्द्रं करीणाति धेनुभिः | |
क इमं दशभिर ममेन्द्रं करीणाति धेनुभिः | |
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यदा वर्त्राणि जङघनद अथैनम मे पुनर ददत |
यदा वर्त्राणि जङघनद अथैनम मे पुनर ददत ॥ |
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नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
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अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः |
अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥ |
१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
का सुष्टुतिः शवसः सूनुम इन्द्रम अर्वाचीनं राधस आ ववर्तत | ददिर हि वीरो गर्णते वसूनि स गोपतिर निष्षिधां नो जनासः ॥ स वर्त्रहत्ये हव्यः स ईड्यः स सुष्टुत इन्द्रः सत्यराधाः | स यामन्न आ मघवा मर्त्याय बरह्मण्यते सुष्वये वरिवो धात ॥ तम इन नरो वि हवयन्ते समीके रिरिक्वांसस तन्वः कर्ण्वत तराम | मिथो यत तयागम उभयासो अग्मन नरस तोकस्य तनयस्य सातौ ॥ करतूयन्ति कषितयो योग उग्राशुषाणासो मिथो अर्णसातौ | सं यद विशो ऽवव्र्त्रन्त युध्मा आद इन नेम इन्द्रयन्ते अभीके ॥ आद इद ध नेम इन्द्रियं यजन्त आद इत पक्तिः पुरोळाशं रिरिच्यात | आद इत सोमो वि पप्र्च्याद असुष्वीन आद इज जुजोष वर्षभं यजध्यै ॥
कर्णोत्य अस्मै वरिवो य इत्थेन्द्राय सोमम उशते सुनोति | सध्रीचीनेन मनसाविवेनन तम इत सखायं कर्णुते समत्सु ॥ य इन्द्राय सुनवत सोमम अद्य पचात पक्तीर उत भर्ज्जाति धानाः | परति मनायोर उचथानि हर्यन तस्मिन दधद वर्षणं शुष्मम इन्द्रः ॥ यदा समर्यं वय अचेद रघावा दीर्घं यद आजिम अभ्य अख्यद अर्यः | अचिक्रदद वर्षणम पत्न्य अछा दुरोण आ निशितं सोमसुद्भिः ॥ भूयसा वस्नम अचरत कनीयो ऽविक्रीतो अकानिषम पुनर यन | स भूयसा कनीयो नारिरेचीद दीना दक्षा वि दुहन्ति पर वाणम ॥ क इमं दशभिर ममेन्द्रं करीणाति धेनुभिः | यदा वर्त्राणि जङघनद अथैनम मे पुनर ददत ॥ नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥