"ऋग्वेदः सूक्तं ४.१८" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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अयम पन्था अनुवित्तः पुराणो यतो देवा उदजायन्त विश्वे | |
अयम पन्था अनुवित्तः पुराणो यतो देवा उदजायन्त विश्वे | |
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अतश चिद आ जनिषीष्ट परव्र्द्धो मा मातरम अमुया पत्तवे कः |
अतश चिद आ जनिषीष्ट परव्र्द्धो मा मातरम अमुया पत्तवे कः ॥ |
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नाहम अतो निर अया दुर्गहैतत तिरश्चता पार्श्वान निर गमाणि | |
नाहम अतो निर अया दुर्गहैतत तिरश्चता पार्श्वान निर गमाणि | |
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बहूनि मे अक्र्ता कर्त्वानि युध्यै तवेन सं तवेन पर्छै |
बहूनि मे अक्र्ता कर्त्वानि युध्यै तवेन सं तवेन पर्छै ॥ |
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परायतीम मातरम अन्व अचष्ट न नानु गान्य अनु नू गमानि | |
परायतीम मातरम अन्व अचष्ट न नानु गान्य अनु नू गमानि | |
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तवष्टुर गर्हे अपिबत सोमम इन्द्रः शतधन्यं चम्वोः सुतस्य |
तवष्टुर गर्हे अपिबत सोमम इन्द्रः शतधन्यं चम्वोः सुतस्य ॥ |
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किं स रधक कर्णवद यं सहस्रम मासो जभार शरदश च पूर्वीः | |
किं स रधक कर्णवद यं सहस्रम मासो जभार शरदश च पूर्वीः | |
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नही नव अस्य परतिमानम अस्त्य अन्तर जातेषूत ये जनित्वाः |
नही नव अस्य परतिमानम अस्त्य अन्तर जातेषूत ये जनित्वाः ॥ |
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अवद्यम इव मन्यमाना गुहाकर इन्द्रम माता वीर्येणा नयॄष्टम | |
अवद्यम इव मन्यमाना गुहाकर इन्द्रम माता वीर्येणा नयॄष्टम | |
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अथोद अस्थात सवयम अत्कं वसान आ रोदसी अप्र्णाज जायमानः |
अथोद अस्थात सवयम अत्कं वसान आ रोदसी अप्र्णाज जायमानः ॥ |
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एता अर्षन्त्य अललाभवन्तीर रतावरीर इव संक्रोशमानाः | |
एता अर्षन्त्य अललाभवन्तीर रतावरीर इव संक्रोशमानाः | |
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एता वि पर्छ किम इदम भनन्ति कम आपो अद्रिम परिधिं रुजन्ति |
एता वि पर्छ किम इदम भनन्ति कम आपो अद्रिम परिधिं रुजन्ति ॥ |
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किम उ षविद अस्मै निविदो भनन्तेन्द्रस्यावद्यं दिधिषन्त आपः | |
किम उ षविद अस्मै निविदो भनन्तेन्द्रस्यावद्यं दिधिषन्त आपः | |
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ममैतान पुत्रो महता वधेन वर्त्रं जघन्वां अस्र्जद वि सिन्धून |
ममैतान पुत्रो महता वधेन वर्त्रं जघन्वां अस्र्जद वि सिन्धून ॥ |
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ममच चन तवा युवतिः परास ममच चन तवा कुषवा जगार | |
ममच चन तवा युवतिः परास ममच चन तवा कुषवा जगार | |
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ममच चिद आपः शिशवे मम्र्ड्युर ममच चिद इन्द्रः सहसोद अतिष्ठत |
ममच चिद आपः शिशवे मम्र्ड्युर ममच चिद इन्द्रः सहसोद अतिष्ठत ॥ |
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ममच चन ते मघवन वयंसो निविविध्वां अप हनू जघान | |
ममच चन ते मघवन वयंसो निविविध्वां अप हनू जघान | |
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अधा निविद्ध उत्तरो बभूवाञ छिरो दासस्य सम पिणक वधेन |
अधा निविद्ध उत्तरो बभूवाञ छिरो दासस्य सम पिणक वधेन ॥ |
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गर्ष्टिः ससूव सथविरं तवागाम अनाध्र्ष्यं वर्षभं तुम्रम इन्द्रम | |
गर्ष्टिः ससूव सथविरं तवागाम अनाध्र्ष्यं वर्षभं तुम्रम इन्द्रम | |
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अरीळ्हं वत्सं चरथाय माता सवयं गातुं तन्व इछमानम |
अरीळ्हं वत्सं चरथाय माता सवयं गातुं तन्व इछमानम ॥ |
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उत माता महिषम अन्व अवेनद अमी तवा जहति पुत्र देवाः | |
उत माता महिषम अन्व अवेनद अमी तवा जहति पुत्र देवाः | |
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अथाब्रवीद वर्त्रम इन्द्रो हनिष्यन सखे विष्णो वितरं वि करमस्व |
अथाब्रवीद वर्त्रम इन्द्रो हनिष्यन सखे विष्णो वितरं वि करमस्व ॥ |
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कस ते मातरं विधवाम अचक्रच छयुं कस तवाम अजिघांसच चरन्तम | |
कस ते मातरं विधवाम अचक्रच छयुं कस तवाम अजिघांसच चरन्तम | |
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कस ते देवो अधि मार्डीक आसीद यत पराक्षिणाः पितरम पादग्र्ह्य |
कस ते देवो अधि मार्डीक आसीद यत पराक्षिणाः पितरम पादग्र्ह्य ॥ |
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अवर्त्या शुन आन्त्राणि पेचे न देवेषु विविदे मर्डितारम | |
अवर्त्या शुन आन्त्राणि पेचे न देवेषु विविदे मर्डितारम | |
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अपश्यं जायाम अमहीयमानाम अधा मे शयेनो मध्व आ जभार |
अपश्यं जायाम अमहीयमानाम अधा मे शयेनो मध्व आ जभार ॥ |
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१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
अयम पन्था अनुवित्तः पुराणो यतो देवा उदजायन्त विश्वे | अतश चिद आ जनिषीष्ट परव्र्द्धो मा मातरम अमुया पत्तवे कः ॥ नाहम अतो निर अया दुर्गहैतत तिरश्चता पार्श्वान निर गमाणि | बहूनि मे अक्र्ता कर्त्वानि युध्यै तवेन सं तवेन पर्छै ॥ परायतीम मातरम अन्व अचष्ट न नानु गान्य अनु नू गमानि | तवष्टुर गर्हे अपिबत सोमम इन्द्रः शतधन्यं चम्वोः सुतस्य ॥ किं स रधक कर्णवद यं सहस्रम मासो जभार शरदश च पूर्वीः | नही नव अस्य परतिमानम अस्त्य अन्तर जातेषूत ये जनित्वाः ॥
अवद्यम इव मन्यमाना गुहाकर इन्द्रम माता वीर्येणा नयॄष्टम | अथोद अस्थात सवयम अत्कं वसान आ रोदसी अप्र्णाज जायमानः ॥ एता अर्षन्त्य अललाभवन्तीर रतावरीर इव संक्रोशमानाः | एता वि पर्छ किम इदम भनन्ति कम आपो अद्रिम परिधिं रुजन्ति ॥ किम उ षविद अस्मै निविदो भनन्तेन्द्रस्यावद्यं दिधिषन्त आपः | ममैतान पुत्रो महता वधेन वर्त्रं जघन्वां अस्र्जद वि सिन्धून ॥ ममच चन तवा युवतिः परास ममच चन तवा कुषवा जगार | ममच चिद आपः शिशवे मम्र्ड्युर ममच चिद इन्द्रः सहसोद अतिष्ठत ॥
ममच चन ते मघवन वयंसो निविविध्वां अप हनू जघान | अधा निविद्ध उत्तरो बभूवाञ छिरो दासस्य सम पिणक वधेन ॥ गर्ष्टिः ससूव सथविरं तवागाम अनाध्र्ष्यं वर्षभं तुम्रम इन्द्रम | अरीळ्हं वत्सं चरथाय माता सवयं गातुं तन्व इछमानम ॥ उत माता महिषम अन्व अवेनद अमी तवा जहति पुत्र देवाः | अथाब्रवीद वर्त्रम इन्द्रो हनिष्यन सखे विष्णो वितरं वि करमस्व ॥
कस ते मातरं विधवाम अचक्रच छयुं कस तवाम अजिघांसच चरन्तम | कस ते देवो अधि मार्डीक आसीद यत पराक्षिणाः पितरम पादग्र्ह्य ॥ अवर्त्या शुन आन्त्राणि पेचे न देवेषु विविदे मर्डितारम | अपश्यं जायाम अमहीयमानाम अधा मे शयेनो मध्व आ जभार ॥