"ऋग्वेदः सूक्तं ४.१७" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
तवम महां इन्द्र तुभ्यं ह कषा अनु कषत्रम मंहना मन्यत दयौः | |
तवम महां इन्द्र तुभ्यं ह कषा अनु कषत्रम मंहना मन्यत दयौः | |
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तवं वर्त्रं शवसा जघन्वान सर्जः सिन्धूंर अहिना जग्रसानान |
तवं वर्त्रं शवसा जघन्वान सर्जः सिन्धूंर अहिना जग्रसानान ॥ |
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तव तविषो जनिमन रेजत दयौ रेजद भूमिर भियसा सवस्य मन्योः | |
तव तविषो जनिमन रेजत दयौ रेजद भूमिर भियसा सवस्य मन्योः | |
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रघायन्त सुभ्वः पर्वतास आर्दन धन्वानि सरयन्त आपः |
रघायन्त सुभ्वः पर्वतास आर्दन धन्वानि सरयन्त आपः ॥ |
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भिनद गिरिं शवसा वज्रम इष्णन्न आविष्क्र्ण्वानः सहसान ओजः | |
भिनद गिरिं शवसा वज्रम इष्णन्न आविष्क्र्ण्वानः सहसान ओजः | |
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वधीद वर्त्रं वज्रेण मन्दसानः सरन्न आपो जवसा हतव्र्ष्णीः |
वधीद वर्त्रं वज्रेण मन्दसानः सरन्न आपो जवसा हतव्र्ष्णीः ॥ |
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सुवीरस ते जनिता मन्यत दयौर इन्द्रस्य कर्ता सवपस्तमो भूत | |
सुवीरस ते जनिता मन्यत दयौर इन्द्रस्य कर्ता सवपस्तमो भूत | |
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य ईं जजान सवर्यं सुवज्रम अनपच्युतं सदसो न भूम |
य ईं जजान सवर्यं सुवज्रम अनपच्युतं सदसो न भूम ॥ |
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य एक इच चयावयति पर भूमा राजा कर्ष्टीनाम पुरुहूत इन्द्रः | |
य एक इच चयावयति पर भूमा राजा कर्ष्टीनाम पुरुहूत इन्द्रः | |
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सत्यम एनम अनु विश्वे मदन्ति रातिं देवस्य गर्णतो मघोनः |
सत्यम एनम अनु विश्वे मदन्ति रातिं देवस्य गर्णतो मघोनः ॥ |
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सत्रा सोमा अभवन्न अस्य विश्वे सत्रा मदासो बर्हतो मदिष्ठाः | |
सत्रा सोमा अभवन्न अस्य विश्वे सत्रा मदासो बर्हतो मदिष्ठाः | |
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सत्राभवो वसुपतिर वसूनां दत्रे विश्वा अधिथा इन्द्र कर्ष्टीः |
सत्राभवो वसुपतिर वसूनां दत्रे विश्वा अधिथा इन्द्र कर्ष्टीः ॥ |
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तवम अध परथमं जायमानो ऽमे विश्वा अधिथा इन्द्र कर्ष्टीः | |
तवम अध परथमं जायमानो ऽमे विश्वा अधिथा इन्द्र कर्ष्टीः | |
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तवम परति परवत आशयानम अहिं वज्रेण मघवन वि वर्श्चः |
तवम परति परवत आशयानम अहिं वज्रेण मघवन वि वर्श्चः ॥ |
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सत्राहणं दाध्र्षिं तुम्रम इन्द्रम महाम अपारं वर्षभं सुवज्रम | |
सत्राहणं दाध्र्षिं तुम्रम इन्द्रम महाम अपारं वर्षभं सुवज्रम | |
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हन्ता यो वर्त्रं सनितोत वाजं दाता मघानि मघवा सुराधाः |
हन्ता यो वर्त्रं सनितोत वाजं दाता मघानि मघवा सुराधाः ॥ |
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अयं वर्तश चातयते समीचीर य आजिषु मघवा शर्ण्व एकः | |
अयं वर्तश चातयते समीचीर य आजिषु मघवा शर्ण्व एकः | |
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अयं वाजम भरति यं सनोत्य अस्य परियासः सख्ये सयाम |
अयं वाजम भरति यं सनोत्य अस्य परियासः सख्ये सयाम ॥ |
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अयं शर्ण्वे अध जयन्न उत घनन्न अयम उत पर कर्णुते युधा गाः | |
अयं शर्ण्वे अध जयन्न उत घनन्न अयम उत पर कर्णुते युधा गाः | |
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यदा सत्यं कर्णुते मन्युम इन्द्रो विश्वं दर्ळ्हम भयत एजद अस्मात |
यदा सत्यं कर्णुते मन्युम इन्द्रो विश्वं दर्ळ्हम भयत एजद अस्मात ॥ |
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सम इन्द्रो गा अजयत सं हिरण्या सम अश्विया मघवा यो ह पूर्वीः | |
सम इन्द्रो गा अजयत सं हिरण्या सम अश्विया मघवा यो ह पूर्वीः | |
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एभिर नर्भिर नर्तमो अस्य शाकै रायो विभक्ता सम्भरश च वस्वः |
एभिर नर्भिर नर्तमो अस्य शाकै रायो विभक्ता सम्भरश च वस्वः ॥ |
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कियत सविद इन्द्रो अध्य एति मातुः कियत पितुर जनितुर यो जजान | |
कियत सविद इन्द्रो अध्य एति मातुः कियत पितुर जनितुर यो जजान | |
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यो अस्य शुष्मम मुहुकैर इयर्ति वातो न जूत सतनयद्भिर अभ्रैः |
यो अस्य शुष्मम मुहुकैर इयर्ति वातो न जूत सतनयद्भिर अभ्रैः ॥ |
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कषियन्तं तवम अक्षियन्तं कर्णोतीयर्ति रेणुम मघवा समोहम | |
कषियन्तं तवम अक्षियन्तं कर्णोतीयर्ति रेणुम मघवा समोहम | |
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विभञ्जनुर अशनिमां इव दयौर उत सतोतारम मघवा वसौ धात |
विभञ्जनुर अशनिमां इव दयौर उत सतोतारम मघवा वसौ धात ॥ |
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अयं चक्रम इषणत सूर्यस्य नय एतशं रीरमत सस्र्माणम | |
अयं चक्रम इषणत सूर्यस्य नय एतशं रीरमत सस्र्माणम | |
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आ कर्ष्ण ईं जुहुराणो जिघर्ति तवचो बुध्ने रजसो अस्य योनौ |
आ कर्ष्ण ईं जुहुराणो जिघर्ति तवचो बुध्ने रजसो अस्य योनौ ॥ |
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असिक्न्यां यजमानो न होता |
असिक्न्यां यजमानो न होता ॥ |
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गव्यन्त इन्द्रं सख्याय विप्रा अश्वायन्तो वर्षणं वाजयन्तः | |
गव्यन्त इन्द्रं सख्याय विप्रा अश्वायन्तो वर्षणं वाजयन्तः | |
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जनीयन्तो जनिदाम अक्षितोतिम आ चयावयामो ऽवते न कोशम |
जनीयन्तो जनिदाम अक्षितोतिम आ चयावयामो ऽवते न कोशम ॥ |
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तराता नो बोधि दद्र्शान आपिर अभिख्याता मर्डिता सोम्यानाम | |
तराता नो बोधि दद्र्शान आपिर अभिख्याता मर्डिता सोम्यानाम | |
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सखा पिता पित्र्तमः पित्णां कर्तेम उलोकम उशते वयोधाः |
सखा पिता पित्र्तमः पित्णां कर्तेम उलोकम उशते वयोधाः ॥ |
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सखीयताम अविता बोधि सखा गर्णान इन्द्र सतुवते वयो धाः | |
सखीयताम अविता बोधि सखा गर्णान इन्द्र सतुवते वयो धाः | |
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वयं हय आ ते चक्र्मा सबाध आभिः शमीभिर महयन्त इन्द्र |
वयं हय आ ते चक्र्मा सबाध आभिः शमीभिर महयन्त इन्द्र ॥ |
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सतुत इन्द्रो मघवा यद ध वर्त्रा भूरीण्य एको अप्रतीनि हन्ति | |
सतुत इन्द्रो मघवा यद ध वर्त्रा भूरीण्य एको अप्रतीनि हन्ति | |
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अस्य परियो जरिता यस्य शर्मन नकिर देवा वारयन्ते न मर्ताः |
अस्य परियो जरिता यस्य शर्मन नकिर देवा वारयन्ते न मर्ताः ॥ |
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एवा न इन्द्रो मघवा विरप्शी करत सत्या चर्षणीध्र्द अनर्वा | |
एवा न इन्द्रो मघवा विरप्शी करत सत्या चर्षणीध्र्द अनर्वा | |
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तवं राजा जनुषां धेह्य अस्मे अधि शरवो माहिनं यज जरित्रे |
तवं राजा जनुषां धेह्य अस्मे अधि शरवो माहिनं यज जरित्रे ॥ |
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नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
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अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः |
अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥ |
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१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
तवम महां इन्द्र तुभ्यं ह कषा अनु कषत्रम मंहना मन्यत दयौः | तवं वर्त्रं शवसा जघन्वान सर्जः सिन्धूंर अहिना जग्रसानान ॥ तव तविषो जनिमन रेजत दयौ रेजद भूमिर भियसा सवस्य मन्योः | रघायन्त सुभ्वः पर्वतास आर्दन धन्वानि सरयन्त आपः ॥ भिनद गिरिं शवसा वज्रम इष्णन्न आविष्क्र्ण्वानः सहसान ओजः | वधीद वर्त्रं वज्रेण मन्दसानः सरन्न आपो जवसा हतव्र्ष्णीः ॥ सुवीरस ते जनिता मन्यत दयौर इन्द्रस्य कर्ता सवपस्तमो भूत | य ईं जजान सवर्यं सुवज्रम अनपच्युतं सदसो न भूम ॥ य एक इच चयावयति पर भूमा राजा कर्ष्टीनाम पुरुहूत इन्द्रः | सत्यम एनम अनु विश्वे मदन्ति रातिं देवस्य गर्णतो मघोनः ॥
सत्रा सोमा अभवन्न अस्य विश्वे सत्रा मदासो बर्हतो मदिष्ठाः | सत्राभवो वसुपतिर वसूनां दत्रे विश्वा अधिथा इन्द्र कर्ष्टीः ॥ तवम अध परथमं जायमानो ऽमे विश्वा अधिथा इन्द्र कर्ष्टीः | तवम परति परवत आशयानम अहिं वज्रेण मघवन वि वर्श्चः ॥ सत्राहणं दाध्र्षिं तुम्रम इन्द्रम महाम अपारं वर्षभं सुवज्रम | हन्ता यो वर्त्रं सनितोत वाजं दाता मघानि मघवा सुराधाः ॥ अयं वर्तश चातयते समीचीर य आजिषु मघवा शर्ण्व एकः | अयं वाजम भरति यं सनोत्य अस्य परियासः सख्ये सयाम ॥ अयं शर्ण्वे अध जयन्न उत घनन्न अयम उत पर कर्णुते युधा गाः | यदा सत्यं कर्णुते मन्युम इन्द्रो विश्वं दर्ळ्हम भयत एजद अस्मात ॥
सम इन्द्रो गा अजयत सं हिरण्या सम अश्विया मघवा यो ह पूर्वीः | एभिर नर्भिर नर्तमो अस्य शाकै रायो विभक्ता सम्भरश च वस्वः ॥ कियत सविद इन्द्रो अध्य एति मातुः कियत पितुर जनितुर यो जजान | यो अस्य शुष्मम मुहुकैर इयर्ति वातो न जूत सतनयद्भिर अभ्रैः ॥ कषियन्तं तवम अक्षियन्तं कर्णोतीयर्ति रेणुम मघवा समोहम | विभञ्जनुर अशनिमां इव दयौर उत सतोतारम मघवा वसौ धात ॥ अयं चक्रम इषणत सूर्यस्य नय एतशं रीरमत सस्र्माणम | आ कर्ष्ण ईं जुहुराणो जिघर्ति तवचो बुध्ने रजसो अस्य योनौ ॥
असिक्न्यां यजमानो न होता ॥ गव्यन्त इन्द्रं सख्याय विप्रा अश्वायन्तो वर्षणं वाजयन्तः | जनीयन्तो जनिदाम अक्षितोतिम आ चयावयामो ऽवते न कोशम ॥ तराता नो बोधि दद्र्शान आपिर अभिख्याता मर्डिता सोम्यानाम | सखा पिता पित्र्तमः पित्णां कर्तेम उलोकम उशते वयोधाः ॥ सखीयताम अविता बोधि सखा गर्णान इन्द्र सतुवते वयो धाः | वयं हय आ ते चक्र्मा सबाध आभिः शमीभिर महयन्त इन्द्र ॥ सतुत इन्द्रो मघवा यद ध वर्त्रा भूरीण्य एको अप्रतीनि हन्ति | अस्य परियो जरिता यस्य शर्मन नकिर देवा वारयन्ते न मर्ताः ॥
एवा न इन्द्रो मघवा विरप्शी करत सत्या चर्षणीध्र्द अनर्वा | तवं राजा जनुषां धेह्य अस्मे अधि शरवो माहिनं यज जरित्रे ॥ नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥