"ऋग्वेदः सूक्तं ४.१६" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
आ सत्यो यातु मघवां रजीषी दरवन्त्व अस्य हरय उप नः | |
आ सत्यो यातु मघवां रजीषी दरवन्त्व अस्य हरय उप नः | |
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तस्मा इद अन्धः सुषुमा सुदक्षम इहाभिपित्वं करते गर्णानः |
तस्मा इद अन्धः सुषुमा सुदक्षम इहाभिपित्वं करते गर्णानः ॥ |
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अव सय शूराध्वनो नान्ते ऽसमिन नो अद्य सवने मन्दध्यै | |
अव सय शूराध्वनो नान्ते ऽसमिन नो अद्य सवने मन्दध्यै | |
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शंसात्य उक्थम उशनेव वेधाश चिकितुषे असुर्याय मन्म |
शंसात्य उक्थम उशनेव वेधाश चिकितुषे असुर्याय मन्म ॥ |
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कविर न निण्यं विदथानि साधन वर्षा यत सेकं विपिपानो अर्चात | |
कविर न निण्यं विदथानि साधन वर्षा यत सेकं विपिपानो अर्चात | |
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दिव इत्था जीजनत सप्त कारून अह्ना चिच चक्रुर वयुना गर्णन्तः |
दिव इत्था जीजनत सप्त कारून अह्ना चिच चक्रुर वयुना गर्णन्तः ॥ |
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सवर यद वेदि सुद्र्शीकम अर्कैर महि जयोती रुरुचुर यद ध वस्तोः | |
सवर यद वेदि सुद्र्शीकम अर्कैर महि जयोती रुरुचुर यद ध वस्तोः | |
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अन्धा तमांसि दुधिता विचक्षे नर्भ्यश चकार नर्तमो अभिष्टौ |
अन्धा तमांसि दुधिता विचक्षे नर्भ्यश चकार नर्तमो अभिष्टौ ॥ |
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ववक्ष इन्द्रो अमितम रजीष्य उभे आ पप्रौ रोदसी महित्वा | |
ववक्ष इन्द्रो अमितम रजीष्य उभे आ पप्रौ रोदसी महित्वा | |
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अतश चिद अस्य महिमा वि रेच्य अभि यो विश्वा भुवना बभूव |
अतश चिद अस्य महिमा वि रेच्य अभि यो विश्वा भुवना बभूव ॥ |
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विश्वानि शक्रो नर्याणि विद्वान अपो रिरेच सखिभिर निकामैः | |
विश्वानि शक्रो नर्याणि विद्वान अपो रिरेच सखिभिर निकामैः | |
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अश्मानं चिद ये बिभिदुर वचोभिर वरजं गोमन्तम उशिजो वि वव्रुः |
अश्मानं चिद ये बिभिदुर वचोभिर वरजं गोमन्तम उशिजो वि वव्रुः ॥ |
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अपो वर्त्रं वव्रिवांसम पराहन परावत ते वज्रम पर्थिवी सचेताः | |
अपो वर्त्रं वव्रिवांसम पराहन परावत ते वज्रम पर्थिवी सचेताः | |
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परार्णांसि समुद्रियाण्य ऐनोः पतिर भवञ छवसा शूर धर्ष्णो |
परार्णांसि समुद्रियाण्य ऐनोः पतिर भवञ छवसा शूर धर्ष्णो ॥ |
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अपो यद अद्रिम पुरुहूत दर्दर आविर भुवत सरमा पूर्व्यं ते | |
अपो यद अद्रिम पुरुहूत दर्दर आविर भुवत सरमा पूर्व्यं ते | |
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स नो नेता वाजम आ दर्षि भूरिं गोत्रा रुजन्न अङगिरोभिर गर्णानः |
स नो नेता वाजम आ दर्षि भूरिं गोत्रा रुजन्न अङगिरोभिर गर्णानः ॥ |
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अछा कविं नर्मणो गा अभिष्टौ सवर्षाता मघवन नाधमानम | |
अछा कविं नर्मणो गा अभिष्टौ सवर्षाता मघवन नाधमानम | |
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ऊतिभिस तम इषणो दयुम्नहूतौ नि मायावान अब्रह्मा दस्युर अर्त |
ऊतिभिस तम इषणो दयुम्नहूतौ नि मायावान अब्रह्मा दस्युर अर्त ॥ |
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आ दस्युघ्ना मनसा याह्य अस्तम भुवत ते कुत्सः सख्ये निकामः | |
आ दस्युघ्ना मनसा याह्य अस्तम भुवत ते कुत्सः सख्ये निकामः | |
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सवे योनौ नि षदतं सरूपा वि वां चिकित्सद रतचिद ध नारी |
सवे योनौ नि षदतं सरूपा वि वां चिकित्सद रतचिद ध नारी ॥ |
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यासि कुत्सेन सरथम अवस्युस तोदो वातस्य हर्योर ईशानः | |
यासि कुत्सेन सरथम अवस्युस तोदो वातस्य हर्योर ईशानः | |
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रज्रा वाजं न गध्यं युयूषन कविर यद अहन पार्याय भूषात |
रज्रा वाजं न गध्यं युयूषन कविर यद अहन पार्याय भूषात ॥ |
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कुत्साय शुष्णम अशुषं नि बर्हीः परपित्वे अह्नः कुयवं सहस्रा | |
कुत्साय शुष्णम अशुषं नि बर्हीः परपित्वे अह्नः कुयवं सहस्रा | |
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सद्यो दस्यून पर मर्ण कुत्स्येन पर सूरश चक्रं वर्हताद अभीके |
सद्यो दस्यून पर मर्ण कुत्स्येन पर सूरश चक्रं वर्हताद अभीके ॥ |
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तवम पिप्रुम मर्गयं शूशुवांसम रजिश्वने वैदथिनाय रन्धीः | |
तवम पिप्रुम मर्गयं शूशुवांसम रजिश्वने वैदथिनाय रन्धीः | |
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पञ्चाशत कर्ष्णा नि वपः सहस्रात्कं न पुरो जरिमा वि दर्दः |
पञ्चाशत कर्ष्णा नि वपः सहस्रात्कं न पुरो जरिमा वि दर्दः ॥ |
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सूर उपाके तन्वं दधानो वि यत ते चेत्य अम्र्तस्य वर्पः | |
सूर उपाके तन्वं दधानो वि यत ते चेत्य अम्र्तस्य वर्पः | |
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मर्गो न हस्ती तविषीम उषाणः सिंहो न भीम आयुधानि बिभ्रत |
मर्गो न हस्ती तविषीम उषाणः सिंहो न भीम आयुधानि बिभ्रत ॥ |
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इन्द्रं कामा वसूयन्तो अग्मन सवर्मीळ्हे न सवने चकानाः | |
इन्द्रं कामा वसूयन्तो अग्मन सवर्मीळ्हे न सवने चकानाः | |
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शरवस्यवः शशमानास उक्थैर ओको न रण्वा सुद्र्शीव पुष्टिः |
शरवस्यवः शशमानास उक्थैर ओको न रण्वा सुद्र्शीव पुष्टिः ॥ |
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तम इद व इन्द्रं सुहवं हुवेम यस ता चकार नर्या पुरूणि | |
तम इद व इन्द्रं सुहवं हुवेम यस ता चकार नर्या पुरूणि | |
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यो मावते जरित्रे गध्यं चिन मक्षू वाजम भरति सपार्हराधाः |
यो मावते जरित्रे गध्यं चिन मक्षू वाजम भरति सपार्हराधाः ॥ |
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तिग्मा यद अन्तर अशनिः पताति कस्मिञ चिच छूर मुहुके जनानाम | |
तिग्मा यद अन्तर अशनिः पताति कस्मिञ चिच छूर मुहुके जनानाम | |
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घोरा यद अर्य सम्र्तिर भवात्य अध समा नस तन्वो बोधि गोपाः |
घोरा यद अर्य सम्र्तिर भवात्य अध समा नस तन्वो बोधि गोपाः ॥ |
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भुवो ऽविता वामदेवस्य धीनाम भुवः सखाव्र्को वाजसातौ | |
भुवो ऽविता वामदेवस्य धीनाम भुवः सखाव्र्को वाजसातौ | |
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तवाम अनु परमतिम आ जगन्मोरुशंसो जरित्रे विश्वध सयाः |
तवाम अनु परमतिम आ जगन्मोरुशंसो जरित्रे विश्वध सयाः ॥ |
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एभिर नर्भिर इन्द्र तवायुभिष टवा मघवद्भिर मघवन विश्व आजौ | |
एभिर नर्भिर इन्द्र तवायुभिष टवा मघवद्भिर मघवन विश्व आजौ | |
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दयावो न दयुम्नैर अभि सन्तो अर्यः कषपो मदेम शरदश च पूर्वीः |
दयावो न दयुम्नैर अभि सन्तो अर्यः कषपो मदेम शरदश च पूर्वीः ॥ |
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एवेद इन्द्राय वर्षभाय वर्ष्णे बरह्माकर्म भर्गवो न रथम | |
एवेद इन्द्राय वर्षभाय वर्ष्णे बरह्माकर्म भर्गवो न रथम | |
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नू चिद यथा नः सख्या वियोषद असन न उग्रो ऽविता तनूपाः |
नू चिद यथा नः सख्या वियोषद असन न उग्रो ऽविता तनूपाः ॥ |
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नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
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अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः |
अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥ |
१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
आ सत्यो यातु मघवां रजीषी दरवन्त्व अस्य हरय उप नः | तस्मा इद अन्धः सुषुमा सुदक्षम इहाभिपित्वं करते गर्णानः ॥ अव सय शूराध्वनो नान्ते ऽसमिन नो अद्य सवने मन्दध्यै | शंसात्य उक्थम उशनेव वेधाश चिकितुषे असुर्याय मन्म ॥ कविर न निण्यं विदथानि साधन वर्षा यत सेकं विपिपानो अर्चात | दिव इत्था जीजनत सप्त कारून अह्ना चिच चक्रुर वयुना गर्णन्तः ॥ सवर यद वेदि सुद्र्शीकम अर्कैर महि जयोती रुरुचुर यद ध वस्तोः | अन्धा तमांसि दुधिता विचक्षे नर्भ्यश चकार नर्तमो अभिष्टौ ॥
ववक्ष इन्द्रो अमितम रजीष्य उभे आ पप्रौ रोदसी महित्वा | अतश चिद अस्य महिमा वि रेच्य अभि यो विश्वा भुवना बभूव ॥ विश्वानि शक्रो नर्याणि विद्वान अपो रिरेच सखिभिर निकामैः | अश्मानं चिद ये बिभिदुर वचोभिर वरजं गोमन्तम उशिजो वि वव्रुः ॥ अपो वर्त्रं वव्रिवांसम पराहन परावत ते वज्रम पर्थिवी सचेताः | परार्णांसि समुद्रियाण्य ऐनोः पतिर भवञ छवसा शूर धर्ष्णो ॥ अपो यद अद्रिम पुरुहूत दर्दर आविर भुवत सरमा पूर्व्यं ते | स नो नेता वाजम आ दर्षि भूरिं गोत्रा रुजन्न अङगिरोभिर गर्णानः ॥
अछा कविं नर्मणो गा अभिष्टौ सवर्षाता मघवन नाधमानम | ऊतिभिस तम इषणो दयुम्नहूतौ नि मायावान अब्रह्मा दस्युर अर्त ॥ आ दस्युघ्ना मनसा याह्य अस्तम भुवत ते कुत्सः सख्ये निकामः | सवे योनौ नि षदतं सरूपा वि वां चिकित्सद रतचिद ध नारी ॥ यासि कुत्सेन सरथम अवस्युस तोदो वातस्य हर्योर ईशानः | रज्रा वाजं न गध्यं युयूषन कविर यद अहन पार्याय भूषात ॥ कुत्साय शुष्णम अशुषं नि बर्हीः परपित्वे अह्नः कुयवं सहस्रा | सद्यो दस्यून पर मर्ण कुत्स्येन पर सूरश चक्रं वर्हताद अभीके ॥ तवम पिप्रुम मर्गयं शूशुवांसम रजिश्वने वैदथिनाय रन्धीः | पञ्चाशत कर्ष्णा नि वपः सहस्रात्कं न पुरो जरिमा वि दर्दः ॥
सूर उपाके तन्वं दधानो वि यत ते चेत्य अम्र्तस्य वर्पः | मर्गो न हस्ती तविषीम उषाणः सिंहो न भीम आयुधानि बिभ्रत ॥ इन्द्रं कामा वसूयन्तो अग्मन सवर्मीळ्हे न सवने चकानाः | शरवस्यवः शशमानास उक्थैर ओको न रण्वा सुद्र्शीव पुष्टिः ॥ तम इद व इन्द्रं सुहवं हुवेम यस ता चकार नर्या पुरूणि | यो मावते जरित्रे गध्यं चिन मक्षू वाजम भरति सपार्हराधाः ॥ तिग्मा यद अन्तर अशनिः पताति कस्मिञ चिच छूर मुहुके जनानाम | घोरा यद अर्य सम्र्तिर भवात्य अध समा नस तन्वो बोधि गोपाः ॥
भुवो ऽविता वामदेवस्य धीनाम भुवः सखाव्र्को वाजसातौ | तवाम अनु परमतिम आ जगन्मोरुशंसो जरित्रे विश्वध सयाः ॥ एभिर नर्भिर इन्द्र तवायुभिष टवा मघवद्भिर मघवन विश्व आजौ | दयावो न दयुम्नैर अभि सन्तो अर्यः कषपो मदेम शरदश च पूर्वीः ॥ एवेद इन्द्राय वर्षभाय वर्ष्णे बरह्माकर्म भर्गवो न रथम | नू चिद यथा नः सख्या वियोषद असन न उग्रो ऽविता तनूपाः ॥ नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥