"ऋग्वेदः सूक्तं ४.१२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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यस तवाम अग्न इनधते यतस्रुक तरिस ते अन्नं कर्णवत सस्मिन्न अहन | |
यस तवाम अग्न इनधते यतस्रुक तरिस ते अन्नं कर्णवत सस्मिन्न अहन | |
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स सु दयुम्नैर अभ्य अस्तु परसक्षत तव करत्वा जातवेदश चिकित्वान |
स सु दयुम्नैर अभ्य अस्तु परसक्षत तव करत्वा जातवेदश चिकित्वान ॥ |
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इध्मं यस ते जभरच छश्रमाणो महो अग्ने अनीकम आ सपर्यन | |
इध्मं यस ते जभरच छश्रमाणो महो अग्ने अनीकम आ सपर्यन | |
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स इधानः परति दोषाम उषासम पुष्यन रयिं सचते घनन्न अमित्रान |
स इधानः परति दोषाम उषासम पुष्यन रयिं सचते घनन्न अमित्रान ॥ |
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अग्निर ईशे बर्हतः कषत्रियस्याग्निर वाजस्य परमस्य रायः | |
अग्निर ईशे बर्हतः कषत्रियस्याग्निर वाजस्य परमस्य रायः | |
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दधाति रत्नं विधते यविष्ठो वय आनुषङ मर्त्याय सवधावान |
दधाति रत्नं विधते यविष्ठो वय आनुषङ मर्त्याय सवधावान ॥ |
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यच चिद धि ते पुरुषत्रा यविष्ठाचित्तिभिश चक्र्मा कच चिद आगः | |
यच चिद धि ते पुरुषत्रा यविष्ठाचित्तिभिश चक्र्मा कच चिद आगः | |
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कर्धी षव अस्मां अदितेर अनागान वय एनांसि शिश्रथो विष्वग अग्ने |
कर्धी षव अस्मां अदितेर अनागान वय एनांसि शिश्रथो विष्वग अग्ने ॥ |
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महश चिद अग्न एनसो अभीक ऊर्वाद देवानाम उत मर्त्यानाम | |
महश चिद अग्न एनसो अभीक ऊर्वाद देवानाम उत मर्त्यानाम | |
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मा ते सखायः सदम इद रिषाम यछा तोकाय तनयाय शं योः |
मा ते सखायः सदम इद रिषाम यछा तोकाय तनयाय शं योः ॥ |
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यथा ह तयद वसवो गौर्यं चित पदि षिताम अमुञ्चता यजत्राः | |
यथा ह तयद वसवो गौर्यं चित पदि षिताम अमुञ्चता यजत्राः | |
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एवो षव अस्मन मुञ्चता वय अंहः पर तार्य अग्ने परतरं न आयुः |
एवो षव अस्मन मुञ्चता वय अंहः पर तार्य अग्ने परतरं न आयुः ॥ |
१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
यस तवाम अग्न इनधते यतस्रुक तरिस ते अन्नं कर्णवत सस्मिन्न अहन | स सु दयुम्नैर अभ्य अस्तु परसक्षत तव करत्वा जातवेदश चिकित्वान ॥ इध्मं यस ते जभरच छश्रमाणो महो अग्ने अनीकम आ सपर्यन | स इधानः परति दोषाम उषासम पुष्यन रयिं सचते घनन्न अमित्रान ॥ अग्निर ईशे बर्हतः कषत्रियस्याग्निर वाजस्य परमस्य रायः | दधाति रत्नं विधते यविष्ठो वय आनुषङ मर्त्याय सवधावान ॥
यच चिद धि ते पुरुषत्रा यविष्ठाचित्तिभिश चक्र्मा कच चिद आगः | कर्धी षव अस्मां अदितेर अनागान वय एनांसि शिश्रथो विष्वग अग्ने ॥ महश चिद अग्न एनसो अभीक ऊर्वाद देवानाम उत मर्त्यानाम | मा ते सखायः सदम इद रिषाम यछा तोकाय तनयाय शं योः ॥ यथा ह तयद वसवो गौर्यं चित पदि षिताम अमुञ्चता यजत्राः | एवो षव अस्मन मुञ्चता वय अंहः पर तार्य अग्ने परतरं न आयुः ॥