"ऋग्वेदः सूक्तं १.९२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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एता उ तया उषसः केतुमक्रत पूर्वे अर्धे रजसो भानुमञ्जते | |
एता उ तया उषसः केतुमक्रत पूर्वे अर्धे रजसो भानुमञ्जते | |
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निष्क्र्ण्वाना आयुधानीव धर्ष्णवः परति गावोऽरुषीर्यन्ति मातरः |
निष्क्र्ण्वाना आयुधानीव धर्ष्णवः परति गावोऽरुषीर्यन्ति मातरः ॥ |
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उदपप्तन्नरुणा भानवो वर्था सवायुजो अरुषीर्गा अयुक्सत | |
उदपप्तन्नरुणा भानवो वर्था सवायुजो अरुषीर्गा अयुक्सत | |
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अक्रन्नुषासो वयुनानि पूर्वथा रुशन्तं भानुमरुषीरशिश्रयुः |
अक्रन्नुषासो वयुनानि पूर्वथा रुशन्तं भानुमरुषीरशिश्रयुः ॥ |
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अर्चन्ति नारीरपसो न विष्टिभिः समानेन योजनेना परावतः | |
अर्चन्ति नारीरपसो न विष्टिभिः समानेन योजनेना परावतः | |
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इषं वहन्तीः सुक्र्ते सुदानवे विश्वेदह यजमानाय सुन्वते |
इषं वहन्तीः सुक्र्ते सुदानवे विश्वेदह यजमानाय सुन्वते ॥ |
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अधि पेशांसि वपते नर्तूरिवापोर्णुते वक्ष उस्रेव बर्जहम | |
अधि पेशांसि वपते नर्तूरिवापोर्णुते वक्ष उस्रेव बर्जहम | |
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जयोतिर्विश्वस्मै भुवनाय कर्ण्वती गावो न वरजं वयुषा आवर्तमः |
जयोतिर्विश्वस्मै भुवनाय कर्ण्वती गावो न वरजं वयुषा आवर्तमः ॥ |
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परत्यर्ची रुशदस्या अदर्शि वि तिष्ठते बाधते कर्ष्णमभ्वम | |
परत्यर्ची रुशदस्या अदर्शि वि तिष्ठते बाधते कर्ष्णमभ्वम | |
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सवरुं न पेशो विदथेष्वञ्जञ्चित्रं दिवो दुहिता भानुमश्रेत |
सवरुं न पेशो विदथेष्वञ्जञ्चित्रं दिवो दुहिता भानुमश्रेत ॥ |
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अतारिष्म तमसस पारमस्योषा उछन्ती वयुना कर्णोति | |
अतारिष्म तमसस पारमस्योषा उछन्ती वयुना कर्णोति | |
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शरिये छन्दो न समयते विभाती सुप्रतीका सौमनसायाजीगः |
शरिये छन्दो न समयते विभाती सुप्रतीका सौमनसायाजीगः ॥ |
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भास्वती नेत्री सून्र्तानां दिव सतवे दुहिता गोतमेभिः | |
भास्वती नेत्री सून्र्तानां दिव सतवे दुहिता गोतमेभिः | |
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परजावतो नर्वतो अश्वबुध्यानुषो गोग्रानुप मासि वाजान |
परजावतो नर्वतो अश्वबुध्यानुषो गोग्रानुप मासि वाजान ॥ |
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उषस्तमश्यां यशसं सुवीरं दासप्रवर्गं रयिमश्वबुध्यम | |
उषस्तमश्यां यशसं सुवीरं दासप्रवर्गं रयिमश्वबुध्यम | |
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सुदंससा शरवसा या विभासि वाजप्रसूता सुभगे बर्हन्तम |
सुदंससा शरवसा या विभासि वाजप्रसूता सुभगे बर्हन्तम ॥ |
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विश्वानि देवी भुवनाभिचक्ष्या परतीची चक्षुरुर्विया वि भाति | |
विश्वानि देवी भुवनाभिचक्ष्या परतीची चक्षुरुर्विया वि भाति | |
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विश्वं जीवं चरसे बोधयन्ती विश्वस्य वाचमविदन मनायोः |
विश्वं जीवं चरसे बोधयन्ती विश्वस्य वाचमविदन मनायोः ॥ |
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पुनः-पुनर्जायमाना पुराणी समानं वर्णमभि शुम्भमाना | |
पुनः-पुनर्जायमाना पुराणी समानं वर्णमभि शुम्भमाना | |
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शवघ्नीव कर्त्नुर्विज आमिनाना मर्तस्य देवी जरयन्त्यायुः |
शवघ्नीव कर्त्नुर्विज आमिनाना मर्तस्य देवी जरयन्त्यायुः ॥ |
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वयूर्ण्वती दिवो अन्तानबोध्यप सवसारं सनुतर्युयोति | |
वयूर्ण्वती दिवो अन्तानबोध्यप सवसारं सनुतर्युयोति | |
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परमिनती मनुष्या युगानि योषा जारस्य चक्षसा वि भाति |
परमिनती मनुष्या युगानि योषा जारस्य चक्षसा वि भाति ॥ |
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पशून न चित्रा सुभगा परथाना सिन्धुर्न कषोद उर्विया वयश्वैत | |
पशून न चित्रा सुभगा परथाना सिन्धुर्न कषोद उर्विया वयश्वैत | |
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अमिनती दैव्यानि वरतानि सूर्यस्य चेति रश्मिभिर्द्र्शाना |
अमिनती दैव्यानि वरतानि सूर्यस्य चेति रश्मिभिर्द्र्शाना ॥ |
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उषस्तच्चित्रमा भरास्मभ्यं वाजिनीवति | |
उषस्तच्चित्रमा भरास्मभ्यं वाजिनीवति | |
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येन तोकंच तनयं च धामहे |
येन तोकंच तनयं च धामहे ॥ |
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उषो अद्येह गोमत्यश्वावति विभावरि | |
उषो अद्येह गोमत्यश्वावति विभावरि | |
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रेवदस्मे वयुछ सून्र्तावति |
रेवदस्मे वयुछ सून्र्तावति ॥ |
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युक्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वानद्यारुणानुषः | |
युक्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वानद्यारुणानुषः | |
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अथा नोविश्वा सौभगान्या वह |
अथा नोविश्वा सौभगान्या वह ॥ |
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अश्विना वर्तिरस्मदा गोमद दस्रा हिरण्यवत | |
अश्विना वर्तिरस्मदा गोमद दस्रा हिरण्यवत | |
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अर्वाग रथं समनसा नि यछतम |
अर्वाग रथं समनसा नि यछतम ॥ |
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यावित्था शलोकमा दिवो जयोतिर्जनाय चक्रथुः | |
यावित्था शलोकमा दिवो जयोतिर्जनाय चक्रथुः | |
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आ नूर्जं वहतमश्विना युवम |
आ नूर्जं वहतमश्विना युवम ॥ |
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एह देवा मयोभुवा दस्रा हिरण्यवर्तनी | |
एह देवा मयोभुवा दस्रा हिरण्यवर्तनी | |
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उषर्बुधो वहन्तु सोमपीतये |
उषर्बुधो वहन्तु सोमपीतये ॥ |
१८:५७, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
एता उ तया उषसः केतुमक्रत पूर्वे अर्धे रजसो भानुमञ्जते | निष्क्र्ण्वाना आयुधानीव धर्ष्णवः परति गावोऽरुषीर्यन्ति मातरः ॥ उदपप्तन्नरुणा भानवो वर्था सवायुजो अरुषीर्गा अयुक्सत | अक्रन्नुषासो वयुनानि पूर्वथा रुशन्तं भानुमरुषीरशिश्रयुः ॥ अर्चन्ति नारीरपसो न विष्टिभिः समानेन योजनेना परावतः | इषं वहन्तीः सुक्र्ते सुदानवे विश्वेदह यजमानाय सुन्वते ॥ अधि पेशांसि वपते नर्तूरिवापोर्णुते वक्ष उस्रेव बर्जहम | जयोतिर्विश्वस्मै भुवनाय कर्ण्वती गावो न वरजं वयुषा आवर्तमः ॥ परत्यर्ची रुशदस्या अदर्शि वि तिष्ठते बाधते कर्ष्णमभ्वम | सवरुं न पेशो विदथेष्वञ्जञ्चित्रं दिवो दुहिता भानुमश्रेत ॥ अतारिष्म तमसस पारमस्योषा उछन्ती वयुना कर्णोति | शरिये छन्दो न समयते विभाती सुप्रतीका सौमनसायाजीगः ॥ भास्वती नेत्री सून्र्तानां दिव सतवे दुहिता गोतमेभिः | परजावतो नर्वतो अश्वबुध्यानुषो गोग्रानुप मासि वाजान ॥ उषस्तमश्यां यशसं सुवीरं दासप्रवर्गं रयिमश्वबुध्यम | सुदंससा शरवसा या विभासि वाजप्रसूता सुभगे बर्हन्तम ॥ विश्वानि देवी भुवनाभिचक्ष्या परतीची चक्षुरुर्विया वि भाति | विश्वं जीवं चरसे बोधयन्ती विश्वस्य वाचमविदन मनायोः ॥ पुनः-पुनर्जायमाना पुराणी समानं वर्णमभि शुम्भमाना | शवघ्नीव कर्त्नुर्विज आमिनाना मर्तस्य देवी जरयन्त्यायुः ॥ वयूर्ण्वती दिवो अन्तानबोध्यप सवसारं सनुतर्युयोति | परमिनती मनुष्या युगानि योषा जारस्य चक्षसा वि भाति ॥ पशून न चित्रा सुभगा परथाना सिन्धुर्न कषोद उर्विया वयश्वैत | अमिनती दैव्यानि वरतानि सूर्यस्य चेति रश्मिभिर्द्र्शाना ॥ उषस्तच्चित्रमा भरास्मभ्यं वाजिनीवति | येन तोकंच तनयं च धामहे ॥ उषो अद्येह गोमत्यश्वावति विभावरि | रेवदस्मे वयुछ सून्र्तावति ॥ युक्ष्वा हि वाजिनीवत्यश्वानद्यारुणानुषः | अथा नोविश्वा सौभगान्या वह ॥ अश्विना वर्तिरस्मदा गोमद दस्रा हिरण्यवत | अर्वाग रथं समनसा नि यछतम ॥ यावित्था शलोकमा दिवो जयोतिर्जनाय चक्रथुः | आ नूर्जं वहतमश्विना युवम ॥ एह देवा मयोभुवा दस्रा हिरण्यवर्तनी | उषर्बुधो वहन्तु सोमपीतये ॥