"ऋग्वेदः सूक्तं १.६७" इत्यस्य संस्करणे भेदः
Content deleted Content added
(लघु) ऋग्वेद: सूक्तं 1.67 moved to ऋग्वेद: सूक्तं १.६७ |
(लघु) Yannf : replace |
||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
वनेषु जायुर्मर्तेषु मित्रो वर्णीते शरुष्टिं राजेवाजुर्यम | |
वनेषु जायुर्मर्तेषु मित्रो वर्णीते शरुष्टिं राजेवाजुर्यम | |
||
कषेमो न साधुः करतुर्न भद्रो भुवत सवाधिर्होता हव्यवाट |
कषेमो न साधुः करतुर्न भद्रो भुवत सवाधिर्होता हव्यवाट ॥ |
||
हस्ते दधानो नर्म्णा विश्वान्यमे देवान धाद गुहा निषीदन | |
हस्ते दधानो नर्म्णा विश्वान्यमे देवान धाद गुहा निषीदन | |
||
विदन्तीमत्र नरो धियन्धा हर्दा यत तष्टान मन्त्रानशंसन |
विदन्तीमत्र नरो धियन्धा हर्दा यत तष्टान मन्त्रानशंसन ॥ |
||
अजो न कषां दाधार पर्थिवीं तस्तम्भ दयां मन्त्रेभिः सत्यैः | |
अजो न कषां दाधार पर्थिवीं तस्तम्भ दयां मन्त्रेभिः सत्यैः | |
||
परिया पदानि पश्वो नि पाहि विश्वायुरग्ने गुहा गुहं गाः |
परिया पदानि पश्वो नि पाहि विश्वायुरग्ने गुहा गुहं गाः ॥ |
||
य ईं चिकेत गुहा भवन्तमा यः ससाद धारां रतस्य | |
य ईं चिकेत गुहा भवन्तमा यः ससाद धारां रतस्य | |
||
वि ये चर्तन्त्य रता सपन्त आदिद वसूनि पर ववाचास्मै |
वि ये चर्तन्त्य रता सपन्त आदिद वसूनि पर ववाचास्मै ॥ |
||
वि यो वीरुत्सु रोधन महित्वोत परजा उत परसूष्वन्तः | |
वि यो वीरुत्सु रोधन महित्वोत परजा उत परसूष्वन्तः | |
||
चित्तिरपां दमे विश्वायुः सद्मेव धीराः सम्माय चक्रुः |
चित्तिरपां दमे विश्वायुः सद्मेव धीराः सम्माय चक्रुः ॥ |
||
१८:५६, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
वनेषु जायुर्मर्तेषु मित्रो वर्णीते शरुष्टिं राजेवाजुर्यम | कषेमो न साधुः करतुर्न भद्रो भुवत सवाधिर्होता हव्यवाट ॥ हस्ते दधानो नर्म्णा विश्वान्यमे देवान धाद गुहा निषीदन | विदन्तीमत्र नरो धियन्धा हर्दा यत तष्टान मन्त्रानशंसन ॥ अजो न कषां दाधार पर्थिवीं तस्तम्भ दयां मन्त्रेभिः सत्यैः | परिया पदानि पश्वो नि पाहि विश्वायुरग्ने गुहा गुहं गाः ॥ य ईं चिकेत गुहा भवन्तमा यः ससाद धारां रतस्य | वि ये चर्तन्त्य रता सपन्त आदिद वसूनि पर ववाचास्मै ॥ वि यो वीरुत्सु रोधन महित्वोत परजा उत परसूष्वन्तः | चित्तिरपां दमे विश्वायुः सद्मेव धीराः सम्माय चक्रुः ॥