"ऋग्वेदः सूक्तं १.४८" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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सह वामेन न उषो वयुछा दुहितर्दिवः | |
सह वामेन न उषो वयुछा दुहितर्दिवः | |
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सह दयुम्नेन बर्हता विभावरि राया देवि दास्वती |
सह दयुम्नेन बर्हता विभावरि राया देवि दास्वती ॥ |
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अश्वावतीर्गोमतीर्विश्वसुविदो भूरि चयवन्त वस्तवे | |
अश्वावतीर्गोमतीर्विश्वसुविदो भूरि चयवन्त वस्तवे | |
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उदीरय परति मा सून्र्ता उषश्चोद राधो मघोनाम |
उदीरय परति मा सून्र्ता उषश्चोद राधो मघोनाम ॥ |
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उवासोषा उछाच्च नु देवी जीरा रथानाम | |
उवासोषा उछाच्च नु देवी जीरा रथानाम | |
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ये अस्या आचरणेषु दध्रिरे समुद्रे न शरवस्यवः |
ये अस्या आचरणेषु दध्रिरे समुद्रे न शरवस्यवः ॥ |
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उषो ये ते पर यामेषु युञ्जते मनो दानाय सूरयः | |
उषो ये ते पर यामेषु युञ्जते मनो दानाय सूरयः | |
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अत्राह तत कण्व एषां कण्वतमो नाम गर्णाति नर्णाम |
अत्राह तत कण्व एषां कण्वतमो नाम गर्णाति नर्णाम ॥ |
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आ घा योषेव सूनर्युषा याति परभुञ्जती | |
आ घा योषेव सूनर्युषा याति परभुञ्जती | |
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जरयन्ती वर्जनं पद्वदीयत उत पातयति पक्षिणः |
जरयन्ती वर्जनं पद्वदीयत उत पातयति पक्षिणः ॥ |
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वि या सर्जति समनं वयर्थिनः पदां न वेत्योदती | |
वि या सर्जति समनं वयर्थिनः पदां न वेत्योदती | |
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वयो नकिष टे पप्तिवांस आसते वयुष्टौ वाजिनीवति |
वयो नकिष टे पप्तिवांस आसते वयुष्टौ वाजिनीवति ॥ |
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एषायुक्त परावतः सूर्यस्योदयनादधि | |
एषायुक्त परावतः सूर्यस्योदयनादधि | |
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शतं रथेभिः सुभगोषा इयं वि यात्यभि मानुषान |
शतं रथेभिः सुभगोषा इयं वि यात्यभि मानुषान ॥ |
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विश्वमस्या नानाम चक्षसे जगज्ज्योतिष कर्णोति सूनरी | |
विश्वमस्या नानाम चक्षसे जगज्ज्योतिष कर्णोति सूनरी | |
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अप दवेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उछदप सरिधः |
अप दवेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उछदप सरिधः ॥ |
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उष आ भाहि भानुना चन्द्रेण दुहितर्दिवः | |
उष आ भाहि भानुना चन्द्रेण दुहितर्दिवः | |
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आवहन्ती भूर्यस्मभ्यं सौभगं वयुछन्ती दिविष्टिषु |
आवहन्ती भूर्यस्मभ्यं सौभगं वयुछन्ती दिविष्टिषु ॥ |
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विश्वस्य हि पराणनं जीवनं तवे वि यदुछसि सूनरि | |
विश्वस्य हि पराणनं जीवनं तवे वि यदुछसि सूनरि | |
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सा नो रथेन बर्हता विभावरि शरुधि चित्रामघे हवम |
सा नो रथेन बर्हता विभावरि शरुधि चित्रामघे हवम ॥ |
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उषो वाजं हि वंस्व यश्चित्रो मानुषे जने | |
उषो वाजं हि वंस्व यश्चित्रो मानुषे जने | |
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तेना वह सुक्र्तो अध्वरानुप ये तवा गर्णन्ति वह्नयः |
तेना वह सुक्र्तो अध्वरानुप ये तवा गर्णन्ति वह्नयः ॥ |
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विश्वान देवाना वह सोमपीतये.अन्तरिक्षादुषस्त्वम | |
विश्वान देवाना वह सोमपीतये.अन्तरिक्षादुषस्त्वम | |
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सास्मासु धा गोमदश्वावदुक्थ्यमुषो वाजं सुवीर्यम |
सास्मासु धा गोमदश्वावदुक्थ्यमुषो वाजं सुवीर्यम ॥ |
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यस्या रुशन्तो अर्चयः परति भद्रा अद्र्क्षत | |
यस्या रुशन्तो अर्चयः परति भद्रा अद्र्क्षत | |
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सा नो रयिं विश्ववारं सुपेशसमुषा ददातु सुग्म्यम |
सा नो रयिं विश्ववारं सुपेशसमुषा ददातु सुग्म्यम ॥ |
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ये चिद धि तवां रषयः पूर्व ऊतये जुहूरे.अवसे महि | |
ये चिद धि तवां रषयः पूर्व ऊतये जुहूरे.अवसे महि | |
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सा न सतोमानभि गर्णीहि राधसोषः शुक्रेण शोचिषा |
सा न सतोमानभि गर्णीहि राधसोषः शुक्रेण शोचिषा ॥ |
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उषो यदद्य भानुना वि दवाराव रणवो दिवः | |
उषो यदद्य भानुना वि दवाराव रणवो दिवः | |
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पर नो यछतादव्र्कं पर्थु छर्दिः पर देवि गोमतीरिषः |
पर नो यछतादव्र्कं पर्थु छर्दिः पर देवि गोमतीरिषः ॥ |
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सं नो राया बर्हता विश्वपेशसा मिमिक्ष्वा समिळाभिरा | |
सं नो राया बर्हता विश्वपेशसा मिमिक्ष्वा समिळाभिरा | |
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सं दयुम्नेन विश्वतुरोषो महि सं वाजैर्वाजिनीवति |
सं दयुम्नेन विश्वतुरोषो महि सं वाजैर्वाजिनीवति ॥ |
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*[[ऋग्वेद:]] |
*[[ऋग्वेद:]] |
१८:५५, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
सह वामेन न उषो वयुछा दुहितर्दिवः | सह दयुम्नेन बर्हता विभावरि राया देवि दास्वती ॥ अश्वावतीर्गोमतीर्विश्वसुविदो भूरि चयवन्त वस्तवे | उदीरय परति मा सून्र्ता उषश्चोद राधो मघोनाम ॥ उवासोषा उछाच्च नु देवी जीरा रथानाम | ये अस्या आचरणेषु दध्रिरे समुद्रे न शरवस्यवः ॥ उषो ये ते पर यामेषु युञ्जते मनो दानाय सूरयः | अत्राह तत कण्व एषां कण्वतमो नाम गर्णाति नर्णाम ॥ आ घा योषेव सूनर्युषा याति परभुञ्जती | जरयन्ती वर्जनं पद्वदीयत उत पातयति पक्षिणः ॥ वि या सर्जति समनं वयर्थिनः पदां न वेत्योदती | वयो नकिष टे पप्तिवांस आसते वयुष्टौ वाजिनीवति ॥ एषायुक्त परावतः सूर्यस्योदयनादधि | शतं रथेभिः सुभगोषा इयं वि यात्यभि मानुषान ॥ विश्वमस्या नानाम चक्षसे जगज्ज्योतिष कर्णोति सूनरी | अप दवेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उछदप सरिधः ॥ उष आ भाहि भानुना चन्द्रेण दुहितर्दिवः | आवहन्ती भूर्यस्मभ्यं सौभगं वयुछन्ती दिविष्टिषु ॥ विश्वस्य हि पराणनं जीवनं तवे वि यदुछसि सूनरि | सा नो रथेन बर्हता विभावरि शरुधि चित्रामघे हवम ॥ उषो वाजं हि वंस्व यश्चित्रो मानुषे जने | तेना वह सुक्र्तो अध्वरानुप ये तवा गर्णन्ति वह्नयः ॥ विश्वान देवाना वह सोमपीतये.अन्तरिक्षादुषस्त्वम | सास्मासु धा गोमदश्वावदुक्थ्यमुषो वाजं सुवीर्यम ॥ यस्या रुशन्तो अर्चयः परति भद्रा अद्र्क्षत | सा नो रयिं विश्ववारं सुपेशसमुषा ददातु सुग्म्यम ॥ ये चिद धि तवां रषयः पूर्व ऊतये जुहूरे.अवसे महि | सा न सतोमानभि गर्णीहि राधसोषः शुक्रेण शोचिषा ॥ उषो यदद्य भानुना वि दवाराव रणवो दिवः | पर नो यछतादव्र्कं पर्थु छर्दिः पर देवि गोमतीरिषः ॥ सं नो राया बर्हता विश्वपेशसा मिमिक्ष्वा समिळाभिरा | सं दयुम्नेन विश्वतुरोषो महि सं वाजैर्वाजिनीवति ॥