"ऋग्वेदः सूक्तं १.५" इत्यस्य संस्करणे भेदः
Content deleted Content added
No edit summary |
No edit summary |
||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
आ तवेता नि षीदतेन्द्रमभि पर गायत | |
आ तवेता नि षीदतेन्द्रमभि पर गायत | |
||
सखाय सतोमवाहसः || |
सखाय सतोमवाहसः || |
||
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम | |
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम | |
||
इन्द्रं सोमे सचा सुते || |
इन्द्रं सोमे सचा सुते || |
||
स घा नो योग आ भुवत स राये स पुरन्ध्याम | |
स घा नो योग आ भुवत स राये स पुरन्ध्याम | |
||
गमद वाजेभिरा स नः || |
गमद वाजेभिरा स नः || |
||
यस्य संस्थे न वर्ण्वते हरी समत्सु शत्रवः | |
यस्य संस्थे न वर्ण्वते हरी समत्सु शत्रवः | |
||
तस्मा इन्द्राय गायत || |
तस्मा इन्द्राय गायत || |
||
सुतपाव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये | |
सुतपाव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये | |
||
सोमासो दध्याशिरः || |
सोमासो दध्याशिरः || |
||
तवं सुतस्य पीतये सद्यो वर्द्धो अजायथाः | |
तवं सुतस्य पीतये सद्यो वर्द्धो अजायथाः | |
||
इन्द्र जयैष्ठ्याय सुक्रतो || |
इन्द्र जयैष्ठ्याय सुक्रतो || |
||
आ तवा विशन्त्वाशवः सोमास इन्द्र गिर्वणः | |
आ तवा विशन्त्वाशवः सोमास इन्द्र गिर्वणः | |
||
शं ते सन्तु परचेतसे || |
शं ते सन्तु परचेतसे || |
||
तवां सतोमा अवीव्र्धन तवामुक्था शतक्रतो | |
तवां सतोमा अवीव्र्धन तवामुक्था शतक्रतो | |
||
तवां वर्धन्तु नो गिरः || |
तवां वर्धन्तु नो गिरः || |
||
अक्षितोतिः सनेदिमं वाजमिन्द्रः सहस्रिणम | |
अक्षितोतिः सनेदिमं वाजमिन्द्रः सहस्रिणम | |
||
यस्मिन विश्वानि पौंस्या || |
यस्मिन विश्वानि पौंस्या || |
||
मा नो मर्ता अभि दरुहन तनूनामिन्द्र गिर्वणः | |
मा नो मर्ता अभि दरुहन तनूनामिन्द्र गिर्वणः | |
||
ईशानो यवया वधम || |
ईशानो यवया वधम || |
||
⚫ | |||
⚫ |
२०:१५, २ जनवरी २००५ इत्यस्य संस्करणं
आ तवेता नि षीदतेन्द्रमभि पर गायत | सखाय सतोमवाहसः ||
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम | इन्द्रं सोमे सचा सुते ||
स घा नो योग आ भुवत स राये स पुरन्ध्याम | गमद वाजेभिरा स नः ||
यस्य संस्थे न वर्ण्वते हरी समत्सु शत्रवः | तस्मा इन्द्राय गायत ||
सुतपाव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये | सोमासो दध्याशिरः ||
तवं सुतस्य पीतये सद्यो वर्द्धो अजायथाः | इन्द्र जयैष्ठ्याय सुक्रतो ||
आ तवा विशन्त्वाशवः सोमास इन्द्र गिर्वणः | शं ते सन्तु परचेतसे ||
तवां सतोमा अवीव्र्धन तवामुक्था शतक्रतो | तवां वर्धन्तु नो गिरः ||
अक्षितोतिः सनेदिमं वाजमिन्द्रः सहस्रिणम | यस्मिन विश्वानि पौंस्या ||
मा नो मर्ता अभि दरुहन तनूनामिन्द्र गिर्वणः | ईशानो यवया वधम ||