"न्यायसूत्राणि/अध्यायः २" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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|* [[/प्रथमभागः|प्रथमभागः]] |
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समानानेकधर्माध्यवसायातन्यतरधर्माध्यवसायात्वा न संशयः ।। १ ।। {संशय} <br> |
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|* [[/द्वितीयभागः|द्वितीयभागः]] |
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विप्रत्तिपत्त्यव्यवस्थाध्यवसायात्च ।। २ ।। {संशय} <br> |
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विप्रत्तिपत्तौ च संप्रत्तिपत्तेः ।। ३ ।। {संशय} <br> |
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अव्यवस्था आत्मनि व्यवस्थितत्वात्च अव्यवस्थायाः ।। ४ ।। {संशय} <br> |
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तथा अत्यन्तसंशयः तद्धर्मसातत्योपपत्तेः ।। ५ ।। {संशय} <br> |
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यथोक्ताध्यवसायातेव तद्विशेषापेक्षात्संशये न असंशयः न अत्यन्तसंशयः वा ।। ६ ।। {संशय} <br> |
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यत्र संशयः तत्र एवं उत्तरोत्तरप्रसङ्गः ।। ७ ।। {संशय} <br> |
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प्रत्यक्षादीनां अप्रामाण्यं त्रैकाल्यासिद्धेः ।। ८ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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पूर्वं हि प्रमाणसिद्धौ न इन्द्रियार्थसन्निकर्षात्प्रत्यक्षोत्पत्तिः ।। ९ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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पश्चात्सिद्धौ न प्रमाणेभ्यः प्रमेयसिद्धिः ।। १० ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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युगपत्सिद्धौ प्रत्यर्थनियतत्वात्क्रमवृत्तित्वाभावः बुद्धीनाम् ।। ११ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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त्रैकाल्यासिद्धेः प्रतिषेधानुपपत्तिः ।। १२ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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सर्वप्रमाणप्रतिषेधात्च प्रतिषेधानुपपत्तिः ।। १३ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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तत्प्रामाण्ये वा न सर्वप्रमाणविप्रतिषेधः ।। १४ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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त्रैकाल्याप्रतिषेधः च शब्दातातोद्यसिद्धिवत्तत्सिद्धेः ।। १५ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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प्रमेया च तुलाप्रामाण्यवत् ।। १६ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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प्रमाणतः सिद्धेः प्रमाणानां प्रमाणान्तरसिद्धिप्रसङ्गः ।। १७ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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तद्विनिवृत्तेः वा प्रमाणसिद्धिवत्प्रमेयसिद्धिः ।। १८ ।। {पूर्वपक्षसूत्रम्} <br> |
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न, प्रदीपप्रकाशसिद्धिवत्तत्सिद्धेः ।। १९ ।। {सिद्धान्तलक्षणम्} <br> |
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क्वचित्निवृत्तिदर्शनातनिवृत्तिदर्शनात्च क्वचितनेकान्तः ।। २० ।। {सिद्धान्तलक्षणम्} <br> |
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प्रत्यक्षलक्षणानुपपत्तिः असमग्रवचनात् ।। २१ ।। {प्रत्यक्षलक्षण} {प्रत्यक्षलक्षणपरीक्षा} <br> |
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न आत्ममनसोः सन्निकर्षाभावे प्रत्यक्षोत्पत्तिः ।। २२ ।। <br> |
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दिग्देशकालाकाशेषु अपि एवं प्रसङ्गः ।। २३ ।। <br> |
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ज्ञानलिङ्गत्वातात्मनः न अनवरोधः ।। २४ ।। {प्रत्यक्षलक्षणसिद्धान्तसूत्रम्} <br> |
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तदयौगपद्यलिङ्गत्वात्च न मनसः ।। २५ ।। {प्रत्यक्षलक्षणसिद्धान्तसूत्र} <br> |
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प्रत्यक्षनिमित्तत्वात्च इन्द्रियार्थयोः सन्निकर्षस्य स्वशब्देन वचनम् ।। २६ ।। {प्रत्यक्षलक्षणसिद्धान्तसूत्र} <br> |
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सुप्तव्यासक्तमनसां च इन्द्रियार्थयोः सन्निकर्षनिमित्तत्वात् ।। २७ ।। {प्रत्यक्षलक्षणसिद्धान्तसूत्र} <br> |
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तैः च अपदेशः ज्ञानविशेषाणाम् ।। २८ ।। {प्रत्यक्षलक्षणसिद्धान्तसूत्र} <br> |
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व्याहतत्वातहेतुः ।। २९ ।। {प्रत्यक्षलक्षणसिद्धान्तसूत्र} <br> |
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न अर्थविशेषप्राबल्यात् ।। ३० ।। {प्रत्यक्षलक्षणसिद्धान्तसूत्र} <br> |
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प्रत्यक्षं अनुमानं एकदेशग्रहणातुपलब्धेः ।। ३१ ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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न, प्रत्यक्षेण यावत्तावतपि उपलम्भात् ।। ३२ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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न चैकदेशोपलब्धिरवयविसद्भावात् ।। ३३ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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साध्यत्वातवयविनि सन्देहः ।। ३४ ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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सर्वाग्रहणं अवयव्यसिद्धेः ।। ३५ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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धारणाकर्षणोपपत्तेः च ।। ३६ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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सेनावनवत्ग्रहणं इति चेत्न अतीन्द्रियत्वातणूनाम् ।। ३७ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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रोधोपघातसादृश्येभ्यः व्यभिचारातनुमानं अप्रमाणम् ।। ३८ ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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न, एकदेशत्राससादृश्येभ्यः अर्थान्तरभावात् ।। ३९ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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वर्तमानाभावः, पततः पतितपतितव्यकालोपपत्तेः ।। ४० ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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तयोः अपि अभावः वर्तमानाभावे, तदपेक्षत्वात् ।। ४१ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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न अतीतानागतयोः इतरेतरापेक्षा सिद्धिः ।। ४२ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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वर्तमानाभावे सर्वाग्रहणं प्रत्यक्षानुपपत्तेः ।। ४३ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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कृतताकर्त्तव्यतोपपत्तेः तु उभयथा ग्रहणम् ।। ४४ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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अत्यन्तप्रायैकदेशसाधर्म्यातुपमानासिद्धिः ।। ४५ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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प्रसिद्धसाधर्म्यातुपमानसिद्धेः यथोक्तदोषानुपपत्तिः ।। ४६ ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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प्रत्यक्षेण अप्रत्यक्षसिद्धेः ।। ४७ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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न अप्रत्यक्षे गवये प्रमाणार्थं उपमानस्य पश्यामः ।। ४८ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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तथा इति उपसंहारातुपमानसिद्धेः न अविशेषः ।। ४९ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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शब्दः अनुमानं अर्थस्य अनुपलब्धेः अनुमेयत्वात् ।। ५० ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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उपलब्धेः अद्विप्रवृत्तित्वात् ।। ५१ ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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सम्बन्धात्च ।। ५२ ।। {पूर्वपक्षसूत्र} <br> |
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आप्तोपदेशसामर्थ्यात्शब्दातर्थसम्प्रत्ययः ।। ५३ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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पूरणप्रदाहपाटनानुपलब्धेः च सम्बन्धाभावः ।। ५४ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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शब्दार्थव्यवस्थानातप्रतिषेधः ।। ५५ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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न, सामयिकत्वात्शब्दार्थसम्प्रत्ययस्य ।। ५६ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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जातिविशेषे च अनियमात् ।। ५७ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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तदप्रामाण्यं अनृतव्याघातपुनरुक्तदोषेभ्यः ।। ५८ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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न, कर्मकर्तृसाधनवैगुण्यात् ।। ५९ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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अभ्युपेत्य कालभेदे दोषवचनात् ।। ६० ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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अनुवादोपपत्तेः च ।। ६१ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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वाक्यविभागस्य च अर्थग्रहणात् ।। ६२ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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विध्यर्थवादानुवादवचनविनियोगात् ।। ६३ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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विधिः विधायकः ।। ६४ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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स्तुतिः निन्दा परकृतिः पुराकल्पः इति अर्थवादः ।। ६५ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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विधिविहितस्य अनुवचनं अनुवादः ।। ६६ ।। {अर्थवाद} <br> |
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न अनुवादपुनरुक्तयोः विशेषः, शब्दाभ्यासोपपत्तेः ।। ६७ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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शीघ्रतरगमनोपदेशवतभ्यासात्न अविशेषः ।। ६८ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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मन्त्रायुर्वेदप्रामाण्यवत्च तत्प्रामाण्यम्, आप्तप्रामाण्यात् ।। ६९ ।। {सिद्धान्तसूत्र} <br> |
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