"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१८२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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बृहस्पतिर्नयतु दुर्गहा तिरः पुनर्नेषदघशंसाय मन्म । |
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क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥१॥ |
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नराशंसो |
नराशंसो नोऽवतु प्रयाजे शं नो अस्त्वनुयाजो हवेषु । |
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क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥२॥ |
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तपुर्मूर्धा तपतु रक्षसो ये |
तपुर्मूर्धा तपतु रक्षसो ये ब्रह्मद्विषः शरवे हन्तवा उ । |
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क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥३॥ |
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२१:११, १५ फेब्रवरी २००९ इत्यस्य संस्करणं
ऋग्वेदः सूक्तं १०.१८२
बृहस्पतिर्नयतु दुर्गहा तिरः पुनर्नेषदघशंसाय मन्म । क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥१॥ नराशंसो नोऽवतु प्रयाजे शं नो अस्त्वनुयाजो हवेषु । क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥२॥ तपुर्मूर्धा तपतु रक्षसो ये ब्रह्मद्विषः शरवे हन्तवा उ । क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥३॥