"ऋग्वेदः सूक्तं १०.१५२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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शास इत्था महानस्यमित्रखादो अद्भुतः | |
शास इत्था महानस्यमित्रखादो अद्भुतः | |
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न यस्यहन्यते सखा न जीयते कदा चन |
न यस्यहन्यते सखा न जीयते कदा चन ॥ |
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सवस्तिद विशस पतिर्व्र्त्रहा विम्र्धो वशी | |
सवस्तिद विशस पतिर्व्र्त्रहा विम्र्धो वशी | |
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वर्षेन्द्रःपुर एतु नः सोमप अभयंकरः |
वर्षेन्द्रःपुर एतु नः सोमप अभयंकरः ॥ |
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वि रक्षो वि मर्धो जहि वि वर्त्रस्य हनू रुज | |
वि रक्षो वि मर्धो जहि वि वर्त्रस्य हनू रुज | |
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वि मन्युमिन्द्र वर्त्रहन्नमित्रस्याभिदसतः |
वि मन्युमिन्द्र वर्त्रहन्नमित्रस्याभिदसतः ॥ |
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वि न इन्द्र मर्धो जहि नीचा यछ पर्तन्यतः | |
वि न इन्द्र मर्धो जहि नीचा यछ पर्तन्यतः | |
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यो अस्मानभिदासत्यधरं गमया तमः |
यो अस्मानभिदासत्यधरं गमया तमः ॥ |
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अपेन्द्र दविषतो मनो.अप जिज्यासतो वधम | |
अपेन्द्र दविषतो मनो.अप जिज्यासतो वधम | |
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वि मन्योःशर्म यछ वरीयो यवया वधम |
वि मन्योःशर्म यछ वरीयो यवया वधम ॥ |
११:५७, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
शास इत्था महानस्यमित्रखादो अद्भुतः | न यस्यहन्यते सखा न जीयते कदा चन ॥ सवस्तिद विशस पतिर्व्र्त्रहा विम्र्धो वशी | वर्षेन्द्रःपुर एतु नः सोमप अभयंकरः ॥ वि रक्षो वि मर्धो जहि वि वर्त्रस्य हनू रुज | वि मन्युमिन्द्र वर्त्रहन्नमित्रस्याभिदसतः ॥
वि न इन्द्र मर्धो जहि नीचा यछ पर्तन्यतः | यो अस्मानभिदासत्यधरं गमया तमः ॥ अपेन्द्र दविषतो मनो.अप जिज्यासतो वधम | वि मन्योःशर्म यछ वरीयो यवया वधम ॥