"ऋग्वेदः सूक्तं १०.८२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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चक्षुषः पिता मनसा हि धीरो घर्तमेने अजनन्नन्नमाने | |
चक्षुषः पिता मनसा हि धीरो घर्तमेने अजनन्नन्नमाने | |
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यदेदन्ता अदद्र्हन्त पूर्व आदिद्द्यावाप्र्थिवी अप्रथेताम |
यदेदन्ता अदद्र्हन्त पूर्व आदिद्द्यावाप्र्थिवी अप्रथेताम ॥ |
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विश्वकर्मा विमना आद विहाया धाता विधाता परमोतसन्द्र्क | |
विश्वकर्मा विमना आद विहाया धाता विधाता परमोतसन्द्र्क | |
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तेषामिष्टानि समिषा मदन्ति यत्रासप्तर्षीन पर एकमाहुः |
तेषामिष्टानि समिषा मदन्ति यत्रासप्तर्षीन पर एकमाहुः ॥ |
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यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानिविश्वा | |
यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानिविश्वा | |
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यो देवानां नामधा एक एव तं सम्प्रश्नम्भुवना यन्त्यन्या |
यो देवानां नामधा एक एव तं सम्प्रश्नम्भुवना यन्त्यन्या ॥ |
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त आयजन्त दरविणं समस्मा रषयः पूर्वे जरितारो नभूना | |
त आयजन्त दरविणं समस्मा रषयः पूर्वे जरितारो नभूना | |
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असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानिसमक्र्ण्वन्निमानि |
असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानिसमक्र्ण्वन्निमानि ॥ |
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परो दिवा पर एना पर्थिव्या परो देवेभिरसुरैर्यदस्ति | |
परो दिवा पर एना पर्थिव्या परो देवेभिरसुरैर्यदस्ति | |
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कं सविद गर्भं परथमं दध्र आपो यत्र देवाःसमपश्यन्त विश्वे |
कं सविद गर्भं परथमं दध्र आपो यत्र देवाःसमपश्यन्त विश्वे ॥ |
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तमिद गर्भं परथमं दध्र आपो यत्र देवाःसमगछन्त विश्वे | |
तमिद गर्भं परथमं दध्र आपो यत्र देवाःसमगछन्त विश्वे | |
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अजस्य नाभावध्येकमर्पितंयस्मिन विश्वानि भुवनानि तस्थुः |
अजस्य नाभावध्येकमर्पितंयस्मिन विश्वानि भुवनानि तस्थुः ॥ |
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न तं विदाथ य इमा जजानायद युष्माकमन्तरम्बभूव | |
न तं विदाथ य इमा जजानायद युष्माकमन्तरम्बभूव | |
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नीहारेण पराव्र्ता जल्प्या चासुत्र्प उक्थशासश्चरन्ति |
नीहारेण पराव्र्ता जल्प्या चासुत्र्प उक्थशासश्चरन्ति ॥ |
११:५५, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
चक्षुषः पिता मनसा हि धीरो घर्तमेने अजनन्नन्नमाने | यदेदन्ता अदद्र्हन्त पूर्व आदिद्द्यावाप्र्थिवी अप्रथेताम ॥ विश्वकर्मा विमना आद विहाया धाता विधाता परमोतसन्द्र्क | तेषामिष्टानि समिषा मदन्ति यत्रासप्तर्षीन पर एकमाहुः ॥ यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानिविश्वा | यो देवानां नामधा एक एव तं सम्प्रश्नम्भुवना यन्त्यन्या ॥
त आयजन्त दरविणं समस्मा रषयः पूर्वे जरितारो नभूना | असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानिसमक्र्ण्वन्निमानि ॥ परो दिवा पर एना पर्थिव्या परो देवेभिरसुरैर्यदस्ति | कं सविद गर्भं परथमं दध्र आपो यत्र देवाःसमपश्यन्त विश्वे ॥ तमिद गर्भं परथमं दध्र आपो यत्र देवाःसमगछन्त विश्वे | अजस्य नाभावध्येकमर्पितंयस्मिन विश्वानि भुवनानि तस्थुः ॥
न तं विदाथ य इमा जजानायद युष्माकमन्तरम्बभूव | नीहारेण पराव्र्ता जल्प्या चासुत्र्प उक्थशासश्चरन्ति ॥