"महाभारतम्-01-आदिपर्व-074" इत्यस्य संस्करणे भेदः
No edit summary |
(लघु) Bot: adding required templates |
||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
{{header |
|||
| title = [[महाभारतम्]] |
|||
| author = वेदव्यासः |
|||
| translator = |
|||
| section = ''प्रथमपर्व''<br>'''महाभारतम्-01-आदिपर्व-074''' |
|||
| previous = [[महाभारतम्-01-आदिपर्व-073|आदिपर्व-073]] |
|||
| next = [[महाभारतम्-01-आदिपर्व-075|आदिपर्व-075]] |
|||
| notes = |
|||
}} |
|||
{{महाभारतम्}} |
|||
शुक्रवृषपर्वणोः संवादः।। 1 ।। |
शुक्रवृषपर्वणोः संवादः।। 1 ।। |
||
शुक्रकोपशान्तये वृषपर्वनियोगात् शर्मिष्ठया देवयानीदास्याङ्गीकारः।। 2 ।। |
शुक्रकोपशान्तये वृषपर्वनियोगात् शर्मिष्ठया देवयानीदास्याङ्गीकारः।। 2 ।। |
||
पङ्क्तिः १००: | पङ्क्तिः ११०: | ||
<tr><td><p> एवमुक्तो दुहित्रा स द्विजश्रेष्ठो महायशाः।<BR>प्रविवेश पुरं हृष्टः पूजितः सर्वदानैवः।। <td> 1-74-34a<BR>1-74-34b </p></tr> |
<tr><td><p> एवमुक्तो दुहित्रा स द्विजश्रेष्ठो महायशाः।<BR>प्रविवेश पुरं हृष्टः पूजितः सर्वदानैवः।। <td> 1-74-34a<BR>1-74-34b </p></tr> |
||
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <BR>संभवपर्वणि चतुःसप्ततितमोऽध्यायः।। 74 ।। <td> </p></tr></table> |
<tr><td><p> ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि <BR>संभवपर्वणि चतुःसप्ततितमोऽध्यायः।। 74 ।। <td> </p></tr></table> |
||
{{footer |
|||
| previous = [[महाभारतम्-01-आदिपर्व-073|आदिपर्व-073]] |
|||
| next = [[महाभारतम्-01-आदिपर्व-075|आदिपर्व-075]] |
|||
}} |
१९:२४, १५ नवेम्बर् २०११ इत्यस्य संस्करणं
← आदिपर्व-073 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-074 वेदव्यासः |
आदिपर्व-075 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
शुक्रवृषपर्वणोः संवादः।। 1 ।। शुक्रकोपशान्तये वृषपर्वनियोगात् शर्मिष्ठया देवयानीदास्याङ्गीकारः।। 2 ।। प्रसन्नया देवयान्या सह शुक्रस्य पुरप्रवेशनम्।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-74-1x |
ततः काव्यो भृगुश्रेष्ठः समन्युरुपगम्य ह। | 1-74-1a 1-74-1b |
नाधर्मश्चरितो राजन्सद्यः फलति गौरिव। | 1-74-2a 1-74-2b |
पुत्रेषु वा नप्तृषु वा न चेदात्मनि पश्यति। | 1-74-3a 1-74-3b |
`अधीयानं हितं राजन्क्षमावन्तं जितेन्द्रियम्।' | 1-74-4a 1-74-4b 1-74-4c |
`शर्मिष्ठया देवयानी क्रूरमुक्ता बहु प्रभो। | 1-74-5a 1-74-5b |
सा न कल्पेत वासाय तयाहं रहितः कथम्। | 1-74-6a 1-74-6b |
वधादनर्हतस्तस्य वधाच्च दुहितुर्मम। | 1-74-7a 1-74-7b 1-74-7c |
`मा शोच वृषपर्वंस्त्वं मा क्रुध्यस्व विशांपते। | 1-74-8a 1-74-8b 1-74-8c |
वृषपर्वोवाच। | 1-74-9x |
यदि ब्रह्मन्घातयामि यदि वा क्रोशयाम्यहम्। | 1-74-9a 1-74-9b |
शुक्र उवाच।' | 1-74-10x |
अहो मामभिजानासि दैत्य मिथ्याप्रलापिनम्। | 1-74-10a 1-74-10b |
वृषपर्वोवाच। | 1-74-11x |
नाधर्मं न मृषावादं त्वयि जानामि भार्गव। | 1-74-11a 1-74-11b |
यद्यस्मानपहाय त्वमितो गच्छसि भार्गव। | 1-74-12a 1-74-12b |
पातालमथवा चाग्निं नान्यदस्ति परायणम्। | 1-74-13a 1-74-13b 1-74-13c |
शुक्र उवाच। | 1-74-14x |
समुद्रं प्रविशध्वं वा दिशो वा द्रवतासुराः। | 1-74-14a 1-74-14b |
प्रसाद्यतां देवयानी जीवितं यत्र मे स्थितम्। | 1-74-15a 1-74-15b |
वृषपर्वोवाच। | 1-74-16x |
यत्किंचिदसुरेन्द्राणां विद्यते वसु भार्गव। | 1-74-16a 1-74-16b |
शुक्र उवाच। | 1-74-17x |
यत्किंचिदस्ति द्रविणं दैत्येन्द्राणां महासुर। | 1-74-17a 1-74-17b |
वैशंपायन उवाच। | 1-74-18x |
एवमुक्तस्तथेत्याह वृषपर्वा महाकविम्। | 1-74-18a 1-74-18b |
देवयान्युवाच। | 1-74-19x |
यदि त्वमीश्वरस्तात राज्ञो वित्तस्य भार्गव। | 1-74-19a 1-74-19b |
`वैशंपायन उवाच। | 1-74-20x |
शुक्रस्य वचनं श्रुत्वा वृषपर्वा सबान्धवः। | 1-74-20a 1-74-20b |
वृषपर्वोवाच। | 1-74-21x |
स्तुत्यो वन्द्यश्च सततं मया तातश्च ते शुभे।' | 1-74-21a 1-74-21b 1-74-21c |
देवयान्युवाच। | 1-74-22x |
दासीं कन्यासहस्रेण शर्मिष्ठामभिकामये। | 1-74-22a 1-74-22b |
वृषपर्वोवाच। | 1-74-23x |
उत्तिष्ठ त्वं गच्छ धात्रि शर्मिष्ठां शीघ्रमानय। | 1-74-23a 1-74-23b |
`त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामार्थे च कुलं त्यजेत्। | 1-74-24a 1-74-24b |
वैशंपायन उवाच। | 1-74-25x |
ततो धात्री तत्र गत्वा शर्मिष्ठां वाक्यमब्रवीत्। | 1-74-25a 1-74-25b |
त्यजति ब्राह्मणः शिष्यान्देवयान्या प्रचोदितः। | 1-74-26a 1-74-26b |
शर्मिष्ठोवाच। | 1-74-27x |
यं सा कामयते कां करवाण्यहमद्य तम्। | 1-74-27a 1-74-27b 1-74-27c |
वैशंपायन उवाच। | 1-74-28x |
ततः कन्यासहस्रेण वृता शिबिकया तदा। | 1-74-28a 1-74-28b |
शर्मिष्ठोवाच। | 1-74-29x |
अहं दासीसहस्रेण दासी ते परिचारिका। | 1-74-29a 1-74-29b |
देवयान्युवाच। | 1-74-30x |
स्तुवतो दुहिताऽहं ते याचतः प्रतिगृह्णतः। | 1-74-30a 1-74-30b |
शर्मिष्ठोवाच। | 1-74-31x |
येनकेनचिदार्तानां ज्ञातीनां सुखमावहेत्। | 1-74-31a 1-74-31b |
वैशंपायन उवाच। | 1-74-32x |
प्रतिश्रुते दासभावे दुहित्रा वृषपर्वणः। | 1-74-32a 1-74-32b |
देवयान्युवाच। | 1-74-33x |
प्रविशामि पुरं तात तुष्टाऽस्मि द्विजसत्तम। | 1-74-33a 1-74-33b |
वैशंपायन उवाच। | 1-74-34x |
एवमुक्तो दुहित्रा स द्विजश्रेष्ठो महायशाः। | 1-74-34a 1-74-34b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि |
आदिपर्व-073 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-075 |