"ऋग्वेदः सूक्तं ७.७०" इत्यस्य संस्करणे भेदः
Content deleted Content added
No edit summary |
(लघु) Yann ७, ॥ : replace |
||
पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
आ विश्ववाराश्विना गतं नः पर तत सथानमवाचि वां पर्थिव्याम | |
आ विश्ववाराश्विना गतं नः पर तत सथानमवाचि वां पर्थिव्याम | |
||
अश्वो न वाजी शुनप्र्ष्ठो अस्थादा यत सेदथुर्ध्रुवसे न योनिम |
अश्वो न वाजी शुनप्र्ष्ठो अस्थादा यत सेदथुर्ध्रुवसे न योनिम ॥ |
||
सिषक्ति सा वां सुमतिश्चनिष्ठातापि घर्मो मनुषो दुरोणे | |
सिषक्ति सा वां सुमतिश्चनिष्ठातापि घर्मो मनुषो दुरोणे | |
||
यो वां समुद्रान सरितः पिपर्त्येतग्वा चिन न सुयुजा युजानः |
यो वां समुद्रान सरितः पिपर्त्येतग्वा चिन न सुयुजा युजानः ॥ |
||
यानि सथानान्यश्विना दधाथे दिवो यह्वीष्वोषधीषु विक्षु | |
यानि सथानान्यश्विना दधाथे दिवो यह्वीष्वोषधीषु विक्षु | |
||
नि पर्वतस्य मूर्धनि सदन्तेषं जनाय दाशुषेवहन्ता |
नि पर्वतस्य मूर्धनि सदन्तेषं जनाय दाशुषेवहन्ता ॥ |
||
चनिष्टं देवा ओषधीष्वप्सु यद योग्या अश्नवैथे रषीणाम | |
चनिष्टं देवा ओषधीष्वप्सु यद योग्या अश्नवैथे रषीणाम | |
||
पुरूणि रत्ना दधतौ नयस्मे अनु पूर्वाणि चख्यथुर्युगानि |
पुरूणि रत्ना दधतौ नयस्मे अनु पूर्वाणि चख्यथुर्युगानि ॥ |
||
शुश्रुवांसा चिदश्विना पुरूण्यभि बरह्माणि चक्षाथे रषीणाम | |
शुश्रुवांसा चिदश्विना पुरूण्यभि बरह्माणि चक्षाथे रषीणाम | |
||
परति पर यातं वरमा जनायास्मे वामस्तु सुमतिश्चनिष्ठा |
परति पर यातं वरमा जनायास्मे वामस्तु सुमतिश्चनिष्ठा ॥ |
||
यो वां यज्ञो नासत्या हविष्मान कर्तब्रह्मा समर्यो भवाति | |
यो वां यज्ञो नासत्या हविष्मान कर्तब्रह्मा समर्यो भवाति | |
||
उप पर यातं वरमा वसिष्ठमिमा बरह्माण्य रच्यन्ते युवभ्याम |
उप पर यातं वरमा वसिष्ठमिमा बरह्माण्य रच्यन्ते युवभ्याम ॥ |
||
इयं मनीषा इयमश्विना गीरिमां सुव्र्क्तिं वर्षणा जुषेथाम | |
इयं मनीषा इयमश्विना गीरिमां सुव्र्क्तिं वर्षणा जुषेथाम | |
||
इमा बरह्माणि युवयून्यग्मन यूयं पात ... |
इमा बरह्माणि युवयून्यग्मन यूयं पात ... ॥ |
२१:५२, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
आ विश्ववाराश्विना गतं नः पर तत सथानमवाचि वां पर्थिव्याम | अश्वो न वाजी शुनप्र्ष्ठो अस्थादा यत सेदथुर्ध्रुवसे न योनिम ॥ सिषक्ति सा वां सुमतिश्चनिष्ठातापि घर्मो मनुषो दुरोणे | यो वां समुद्रान सरितः पिपर्त्येतग्वा चिन न सुयुजा युजानः ॥ यानि सथानान्यश्विना दधाथे दिवो यह्वीष्वोषधीषु विक्षु | नि पर्वतस्य मूर्धनि सदन्तेषं जनाय दाशुषेवहन्ता ॥ चनिष्टं देवा ओषधीष्वप्सु यद योग्या अश्नवैथे रषीणाम | पुरूणि रत्ना दधतौ नयस्मे अनु पूर्वाणि चख्यथुर्युगानि ॥ शुश्रुवांसा चिदश्विना पुरूण्यभि बरह्माणि चक्षाथे रषीणाम | परति पर यातं वरमा जनायास्मे वामस्तु सुमतिश्चनिष्ठा ॥ यो वां यज्ञो नासत्या हविष्मान कर्तब्रह्मा समर्यो भवाति | उप पर यातं वरमा वसिष्ठमिमा बरह्माण्य रच्यन्ते युवभ्याम ॥ इयं मनीषा इयमश्विना गीरिमां सुव्र्क्तिं वर्षणा जुषेथाम | इमा बरह्माणि युवयून्यग्मन यूयं पात ... ॥